202 सुख आया तो दु:ख गया, दु:ख आए सुख जाय। यही सनातन खेल है, मनवा समझ न पाय।। मनवा समझ न पाय , करता रहा ठिठोली। समझा वही , जिसकी आंख विधाता ने खोली।। समझदार ना विचलित होता, जब आता है दु:ख। समत्व भाव से जीवन जीता , ना भटकाता सुख।। 203 भूमि शय्या प्रेम […]
अध्याय … 68 , नींद चैन की लेय…..
