पशुयज्ञों के संहिताकालीक न होने का बहुत बड़ा प्रमाण तैत्तिरीयसाहित्य में लिखा हुआ है। लिखा है कि- यद्दचोsध्यगीषत ताः पय आहुतयो देवानामभवन् । यद्यजूषि घृताहुतयो यत्सामानि सोमाहुतयो पदथर्वाङ्गिरसो मध्वाहुतयो यद्ब्राह्मणानि इतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथा नाराशंसीमँदाहुतयो देवानामभवन् । (तैत्तिरीय प्र 3 अ० 6 मं० 3) अर्थात् ऋग्वेद का पाठ देवताओं के लिए दूध की बाहुतियाँ, यजुर्वेद […]
