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वैदिक सम्पत्ति-296 (चतुर्थ खण्ड – वेदाे की शिक्षा) समाज और साम्राज्य की रक्षा (वेद मंत्र)

(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं ) प्रस्तुति: देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’ ) गतांक से आगे.. इससे आगे संसार की दोनों ताकते – सर्दी और गर्मी – इस प्रकार बतलाई हैं- अप्सु मे सौमो अब्रवीदन्तविश्वानि भेषजा […]

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वैदिक सम्पत्ति-296 (चतुर्थ खण्ड) जीविका, उद्योग और ज्ञानविज्ञान

(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं ) प्रस्तुति: देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’ ) (वेदमंत्रों के उपदेश) गतांक से आगे… समाज और साम्राज्य की रक्षा उपर्युक्त आदर्श वैदिक आर्यसमाज का पवित्र चित्र देखकर उसकी रक्षा का प्रश्न […]

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वैदिक सम्पत्ति (चतुर्थ खण्ड) जीविका,उद्योग और ज्ञानविज्ञान

(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं ] प्रस्तुति: देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गतांक से आगे….. इसके आगे राशिचक्र का वर्णन इस प्रकार है- नाभि यज्ञानां सदनं रयीणां महामाहावमभि सं नवन्त । वैश्वानरं रथ्यमध्वराणां यज्ञस्य केतु जनयन्त […]

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वैदिक सम्पत्ति (चतुर्थ खण्ड) जीविका,उद्योग और ज्ञानविज्ञान

(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं ] प्रस्तुति: देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गतांक से आगे….. इसके आगे नक्षत्रों का वर्णन इस प्रकार है- यानि नक्षत्राणि दिव्य१न्तरिक्षे अप्सु भूमौ यानि नगेषु दिक्षु । प्रकल्पय श्रवन्द्रमा यान्येति सर्वाणि […]

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वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे…

इसीलिए वेद में विविध प्रकार के कारीगरों को मानपान देने की आज्ञा इस प्रकार दी गई है- नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो नमः कुलालेभ्यः कमरेभ्यश्च वो नमो । नमो निषादेभ्यः पुञ्जिष्ठेभ्यश्च वो नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः ।। (यजु० 16/27) अर्थात् तक्षा, रथकार, कुलाल, बढ़ई, निषाद और अन्य छोटे बड़े कारीगरों का सत्कार हो । […]

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वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे.

.. यहाँ हमने तीन मन्त्र उद्धत किये हैं, जिनमें क्रम से दो-दो और चार-चार बढ़ाकर एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, सत्रह, इक्कीस, पचीस, उनतीस और तेंतीस आदि तथा चार, ग्राठ, बारह, सोलह, बीस, चोबीस, बत्तीस, चालीस, चवालीस और अड़तालीस आदि संख्याओं का वर्णन किया गया है। इसी तरह ॠग्वेदवाले मन्त्र में निन्यानवे का […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे …..

जीविका, उद्योग और ज्ञानविज्ञान जीविका उत्पन्न करने के लिए सवको कृषि, पशुरक्षा और वाणिज्य का ही सहारा लेना पड़ता है। कृषि, पशुपालन और व्यापार पृथिवी की उपज से ही सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए बिना भौगोलिक ज्ञान के जीविका का प्रश्न हल नहीं हो सकता । वेदों में भौगोलिक शिक्षा इस प्रकार दी गई है- पृच्छामि […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे…

शिर के विषय में वेद में लिखा है कि- तद्वा अथर्वणः शिरो देवकोशः समुब्जितः । तत् प्राणो अभिरक्षति शिरो अन्नमथो मनः ॥ (अथर्व० 10/2/27) अर्थात् ज्ञान का केन्द्र शिर है जो देवताओं का सुरक्षित कोश है। इस कोश की प्राण, मन और अन्न रक्षा करते हैं। ऐसे ज्ञानकोश शिर की वृद्धि के समय से गर्भिणी […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे….

इन मंत्रों के द्वारा इस रहस्यपूर्ण कृत्य का वर्णन करके आगे वेद उपदेश करते हैं कि जब पति पत्नी गर्भस्थापन से निवृत्त हो जाय, तब वस्त्रों को धो डालें और दोनों स्नान करके गार्हपत्याग्नि में हवन करें तथा पति विनम्र भाव से परमेश्वर की इस प्रकार प्रार्थना करे कि विष्णुर्योनि कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिशतु । […]

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वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे…

इन उपदेशों को अश्लील न समझना चाहिये । आगे इसी विवाहप्रकरण में गर्भाधानसंस्कार के लिए देता है कि- आ रोह तल्पं सुमनस्यमानेह प्रजां जनय पत्ये अस्मै। इन्द्राणीव सुबुधा बुध्यमाना ज्योतिरगरा उषसः प्रति जागरासि । (अथर्व० 14/2/31) देवा अग्रे न्यपद्यन्त पत्नी: समस्पृशन्त तन्वस्तनूभिः । सूर्येव नारि विश्वरूपा महित्वा प्रजावती पत्या सं भवेद् ॥ (अथर्व ० 14/2/32) […]

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