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वैदिक संपत्ति : तृतीय खण्ड : अध्याय ब्रह्मसूत्रों की नवीनता

गतांक से आगे… वेदान्तदर्शन के अनेक सूत्र तैत्तिरीय और बृहदारण्यक उपनिषद के आधार पर बने हैं, इसलिए भी वेदान्तदर्शन वेदव्यासकृत नहीं हो सकता। क्योंकि हम रावणकृत कृष्णयजुर्वेद की उत्पत्ति के इतिहास में लिखा आए हैं कि, वह व्यास के शिष्यों के शिष्य याज्ञवल्क्य के समय में वर्तमान रूप में संपादित हुआ। अर्थात तैत्तिरीय उपनिषद वेदव्यास […]

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वैदिक संपत्ति : तृतीय खण्ड : अध्याय ब्रह्मसूत्रों की नवीनता

गतांक से आगे…. प्रस्थानत्रयी के प्रधान साहित्य उपनिषद की विशेष रीति से और दूसरे साधारण साहित्य गीता की साधारण रीति से आलोचना हो गई। दोनों साहित्य में आसुरी सिद्धांतों का मिश्रण सिद्ध हो गया। अब उक्त दोनों पुस्तकों के आसुरी सिद्धांतों को दार्शनिक रूप देने के लिए जो वेदान्तदर्शन नामी नवीन दर्शन गढ़ा गया है, […]

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वैदिक संपत्ति : आसुर उपनिषद की उत्पत्ति

गतांक से आगे…. जहां वेद कहते हैं कि ‘ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाध्नत’ अर्थात ब्रह्मचर्य से ही देवता अमृत को प्राप्त होते हैं और जहां छान्दोग्य 7/4/3 कहता है कि, तद्यएवैतं ब्रह्मलोकं ब्रह्मचर्येणानुविन्दति तेषामेवैष ब्रह्मलोकस्तेषां सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति’ अर्थात वह निश्चय ही ब्रह्मचर्य से ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं और ब्रह्मलोकवासी सब लोकों में जाने […]

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वैदिक सम्पत्ति : आसुर उपनिषद् की उत्पत्ति

गतांक से आगे…. उपनिषद और गीता के समस्त वर्णन से, कम से कम इतना तो निर्णय हो गया कि,उपनिषदों का बहुत सा भाग वैदिक नहीं है और न उनका बहुत सा भाग ब्राह्मणों द्वारा अनुमोदित ही है। इतना ही नहीं, प्रत्युत यह भी निर्णय हो गया कि, वह एक गुप्त मण्डली के द्वारा असुर प्रवृत्ति […]

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वैदिक सम्पत्ति : आसुर उपनिषद् की उत्पत्ति

गतांक से आगे… यह सारा प्रपंच अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब हम आसुर उपनिषद में लिखा हुआ पाते हैं कि, उपनिषद्विद्या को ब्राह्मण नहीं जानते थे। छान्दोग्य 5/3/7 में लिखा है कि ‘न प्राक त्वत्त पुरा विद्या ब्राह्मणन गच्छति’ अर्थातत् तुम से पूर्व विद्या को ब्राह्मण नहीं जानते थे। इसी तरह बृहदारण्यक 6/2/8 में […]

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आज का चिंतन वैदिक संपत्ति

दो प्रकार की विद्याएं हैं,एक परा दूसरी अपरा…

वैदिक संपत्ति गतांक से आगे… दो प्रकार की विद्याएं हैं,एक परा दूसरी अपरा। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष आदि अपरा विद्याए हैं और जिससे वह अक्षर प्राप्त होता है, वह परा विद्या है। इस वर्णन से ज्ञात होता है कि, वेदों में परा विद्या का वर्णन नहीं है, अर्थात वेद […]

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वैदिक संपत्ति : अध्याय -आसुर उपनिषद की उत्पत्ति

गतांक से आगे… इसके आगे लिखा है कि – तस्मादप्यद्येहाददान मश्रद्दधानमयज मानमाहुरासुरो बतेत्यसुराणां ह्मेषोपनिषत्प्रेतस्य शरीरं भिक्षया वसनेनालंकारेणेति संस्कुर्वन्त्येतेन ह्ममुं पलोंक जेष्यन्तो मन्यन्त इति॥ ( छान्दोग्य 8/8/5) अर्थात यही कारण है कि आज कल भी असुर लोग न दान में श्रद्धा रखते हैं और न यज्ञ करते हैं। लोग उनके इस ज्ञान को आसुर उपनिषद कहते […]

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आसुर उपनिषद की उत्पत्ति

आसुर उपनिषद की उत्पत्ति गतांक से आगे… छान्दोग्य उपनिषद में विस्तारपूर्वक लिखा है कि इन्द्र (आर्य) और विरोचन (अनार्य) दोनों मिलकर किसी के पास ज्ञान सीखने गये। गुरु ने उनकी पात्रता और कुपात्रता की परीक्षा की। इन्द्र संस्कृत आत्मा और विरोचन मलिनआत्मा निकला और ज्ञान के ग्रहण करने में असमर्थ सिद्व हुआ। गुरु ने परीक्षार्थ […]

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सम्प्रदाय परिवर्तन : गीता और उपनिषदों में मिश्रण

वैदिक संपत्ति गतांक से आगे… जिस तरह उपनिषदों में मिलावट है, उसी तरह गीता में भी मिलावट है।इस जमाने में लोकमान्य तिलक जैसा गीता का विद्यार्थी और दूसरा नहीं हुआ। गीता की मिलावट के विषय में गीतारहस्य भाग 3,पृ. संख्या 536 में आप कहते हैं कि, ‘जिस गीता के आधार पर वर्तमान गीता बनी है, […]

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वैदिक संपत्ति : सम्प्रदाय प्रवर्तन

गीता और उपनिषदों में मिश्रण गतांक से आगे… इसी तरह की बात छान्दोग्य 8/ 13/1 में लिखी है कि ‘चन्द्र इव राहोर्मुखात् प्रमुच्य’अर्थात् जैसे चन्द्रमा राहु के मुख से छूट जाता है।यह दृष्टांत भी उन्हीं गैवारू बातों की चरितार्थ करता है,जो चन्द्रग्रहण के विषय में प्रचलित है। अर्थात् चन्द्रमा को राहु खा जाता है और […]

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