गतांक से आगे… शतपथब्राह्मण में लिखा है कि– यदा पिष्टान्यथ लोमानि भवन्ति। यदाप आनयति अथ त्वग्भवति । यदा स यौरवच मांसं भवति । संतत इब हि तहि भवति संततमिव हि मांसम् । यातोऽचास्थि भवति दारूण इव हि तर्हि भवति दारुणमिध्यास्थि । अथ यदुद्वासयत्रभिधारयति तं मञ्जानं ददाति । एषो सा संपचदाहुः पक्तिः पशुरिति । अर्थात् जो […]
Category: वैदिक संपत्ति
गतांक से आगे…. सभी भाषाशास्त्री चाहते हैं कि यदि थोड़े से शब्दों के ही द्वारा संसार का काम चल जाय तो अच्छा । किन्तु पदार्थसाम्य से भिन्न – भिन्न पदार्थों का नाम एक ही शब्द के द्वारा रखने में बहुत ही ऊँचे ज्ञान की आवश्यकता है । अभी थोड़ी देर पहले हम लिख आये हैं […]
इतिहास पशु हिंसा और अश्लीलता गतांक से आगे…. जिस प्रकार गौ शब्द के अनेक अर्थ हैं, उसी तरह वृषभ शब्द भी अनेक अर्थों में आता है। यहां हम वैद्यक के ग्रन्थों से दिखलाते हैं कि संस्कृत में जितने शब्द बैल के अर्थ में आते हैं, वे सब काकड़ासिंगी औषधि के लिए भी प्रयुक्त हुए हैं। […]
इतिहास पशु हिंसा और अश्लीलता गतांक से आगे…. वैदिक कोष निघण्टु के देखने से ज्ञात होता है कि वेद में मेघ को अद्रि, अश्मा, पर्वत, गिरि और उपल भी कहते हैं। परन्तु ये सब शब्द लोक में पहाड़ों के लिए ही व्यवहार में पाते हैं। इसी तरह वेद में सगर और समुद्र शब्द अन्तरिक्ष के […]
गतांक से आगे….. हम लिख आये हैं कि रावणादि ने मांसयज्ञ प्रचलित कर दिया था और उसका, अनार्य म्लेच्छों में खूब प्रचार था । हेमाद्रि- रामायण में लिखा है कि पूर्वसमय में अनार्य म्लेच्छों के संसर्ग से पतित हुआ पर्वतक नामी ब्राह्मण मरुत् राजा के पुत्र वसु राजा का सहपाठी होकर अन्त में उसका उपाध्याय […]
गतांक से आगे ….. (3) वेदों में स्पष्ट उल्लेख है कि मांस जलानेवाली अग्नि यज्ञों में न प्रयुक्त होने पायें मांस जलानेवाली अग्नि बहुत करके चिताग्नि ही होती है । जब वेदों में चिता की अग्नि तक को यज्ञों में लाने का निषेध है, तब मनुष्यमास अथवा पशुमांस से यज्ञ करने की कैसे आज्ञा हो […]
वैदिक सम्पत्ति वेद मंत्रों के अर्थ,भाष्य और टिकाऍ गतांक से आगे …. दोनों भाष्यकारों ने चारों परीक्षाओं का उपयोग नहीं किया, तथापि स्वामी दयानन्द का हेतु बड़ा पवित्र है । यद्यपि लोग कहते हैं कि उनसे संस्कृत व्याकरण की भूलें हुई हैं और उन्होंने वेदमन्त्रों का अर्थ भी बदल दिया, है, किन्तु इस बात में […]
गतांक से आगे … ऋषि, देवता आदि के आगे बढ़ते ही मन्त्रों पर दृष्टि पड़ती है और दिखलाई पड़ता है कि थोड़े – थोड़े मन्त्र एक -एक सूक्त अथवा अध्याय में और अनेक सूक्त अनेक मण्डलों में ग्रथित हैं । हम शाखाप्रकरण में लिख आये हैं कि यह काम आदिशाखा प्रचारकों ने ही किया है […]
मंडल, अध्याय और सूक्त आदि गतांक से आगे …. वेदों के छंद बड़े विचित्र हैं । प्रायः ऋग्वेद के मन्त्र जब पदपाठ अर्थात् सन्धिविच्छेद से पढ़े जाते हैं, तो शुद्ध प्रतीत होते हैं, पर जब ज्यों के त्यों संधि सहित पढ़े जाते हैं, तो घट बढ़ जाते हैं। इसी तरह यजुर्वेद अध्याय 40 के पर्यगाच्छुक्र० […]
गतांक से आगे …. ऋषि के आगे देवता हैं । देवता के विषय में सर्वानुक्रमरगी में लिखा है कि ‘या तेनोच्यते सा देवता’ अर्थात् मंत्र में जिस विषय का वर्णन हो, वही विषय उस मंत्र का देवता है । यदि किसी मन्त्र का देवता अग्नि हो, तो समझना चाहिये कि इस मन्त्र में अग्नि का […]