आदि शंकराचार्य एवं स्वामी दयानन्द (17 मई, 2021को आदि शंकराचार्य जयंती के उपलक्ष में प्रकाशित) #डॉविवेकआर्य आदि शंकराचार्य एवं स्वामी दयानन्द हमारे देश के इतिहास की दो सबसे महान विभूति है। दोनों ने अपने जीवन को धर्म रक्षा के लिए समर्पित किया था। दोनों का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और दोनों ने […]
Category: स्वर्णिम इतिहास
-प्रियांशु सेठ सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं की सन्तान ही राजपूत लोग हैं। मेवाड़ के शासनकर्त्ता सूर्यवंशी राजपूत हैं। ये लोग सिसोंदिया कहलाते हैं; जो श्रीरामचन्द्र जी के पुत्र लव की सन्तान हैं। वाल्मीकि रामायण में आया है कि श्रीराम जी ने अपने अन्तिम समय लव को दक्षिण कौशल और कुश को उत्तरीय कौशल का […]
1857 की क्रांति हमारे आक्रोश और विदेशी सत्ता के प्रति पनप रहे विद्रोह के भाव का प्रतीक थी। जिसमें दलन, दमन और अत्याचार के विरुद्ध खुली बगावत के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे थे । चारों ओर लोग ‘मारो फिरंगियों को’ का नारा देकर देश को अंग्रेजों से मुक्त कर देना चाहते थे। अब वह […]
10 मई 1857 की प्रातः कालीन बेला। स्थान मेरठ । जिस वीर नायक ने इस पूरे स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण एवं क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी वह अमर शहीद धन सिंह कोतवाल चपराना निवासी ग्राम पाचली मेरठ थे। क्रांति का प्रथम नायक धनसिंह गुर्जर कोतवाल। नारा था – ‘मारो फिरंगियों को।’ मेरठ में ईस्ट इंडिया कंपनी […]
राव कदमसिंह गुर्जर भारतीय स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारी आंदोलन के एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं। जिन्होंने समय आने पर ‘राष्ट्र प्रथम’ के उद्घोष को स्वीकार करते हुए अपना सर्वस्व माँ भारती की गोद में समर्पित कर दिया था । राम कदम सिंह 18 57 की क्रांति से पूर्व इसके पूर्व के क्षेत्र के क्रांतिकारियों […]
10 मई 1857 की प्रातः कालीन बेला। स्थान मेरठ । जिस वीर नायक ने इस पूरे स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण एवं क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी वह अमर शहीद धन सिंह कोतवाल चपराना निवासी ग्राम पाचली मेरठ थे। क्रांति का प्रथम नायक धनसिंह गुर्जर कोतवाल। नारा – ‘मारो फिरंगियों को।’ मेरठ में ईस्ट इंडिया कंपनी की […]
संजीव सिंह हम सभी ने इतिहास पढ़ा है कि मुगल सल्तनत की स्थापना 1526 में ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर ने की थी। अगले दो शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों पर मुगलों का शासन रहा। आम धारणा यह है कि बाबर को भारत आने का निमंत्रण भेजा गया था और यह कार्य मेवाड़ के […]
कश्मीर के गौरवशाली हिंदू इतिहास के विषय में हमने पिछले लेखों में सूक्ष्म सा प्रकाश डाला था। अब पुन: कश्मीर की उस केसर को इतिहास के गौरव पृष्ठों पर खोजने का प्रयास करते हैं, जिसकी सुगंध ने इस स्वर्गसम पवित्र पंडितों की पावन भूमि को भारतीय इतिहास के लिए श्लाघनीय कार्य करने के लिए […]
अब अनेकों शोध पत्रों से यह बात पूर्णत: सिद्ध हो चुकी है कि अरब का मूल स्वरूप वैदिक रहा है । मोहम्मद साहब ने अपने जीवन काल में जब इस्लाम की स्थापना की तो उन्होंने अरब के पुराने हिन्दू स्वरूप को मिटाने का आदेश दिया। जिससे वे प्रतीक समाप्त करने की प्रक्रिया आरम्भ हुई […]
रोमन शासक कांस्टेंटाईन के ३१२ ईस्वी में ईसाई धर्म अपनाने और यूरोप में उसके द्वारा ईसायत के प्रसार से पूर्व यूरोप में वैदिक संस्कृति होने के प्रमाण मिलते हैं. इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि यूरोप के ड्रुइडस भारतीय ब्राह्मण थे और उनके मार्गदर्शन में विकसित केल्टिक या सेल्टिक संस्कृति स्थानीय परिवर्तनों के […]