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विधि-कानून

कब तक महिलाएं सामाजिक हिंसा का शिकार होंगी?

तानिया चोरसौ, गरुड़ उत्तराखंड हाल ही में झारखंड की राजधानी रांची के रहने वाले एक पिता प्रेम गुप्ता ने जिस तरह से शादी के नाम पर धोखाधड़ी की शिकार हुई अपनी बेटी को धूमधाम से गाजे-बाजे के साथ ससुराल से वापस लाने का काम किया है, वह न केवल सराहनीय है बल्कि महिला हिंसा के […]

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अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या में भागीदारी!

बीते दिनों एक तमिल पत्रकार और ब्लॉगर बद्री शेषाद्रि के एक इंटरव्यू में भारत के मु न्या (मुख्य न्यायधीश) पर कहे गए अपने कथन के कारण तमिल सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (दंगे भड़काने के इरादे से उकसाना), 153 ए (1) (ए) (समूहों के […]

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विधि-कानून

क्या कांग्रेस नेता की मनमानी भाषण, अभिव्यक्ति, की स्वतंत्रता है ?

✍️ डॉ. राधे श्याम द्विवेदी जी हां , हमारे भारतीय गणतंत्र के सर्वोच्च न्यायालय में यह दलील है देश के जाने माने कांग्रेसी नेता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने रखा है, जिहोने सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के हरफन मौला और मनमानी भाषण देने वाले नेता श्री राहुल गांधी जी के मानहानि की सजा को […]

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विधि-कानून

न्यायालयों की सुरक्षा और अपराध

प्रभुनाथ शुक्ल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में स्वयं माफियाराज खत्म करने का दावा करते हैं। सरकार यह ढिंढोरा पीटती है कि राज्य से अपराध का समूल सफाया हो गया है। लेकिन तस्वीर इसके उलट है। अदालतें और जेल भी सुरक्षित नहीं है। लखनऊ के कौसरबाग़ की अदालत में हुईं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के माफिया […]

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महत्वपूर्ण लेख विधि-कानून

ईडी और सीबीआई छापे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसले से भ्रष्ट नेता पड़े अलग-थलग : भविष्य में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को और मिलेगा बल

अशोक मधुप हाल ही में मानहानि के एक मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को न्यायालय ने दो साल की सजा सुनाई। सजा न्यायालय ने की किंतु सभी दल एक सुर में दोष केंद्र सरकार और भाजपा को दे रहे हैं। कांग्रेस तो इस मामले को लेकर आंदोलन भी शुरू कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट […]

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विधि व्यवसाय अथवा वकालत में प्रगति के कुछ पहलू

ऋषिराज नागर (एडवोकेट) हमारे देश में विधि-व्यवसाय या वकालत एक सम्मानजनक व्यवसाय या कार्य है। इसलिए वकील को इस पेशे की मर्यादा का ध्यान रखकर मेहनत – ईमानदारी,लगन के साथ अपना कार्य करना पड़ता है। शुरुआत – “सर्वप्रथम वकील को समय पर अपने आफिस जाना चाहिए, जो भी वादकारी वकील के आफिस पर अपना कार्य […]

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कॉलेजियम सिस्टम और न्यायपालिका

क्या कलीजियम सिस्टम से जुडिशरी को है खतरा? सुधांशु रंजन वर्ष 1993 से पहले तक हमारे देश में जज खुद जजों की नियुक्ति नहीं करते थे। यह काम सरकार करती थी। उस समय सरकार नए जजों की नियुक्ति, उनके ट्रांसफर और उनके प्रमोशन की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को भेजती थी। फिर […]

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सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में अपना प्रतिनिधि क्यों चाहती है केंद्र सरकार?

गौतम मोरारका देखा जाये तो उच्चतम न्यायालय की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री के बयान के बाद कुछ पूर्व न्यायाधीशों ने भी इस मुद्दे पर बयान दिये जिस पर न्यायालय ने नाखुशी भी जताई थी। केंद्रीय कानून मंत्री ने मुख्य न्यायाधीश को […]

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नफरती बयानों पर तुरंत रोक लगे

डॉ. वेदप्रताप वैदिक सर्वोच्च न्यायालय का सरकार से यह आग्रह बिल्कुल उचित है कि नफरती बयानों पर रोक लगाने के लिए वह तुरंत कानून बनाए। यह कानून कैसा हो और उसे कैसे लागू किया जाए, इन मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि संसद, सारे जज और न्यायविद् और देश के सारे बुद्धिजीवी मिलकर […]

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न्यायतंत्र बनाम राजतंत्र से लोकतंत्र खतरे में

के. विक्रम राव यदि सर्वोच्च न्यायालय और संसद परस्पर उदार सहयोग करने पर गौर नहीं करते हैं तो भारत के संवैधानिक इतिहास में भयावह विपदा की आशंका सर्जेगी। न्यायपालिका और विधायिका का आमना-सामना तीव्रतर होना लोकतंत्र पर ही प्रश्न लगा देगा। राज्यसभा में NJAC (जजों की नियुक्ति-आयोग) पर कड़वी बहस से ऐसे ही आसार उभरे […]

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