Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय , 38 कुंभकर्ण का वध

कुंभकर्ण ने अपने भाई विभीषण को अपने आगे से सम्मान पूर्वक शब्दों के माध्यम से हटा दिया। कुंभकर्ण जानता था कि इस महाविनाशकारी युद्ध में उसके सहित सारी राक्षस सेना मारी जाएगी। अंत में रावण भी मारा जाएगा। ऐसे में विभीषण को सुरक्षित रहना चाहिए। अतः अच्छा यही होगा कि मैं उन पर किसी प्रकार […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय , 37 : कुंभकर्ण रावण संवाद

रामचंद्र जी यद्यपि बहुत ही सौम्य प्रकृति के व्यक्ति थे, पर उनके भीतर आज सात्विक क्रोध अर्थात मन्यु अपने चरम पर था। वीरों का क्रोध भी सात्विक होता है। जिसमें नृशंसता , क्रूरता , निर्दयता और अत्याचार की भावना दूर-दूर तक भी नहीं होती। उन्हें क्रोध भी लोक के उपकार के लिए आता है। उनका […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय – 36 , रावण चरित् और रामायण

अभी तक वानर दल का कोई भी सेनापति या योद्धा लंकाधिपति रावण के बल की थाह नहीं कर पाया था। जिस रावण की उपस्थिति में हनुमान जी ने लंका में आग लगा दी थी , आज उसी रावण को उनका वानर दल टस से मस नहीं कर पा रहा था। इससे हनुमान जी स्वयं भी […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम , अध्याय – 35: युद्ध क्षेत्र के लिए रावण का प्रस्थान

रावण अपनी मूर्खता और अहंकार के कारण दिन प्रतिदिन अपने अनेक साथियों को खोता जा रहा था। उसके अनेक वीर योद्धा स्वर्ग सिधार चुके थे। यद्यपि ऊपरी तौर पर वह अभी भी घमंड के वशीभूत होकर पराजित होने का नाम नहीं ले रहा था। पर भीतर ही भीतर वह टूट चुका था। उसे अपने कर्मों […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय – 34 ,रावण के अनेक वीरों का अंत

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने से वानर दल में खुशी की लहर दौड़ गई। अब उन्हें यह विश्वास हो गया कि अगले दिन होने वाले युद्ध में उनकी विजय निश्चित है। रावण के गुप्तचरों ने उसे जाकर बता दिया कि राम और लक्ष्मण दोनों भाई स्वस्थ हो गए हैं और […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय 33 , राम लखन को शरबंध से बांधना

वाल्मीकि कृत रामायण से हमें पता चलता है कि मेघनाद ने अगले दिन क्रोध में भरकर सर्प के समान भीषण बाणों से राम और लक्ष्मण को युद्ध में बींध डाला । कपटी योद्धा इंद्रजित ने चालाकी से अपने आप को सभी सैनिकों की दृष्टि से ओझल रखते हुए राम और लक्ष्मण को शरबंध से बांध […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय 32 , अंगद की वीरता

बाली पुत्र अंगद बहुत ही वीर थे । रामायण में उनकी वीरता को कवि ने बड़े ही प्रशंसनीय शब्दों में प्रस्तुत किया है। उनकी वीरता का लोहा स्वयं रावण ने की माना था। रावण ने उन्हें धर्म के पक्ष से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पक्ष से हटाकर अधर्म के साथ अर्थात अपने साथ जोड़ने […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय 30, माल्यवान का रावण को उपदेश

माल्यवान रावण का नाना था। वह बहुत बुद्धिमान था । माल्यवान जानते थे कि रावण ने जो कुछ भी किया है ,रामचंद्र जी उसका दंड उसे अवश्य देंगे। वह यह भी जानते थे कि यदि उस दंड को अकेला रावण भोग ले तो कोई बात नहीं। पर इस समय रावण के साथ-साथ उसके राज्य की […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय 29, रावण के मायावी खेल

रावण अधर्म की और अनीति की ओर निरंतर बढ़ता जा रहा था। वह कभी गुप्तचर भेजता तो कभी धर्म और अनीति का कोई दूसरा काम करता । इस बार उसने रामचंद्र जी का एक नकली शीश काटकर सीता जी के पास भेज दिया। लंकेश अधर्मी कर रहा , बड़े-बड़े अपराध। शीश नकली राम का, भेजा […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत

मेरे मानस के राम : अध्याय 28, रावण के गुप्तचर और श्रीराम

इसी समय शुक और सारण नाम के दो गुप्तचर फिर रामचंद्र जी की गुप्त सूचनाओं लेने के लिए आ गए। रामचंद्र जी ने इस बार फिर अपनी उदारता का परिचय दिया और उनसे बड़े प्यार से कह दिया कि यदि आप सफल मनोरथ हो गए हो तो ससम्मान अपने देश लौट जाओ। वास्तव में रामचंद्र […]

Exit mobile version