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विश्वगुरू के रूप में भारत

एशिया महाद्वीप में आज भी हावी प्रभावी हैं प्राचीन भारत की मान्यताएं

डॉ. एन.एस.शर्मा इ तिहास के पन्ने साक्षी हैं कि विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का लोप हो जाने के बावजूद अपने अंतर्निहित शाश्वत तत्वों के कारण भारतीय संस्कृति आज भी अक्षुण्ण है। भारतीयों के पर्वत और आकाश की ऊंचाइयों को नापकर और समुद्र की गइराईयों को पार करके दक्षिण मध्य एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

भारत की वास्तुकला संसार के लिए आज भी कौतूहल का विषय है

वास्तु ! भारत की अद्भुत देन 📚 देश ही नहीं, अब दुनिया में भी एक आवश्यकता हो गया है भारतीय वास्तु शास्त्र। मिस्र, मारिशस, कम्बोडिया आदि के साथ रूस में भारतीय वास्तु शास्त्र के पठन पाठन और अभ्यास की खास चेतना जागी है। फेंगशुई के चक्र को निराधार समझ कर भारतीय ज्ञान विरासत पर वैश्विक […]

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भारतीय संस्कृति विश्वगुरू के रूप में भारत

प्राचीन काल से ही रही है वेदों में सूर्य किरण चिकित्सा की व्यवस्था

(श्री आचार्य शिव पूजन सिंह कुशवाहा) सूर्य किरण से नाना प्रकार के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। वाष्प स्नान से जो लाभ होता है वही लाभ धूप स्नान से होता है। धूप स्नान से रोम कूप खुल जाते हैं और शरीर से पर्याप्त मात्रा में पसीना निकलता है और शरीर के अन्दर का दूषित पदार्थ […]

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मुद्दा विश्वगुरू के रूप में भारत

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर बनने वाला राम मंदिर जाना जाएगा राष्ट्र मंदिर के रूप में भी

  प्रहलाद सबनानी भारत में सनातन धर्म का गौरवशाली इतिहास पूरे विश्व में सबसे पुराना माना जाता है। कहते हैं कि लगभग 14,000 विक्रम सम्वत् पूर्व भगवान नील वराह ने अवतार लिया था। नील वराह काल के बाद आदि वराह काल और फिर श्वेत वराह काल हुए। पूज्य भगवान श्रीराम हमें सदैव ही मर्यादा पुरुषोत्तम […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत वैदिक संपत्ति

चितपावन ब्राह्मणों के बारे में

  गतांक से आगे… हिंदुस्तान में आ जाने पर द्रविड़ों के साथ मेलजोल होने से उनकी गणना पच द्रविड़ो में हो गई । जहां नई बस्ती होती है, वहीं पर सब जातियों की वर्गाकार बस्ती बन सकती है ।इस तरह की पद्धतिवार बस्ती वाले गांव कोकण में ही है।इससे सिद्ध हो जाता है कि कोकणस्थ […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

भारत के महान ज्योतिष आचार्य – वराह मिहिर

महान् ज्योतिषाचार्य — वराहमिहिर वराहमिहिर का जन्म पाँचवीं शताब्दी के अन्त में लगभग 556 विक्रमी संवत् में तदनुसार 499 ई. सन् में हुआ था। इनका स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) से 20 किलोमीटर दूर कायथा (कायित्थका) नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम आदित्य दास और माता का नाम सत्यवती था। इनके माता-पिता सूर्योपासक […]

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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत

भारतीय गणित की प्राचीनता, ऐतिहासिकता और विशेषताएं

कुमार गंधर्व मिश्रा ( लेखक गणित के शोधार्थी हैं) ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि सभ्यताओं के विकास और विस्तार में गणित ने भी अमूर्त रूप से भूमिका निभाई है, वास्तव में किसी सभ्यता के विकास का अंदाजा वहां पर पनपी गणितीय संस्कृति से भी लगाया जा सकता है। लगभग 3000 ई. पू. की सिंधु […]

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देश विदेश विश्वगुरू के रूप में भारत

अनेक प्राच्य भारतीय विद्याओं के अधिकृत जानकार रहे हैं श्वेत ऋषियों के देश सोवियत रूस में

  स्व हरवंशलाल ओबेरॉय   रूस आर्यों की पश्चिम यात्रा का यूरोप में प्रथम पड़ाव है। मनु के जल प्लावन के समय जब भारत, अरब ईरान का अधिकांश भाग, मध्यपूर्व के देश आदि जलमग्न हो गए थे तब आर्यों की पश्चिमोन्मुखी शाखा को, जहाँ काकेशस पर्वत की तलहटी में, कश्यप सागर के तट पर शरण […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

भारतीय ऋषियों ने समझ लिया था हमारी जैविक घड़ी का रहस्य

  पूनम नेगी कभी सोचा है कि क्यों रात को एक तय समय पर पलकें झपकने लगती हैं और सुबह एक तय समय पर खुद व खुद हमारी आंखें खुल जाती हैं। हम ही नहीं पशु-पक्षियों और वृक्ष-वनस्पतियों का जीवनक्रम भी एक सुनिश्चित प्राकृतिक लय के अनुरूप ही चलता है। यह चमत्कार होता है एक […]

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भारतीय संस्कृति विश्वगुरू के रूप में भारत

प्राचीन काल से ही वास्तु एवं स्थापत्य का संगम रहा है राजस्थान

  विवेक भटनागर ऐतिहासिक रूप से मेवाड़ या शिबि जनपद का भारतवर्ष की राजनीति में अत्यन्त व्यापक प्रभाव है। इस जनपद का वर्णन स्ट्रेबो ने अपनी इण्डिका में शिबोई जन के रूप में किया है। यहां पर स्थापत्य का विकास क्रम इतिहासिक रूप से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से आगे जाता है। इस क्षेत्र में […]

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