राष्ट्रपति भवन में घोड़ों का क्या काम , क्या कहती है आरटीआई?

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17 13 में लुटेरे गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने बनारस में भारत में लूटे गए पैसों से अपनी ठाट बाट मौज मस्ती के लिए हॉर्स गार्ड दस्ता की बुनियाद डाली |

1947 में देश आजाद हो गया साथ ही राजतंत्र भी समाप्त हो गया लोकतंत्र देश में आ गया… लेकिन अंग्रेजों की बहुत सी फिजूल परंपराएं पोशाक परिधान के साथ आज भी लागू|

भारत के आदरणीय महा माहिम राष्ट्रपति कि ठाठ बाट में तैनात घोड़ों के संबंध में मैंने अप्रैल माह में सूचना के अधिकार के तहत राष्ट्रपति सचिवालय से कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी मसलन घोड़ों की संख्या, घोड़ों की देखरेख पर कितना खर्च होता है| देखरेख के लिए बता दूं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी ने एक बार कहा था कि राष्ट्रपति भवन में तैनात घोड़ों के खानपान देखरेख पर इतना पैसा खर्च होता है मैं अगले जन्म में राष्ट्रपति भवन का घोड़ा ही बनना चाहूंगा|

आज रक्षा मंत्रालय से जानकारी मिली है केवल एक बिंदु पर राष्ट्रपति के घोड़े दस्ते में 79 घोड़े तैनात है उनकी देखरेख पर कितना खर्च होता है उन्होंने मामला शहरी विकास मंत्रालय को ट्रांसफर कर दिया | जिनका कोई विशेष प्रयोजन नहीं है गणतंत्र दिवस स्वतंत्र दिवस पर ही आदरणीय राष्ट्रपति महोदय का यह दस्ता निकलता है| राष्ट्रपति घोड़ा बग्गी में अब सवार नहीं होते अत्याधुनिक लग्जरी गाड़ी में चलते हैं|

21वीं सदी में घोड़ों से सुरक्षा की बात बेमानी है|

भारत में जब राजतंत्र खत्म हो गया तो वह देश के शीर्ष संविधानिक कार्यालय में भी खत्म होना चाहिए| बात जहां अंग्रेजों की दिखावे फिजूलखर्ची की प्रथा की हो तो ऐसी प्रथाएं शीघ्र अति शीघ्र खत्म होनी चाहिए|

महामहिम राष्ट्रपति महोदय अपने नाम अनुसार बहुत ही विनम्र उदार व्यक्ति हैं हम उनसे इस मामले में पत्र लिखकर अनुरोध करेंगे… लोकतंत्र में अनुरोध ही शालीन हथियार है|

आर्य सागर खारी✍✍✍

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