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विश्वगुरू के रूप में भारत

विश्व में वेदों के प्रचार का श्रेय महर्षि दयानंद और आर्य समाज को है

ओ३म् —————— पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद वेदों का सत्यस्वरूप विस्मृत हो गया था। वेदों के विलुप्त होने के कारण ही संसार में मिथ्या अन्धविश्वास तथा पक्षपात व दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्थायें फैली हैं। इससे विद्या व ज्ञान में न्यूनता तथा अविद्या व अज्ञानयुक्त मान्यताओं में वृद्धि हुई है। आश्चर्य होता है […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

ईश्वर के सत्य स्वरूप और ज्ञान का प्रकाश सर्वप्रथम वेदों द्वारा किया गया

ओ३म् ========== संसार की अधिकांश जनसंख्या ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करती है। बहुत बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी किसी न किसी रूप में इस सृष्टि को बनाने व चलाने वाली सत्ता के होने का संकेत करते हुए उसे दबी जुबान से स्वीकार करते हैं। हमारा अनुमान व विचार है कि यदि यूरोप के वैज्ञानिकों ने वेदों […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

विदेशियों ने भी गाए हैं भारत की महानता के गीत

  जो लोग भारत में इतिहास के गलत लेखन के माध्यम से या तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए यह लिखते नहीं थकते कि भारत पर पश्चिम के बहुत एहसान हैं और उन एहसानों के कारण ही भारत आज का भारत बन पाया है ? उन्हें पश्चिम के ही न्याय […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

वेदों में निर्दिष्ट नागरिकों के मौलिक राष्ट्रीय कर्तव्य

प्रस्तुति : आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक ● Vedas hint national duties of citizens ● ● वयं राष्ट्रे जागृताम पुरोहिताः । – यजुर्वेद : 9.23 अर्थ : हम राष्ट्र के बुद्धिमान् नागरिक अपने राष्ट्र में सर्वहितकारी होकर अपनी सद्प्रवृत्तियों के द्वारा निरन्तर आलस्य छोड़कर जागरूक रहें । ———————————- ऋग्वेद आदि चार मूल वेद संहिताएं संसार के […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

हिंदू राष्ट्र ही है एकमात्र विकल्प

———————————– अकरम जो दिल्ली के मालिक केजरीवाल के यहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर है ,ये हमारी छाती में बैठकर पाकिस्तान और गजवा -ए-हिन्द का समर्थन कर रहा है ,जिसके ऊपर सरकार कोई कार्यवाही नही कर रही है,अपनी आवाज बुलंद कीजिये जिससे सरकार अपनी नींद से जागे!! अंग्रेजों द्वारा थोपे गए संविधान और शासन तंत्र को इसी प्रकार […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

वैदिक सृष्टि संवत अथवा हिंदू नव वर्ष के पावन अवसर पर

आज वैदिक सृष्टि संवत के अनुसार 1अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 1 सौ 21वां वर्ष प्रारंभ हो रहा है । भारत में अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे- विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवीं सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि। इसके अतिरिक्त संसार में भी अनेकों कैलेंडर प्रचलित हैं ,लेकिन यह सर्वमान्य […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

कोरोना के आतंक को देखकर अब समझ में आया कि हमारे पूर्वज ऐसा क्यों करते थे ?

डॉ उमेश उपाध्याय , मास्को1. शौचालय और स्नानघर निवास स्थान के बाहर होते थे।2.क्यों बाल कटवाने के बाद या किसी के दाह संस्कार से वापस घर आने पर बाहर ही स्नान करना होता था बिना किसी व्यक्ति या समान को हाथ लगाए हुए।3. क्यों पैरो की चप्पल या जूते घर के बाहर उतारा जाता था, […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

संस्कृत भाषा है भारत के प्राण

‘एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला’ अर्थात शस्त्र और शास्त्र का उचित समन्वय बनाना आर्य हिंदू संस्कृति का एक बहुत ही गहरा संस्कार है । भारत की चेतना में यही संस्कार समाविष्ट रहा है । इसी संस्कार ने समय आने पर भारत में संत को भी सिपाही बनाने में देर नहीं की […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-64

उपरोक्त लेखक आगे लिखते हैं कि-”रोम में कैथोलिकों की जनसंख्या लगभग पच्चीस लाख (1978 में) है। यहां प्रतिवर्ष सत्तर नये पादरी निर्माण किये जाते थे। जब 1978 में लुसियानी (जॉन पॉल प्रथम) पोप बने तब मात्र छह पादरी ही निर्माण होते थे। वस्तुत: शहर के अधिकांश क्षेत्रों में पैगन (अर्थात मूत्र्तिपूजक हिन्दू लोग) भरे थे […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-63

इतनी बड़ी संख्या में समाजसेवी संगठनों के होने के उपरान्त भी यदि परिणाम आशानुरूप नहीं आ रहे हैं तो यह मानना पड़ेगा कि कार्य उस मनोभाव से या मनोयोग से नहीं किया जा रहा है-जिसकी अपेक्षा की जाती है। हमें अपने सामाजिक स्वयंसेवी संगठनों की कार्यशैली को सुधारना होगा। जातिगत आधार पर बनने वाले सामाजिक […]

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