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वैदिक संपत्ति : अध्याय -आसुर उपनिषद की उत्पत्ति

गतांक से आगे… इसके आगे लिखा है कि – तस्मादप्यद्येहाददान मश्रद्दधानमयज मानमाहुरासुरो बतेत्यसुराणां ह्मेषोपनिषत्प्रेतस्य शरीरं भिक्षया वसनेनालंकारेणेति संस्कुर्वन्त्येतेन ह्ममुं पलोंक जेष्यन्तो मन्यन्त इति॥ ( छान्दोग्य 8/8/5) अर्थात यही कारण है कि आज कल भी असुर लोग न दान में श्रद्धा रखते हैं और न यज्ञ करते हैं। लोग उनके इस ज्ञान को आसुर उपनिषद कहते […]

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आसुर उपनिषद की उत्पत्ति

आसुर उपनिषद की उत्पत्ति गतांक से आगे… छान्दोग्य उपनिषद में विस्तारपूर्वक लिखा है कि इन्द्र (आर्य) और विरोचन (अनार्य) दोनों मिलकर किसी के पास ज्ञान सीखने गये। गुरु ने उनकी पात्रता और कुपात्रता की परीक्षा की। इन्द्र संस्कृत आत्मा और विरोचन मलिनआत्मा निकला और ज्ञान के ग्रहण करने में असमर्थ सिद्व हुआ। गुरु ने परीक्षार्थ […]

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सम्प्रदाय परिवर्तन : गीता और उपनिषदों में मिश्रण

वैदिक संपत्ति गतांक से आगे… जिस तरह उपनिषदों में मिलावट है, उसी तरह गीता में भी मिलावट है।इस जमाने में लोकमान्य तिलक जैसा गीता का विद्यार्थी और दूसरा नहीं हुआ। गीता की मिलावट के विषय में गीतारहस्य भाग 3,पृ. संख्या 536 में आप कहते हैं कि, ‘जिस गीता के आधार पर वर्तमान गीता बनी है, […]

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वैदिक संपत्ति : सम्प्रदाय प्रवर्तन

गीता और उपनिषदों में मिश्रण गतांक से आगे… इसी तरह की बात छान्दोग्य 8/ 13/1 में लिखी है कि ‘चन्द्र इव राहोर्मुखात् प्रमुच्य’अर्थात् जैसे चन्द्रमा राहु के मुख से छूट जाता है।यह दृष्टांत भी उन्हीं गैवारू बातों की चरितार्थ करता है,जो चन्द्रग्रहण के विषय में प्रचलित है। अर्थात् चन्द्रमा को राहु खा जाता है और […]

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वैदिक संपत्ति : संप्रदायप्रवर्तन

गीता और उपनिषदों में मिश्रण गतांक से आगे… गीता भी तर्क से घबराती है।वह कहती है कि, ‘संशयात्मा विनश्यति’ अर्थात संशयात्मा नष्ट हो जाती है। परंतु हम देखते हैं कि तर्कशास्त्र में संशय एक जरूरी विषय है जो सत्यासत्य के निर्णय में काम आता है। बिना संशय के तो किसी बात का निर्णय ही नहीं […]

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वैदिक संपत्ति: संप्रदायप्रवर्तन : गीता और उपनिषदों में मिश्रण

गतांक से आगे.. उपनिषदों की नवीनता का दूसरा प्रमाण तो बहुत ही स्पष्ट है। छान्दोग्य 3/17/ 6 में लिखा है कि ‘तद्वैतद् धोरआंगिरसः कृष्णाय देवकीपुत्राय’अर्थात् घोर आंगिरस के शिष्य देवकीपुत्र कृष्ण के लिए। इनमें देवकीपुत्र कृष्ण का नाम आया है।यह वाक्य कृष्ण के बाद ही लिखा गया है। हम प्रथम खण्ड में कृष्णकालीन महाभारतयुद्ध को […]

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वैदिक संपत्ति अध्याय – संप्रदाय प्रवर्तन ..गीता और उपनिषदों में मिश्रण

  गतांक से आगे… गीता के प्रमाणों से ज्ञात हुआ कि, उपनिषदों का सत् – असत् का झगड़ा परमात्मासंबंधी नहीं है, प्रत्युत वह झगड़ा भौतिक है। क्योंकि उपनिषदों में परमात्मा के लिए तो पृथक ही कह दिया गया है कि एक के मत से आदि में केवल आत्मा ही था। इस अकेले आत्मा से सृष्टि […]

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असद न असत् था, न सत् था और न रज था, प्रत्तयुत तम ही तम था

गतांक से आगे… अत: आगे एक अदितीय सत् ही था , उसी से अग्नि और जल की उत्पत्ति हुई है ।इस विवाद से पाया जाता है कि उस जमाने में आत्मा, सत् और असत् पर विश्वास करने वाले तीन संप्रदाय थे।एक ब्रहृ से, दूसरा सत् से और तीसरा असत् से संसार की उत्पत्ति मानता था। […]

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गीता और उपनिषदों में मिश्रण

गतांक से आगे… मुण्डक उपनिषद् का तृतीय मुण्डक पूर्व वैदिक है। इसमें नवम खण्ड का एक श्लोक ऋचा के नाम से लिखा गया है।सभी जानते हैं कि वेद मंत्र ही ऋचा कहलाते हैं । पर जो इस श्लोक ऋचा के नाम से लिखा गया है,उसका चारों वेदों में कहीं पता नहीं है।इससे स्पष्ट ज्ञात होता […]

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वैदिक संपत्ति : प्रस्थानत्रयी की पड़ताल

  गतांक से आगे…   जिस समय वर्तमान प्रस्थानत्रयी का सम्पादन हुआ, उस समय ने तो यह रूप इन उपनिषदों का था और ने गीता का तथा व्याससूत्रों का ही।हमारा विश्वास है कि सनातन से सहिताओं के मंत्रों को ही श्रुति कहा जाता था।क्योंकि सब लोग उन्हीं को आज तक सुनते-सुनते आ रहे हैं।उपनिषद् तो […]

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