Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम, अध्याय 27 , राम द्वारा विभीषण का स्वागत

विभीषण जी के आगमन पर हनुमान जी ने उनके उदार चरित्र और धर्म प्रेमी व्यक्तित्व के विषय में रामचंद्र जी को पहले ही सब कुछ बता दिया था। न्याय, नीति और धर्म में निपुण विभीषण जी का उनके व्यक्तित्व के अनुरूप सम्मान करने के लिए रामचंद्र जी ने भी मन बना लिया । रामचंद्र जी […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय 26 : विभीषण का निष्कासन

जब रावण के सभी दरबारी चाटुकारिता करते हुए उसकी हां में हां मिलाने का कार्य कर रहे थे, तब विभीषण जी ने खड़े होकर न्याय, नीति और धर्म की बात करना उचित समझा। उन्होंने अपने भाई रावण को समझाते हुए कहा :- विभीषण ने  तब  रख दिए,  हृदय  के  उद्गार। राम को कोई जीत ले,  […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय 25 ,रावण की मंत्रणा

  उधर रावण भी अब भली प्रकार यह समझ गया था कि जिस राम को वह केवल एक वनवासी मान कर चल रहा था वह कोई हल्का-फुल्का व्यक्ति नहीं है। उसके पास आध्यात्मिक शक्ति भी है, साथ ही साथ बौद्धिक शारीरिक और सैनिक बल में भी वह कम नहीं है। उसके द्वारा भेजे गए हनुमान […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मदर ऑफ डेमोक्रेसी अर्थात लोकतंत्र की जननी है भारत*

(डॉ. राघवेन्‍द्र शर्मा-विनायक फीचर्स) भारत के लिए यह गौरव का विषय है कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। यह भी सर्वविदित है कि दुनिया में हमारे देश को मदर ऑफ डेमोक्रेसी अर्थात लोकतंत्र की जननी भी कहा जाता है। जाहिर है इसका श्रेय हमारी सामाजिक व्यवस्था और जागरूक अवस्था को जाता है। यही […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम , अध्याय 24 – लंका चढ़ाई की तैयारी

रामचंद्र जी ने हनुमान जी के लंका से सकुशल लौट आने और सीता जी के बारे में सारी जानकारी हनुमान जी से लेकर सर्वप्रथम उन्होंने हनुमान जी का ही अभिनंदन किया। अब उनके सामने एक ही चुनौती थी कि किस प्रकार लंका के राजा रावण का विनाश किया जाए और सीता जी को वहां से […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय 23 , हनुमान लंका जलाकर लौट आए राम के पास

हनुमान जी ने रावण की लंका को जलाया । इसका अभिप्राय यह नहीं है कि उन्होंने सारे लंका देश को ही जलाकर समाप्त कर दिया था। भारतीय धर्म और परंपरा भी ऐसा नहीं कहती कि निरपराध लोगों को आप अपने बल के वशीभूत होकर समाप्त कर दें। हमारे यहां पर संध्या में भी ‘यशोबलम’ की […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय 22 , हनुमान जी का अशोक वाटिका में उत्पात

हनुमान जी कूटनीति में बहुत निपुण थे। सीता जी से वार्तालाप करने के पश्चात वह अब राम जी के पास लौटने का मनोरथ बना चुके थे, पर तभी उनके मस्तिष्क में एक नया विचार आया। उन्होंने सोचा कि किसी प्रकार रावण से भी भेंट होनी चाहिए । जिससे कि उसके बल की भी जानकारी मिल […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

ओ३म् “ईश्वराधीन कर्म-फल व्यवस्था व उससे मिलने वाले सुख व दुःखों पर विचार”

=========== संसार में मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जड़-चेतन जगत क्रियाशील हैं। सृष्टि पंचभौतिक पदार्थों से बनी है जिसकी ईकाई सूक्ष्म परमाणु है। यह परमाणु सत्व, रज व तम गुणों का संघात है। इन्हीं परमाणुओं से अणु और अणुओं से मिलकर त्रिगुणात्मक प्रकृति व सृष्टि का अस्तित्व विद्यमान है। परमाणु में इलेक्ट्रान कण भी निरन्तर […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय 21 , हनुमान – सीता संवाद

सीता जी के साथ संवाद करते हुए हनुमान जी ने उन्हें पूर्ण विश्वास दिला दिया कि वह कोई मायावी मनुष्य नहीं हैं अपितु श्री राम जी के दूत के रूप में उनके समक्ष उपस्थित हैं। सीता जी को जब यह विश्वास हो गया कि हनुमान जी रामचंद्र जी के द्वारा ही भेजे गए हैं तो […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम अध्याय __ 20 , हनुमान जी का सीता जी से वार्तालाप

हनुमान जी पेड़ पर बैठे हुए सीता जी और रावण के संवाद को सुन चुके थे। उसके पश्चात की घटना और वार्तालाप को भी उन्होंने बड़े ध्यान से सुना। अब उनके सामने समस्या एक थी कि यदि वे सीधे सीता जी के समक्ष उपस्थित हो गए तो वे उन्हें एक अपरिचित व्यक्ति समझकर उनसे डर […]

Exit mobile version