“पुत्रेण दुहिता समा” (मनुस्मृति ९.१.३०)

“पुत्रेण दुहिता समा” (मनुस्मृति ९.१.३०)
अर्थात – पुत्री पुत्र के समान होती है वह आत्मारूप है अतः वह पैतृक संपत्ति की अधिकारिणी है।
महर्षि मनु दुनिया के प्रथम विधिवेत्ता थे जिन्होंने पुत्रों के समान पुत्री को भी माता पिता संपत्ति में अधिकार दिया इतना ही नहीं माता के धन (मातृधन) पर तो केवल पुत्री का ही अधिकार मनु ने माना है। यह ही नही स्त्री के धन संपत्ति को कोई उसका बंधु बांधव ही क्यों ना हड़प ले उसको चोर के सदृश कठोर दंड का विधान मनु ने किया है।
यह भी एक उल्लेखनीय ऐतिहासिक तथ्य होगा डॉक्टर अंबेडकर जी ने संसद में हिंदू कोड बिल पर चर्चा के दौरान मनुस्मृति के इसी श्लोक को महिलाओं के संपत्ति में उत्तराधिकारी होने की अपनी दलील के पक्ष में कोट किया था।
मनु दुनिया के पहले विचारक थे जिन्होंने स्त्रियों को वैवाहिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया। मनु ने कहा गुणहीन दुष्ट पुरूष से विवाह नहीं करना चाहिए भले ही कन्या जीवन पर्यंत अविवाहित रहे।
‘लेडिज फर्स्ट’ की सभ्यता के जो प्रशंसक हैं सोचते हैं कि पश्चिम ने हीं यह शिष्टाचार दिया है वह भ्रम में हैं। स्त्री प्रथम की अवधारणा भी मनु की देन है मनुस्मृति के एक श्लोक में उन्होंने कहा है स्त्रियों के लिए पहले रास्ता छोड़ देना चाहिए नवविवाहिता, कुमारियों, गर्भवतियों, बीमार स्त्रियों को पहले भोजन कराना चाहिए यही कारण रहा आज भी शुभ अवसरों पर कन्याओं को पहले भोजन कराया जाता है यह मनु की व्यवस्था आज भी हिंदू समुदाय में चली आ रही है। मनु के ऐसे अनेको विधान स्त्रियों के प्रति सम्मान और स्नेह के द्योतक है फिर भी कुछ मतिभ्रम मनु के विषय में यह दुषप्रचारित करते हैं कि -मनु ने स्त्रियों के अधिकारों का हनन किया स्त्रियों को अपमानित करने के श्लोक बनाए । यहां यह उल्लेखनीय होगा मनुस्मृति के अधिकांश उपलब्ध संस्करण में मनुस्मृति में आज ऐसे कुछ महिला विरोधी आपत्तिजनक श्लोक भी यदि मिलते हैं तो यह मनु की स्त्रियों के विषय में आदरसूचक मान्यता के विपरीत है जो मनु की देन नहीं है यह मिलावटी श्लोक हैं जिन्हें समय समय पर मनुस्मृति में मिलावट के तौर पर मिलाया गया है।
इतना ही नहीं छद्म स्त्रीवादियों एवम् वामपंथीयो की वैदिक संस्कृति विरोधी पाठशाला में प्रथम पाठ यही पढ़ाया जाता है की मनु स्त्री विरोधी थे भला समूचे यूरोप अमेरिका अरब जगत में महिलाओं की स्थिति 20वीं शताब्दी तक अत्यधिक देनीय रही वहां उन्हें पढ़ने का अधिकार नहीं था तो कहीं उन्हें डिग्री नहीं दी जाती थी तो कहीं उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं था तो कहीं उन्हें कोर्ट में गवाही का अधिकार नहीं था क्योंकि ऐसी भ्रामक मान्यता थी कि स्त्रियों के अंदर आत्मा नहीं होती इस्लाम में उन्हें खेती माना गया वहां स्त्रियों की दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार था?।
यद्यपि भी एक कटु सत्य है मध्यकाल में स्त्री की भारत में लगभग वही दैनीय स्थिति रही लेकिन उसके लिए मनु की व्यवस्था जिम्मेदार नहीं थी इसके लिए जिम्मेदार थी मनु के विधान में की गई स्वार्थियों जन्मना जातिवादियों के द्वारा की गई मिलावट।
मनुस्मृति के इस मूल मनु प्रोक्त प्रसिद्ध श्लोक “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” पर कौन संस्कृति परंपरावादी गर्व नही करेगा जहां मनु ने कहा है- जिस परिवार में नारियों का आदर सम्मान होता है वहां देवता वैभव समृद्धि निवास करती हैं दिव्य पदार्थ वहां प्राप्त होते हैं जहा उनका आदर नहीं होता वहां सब क्रियाएं निष्फल हो जाती है।
मनुस्मृति के इस श्लोक को हमने अपने मनु महोत्सव 2025 के प्रचार होर्डिंग पर भी अंकित किया था।
हमने 4 अप्रैल से लेकर 6 अप्रैल 2025 को आयोजित ऐतिहासिक मनु महोत्सव में शिक्षा समाज संस्कृति के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने वाली विदुषी माता बहनों बेटियों को सम्मानित किया इतना ही नहीं हमारे शुभारंभ सत्र की भी प्रथम अतिथि वक्ता कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खेरली गौतम बुद्ध नगर (यही संस्था मनु महोत्सव का आयोजन स्थल थी) की प्रधानाचार्य भगवती देवी जी रही जो 35 वर्षों से उस संस्था की सेवा कर रही है जिन्होंने हजारों बेटियों को साक्षर किया उनकी छात्रा रही सैकड़ो बेटियां राजकीय शिक्षा व अन्य सेवाओं में सेवा दे रही है।
मनु के काल में उसके पश्चात तक जब तक मनु की दण्ड व सामाजिक व्यवस्था रही स्त्रिया सुरक्षित सुखी रही आज भारत में स्त्रियों की सुरक्षा को लेकर क्या स्थिति है यह सभी के सामने है महिलाओं के लिए कितने विभाग मंत्रालय समर्पित होने के पश्चात भी भारत ही क्या यूरोप अमेरिका अफ्रीका मध्य पुर्व में भी महिलाओं के विरुद्ध अपराध हिंसा आदि की नई-नई तरकीबें सामने आती हैं।
लेखक – आर्य सागर
तिलपता ग्रेटर नोएडा।

लेखक सूचना का अधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता है।