भारत का वास्तविक राष्ट्रपिता कौन ? श्रीराम या ……. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 9 क ससदुपदेश पर करो अमल खर और दूषण के अंत को दो राक्षसों का अंत तो कहा जा सकता है परंतु श्री राम की समस्याओं का अंत उनके अंत के साथ हो गया हो – यह नहीं कहा […]
श्रेणी: स्वर्णिम इतिहास
राक्षस को जीने का अधिकार नहीं शत्रु जब अपनी दुष्टता की पराकाष्ठा पर हो तब उसके प्रति किसी भी प्रकार का दयाभाव प्रकट करना उचित नहीं होता। यदि उन परिस्थितियों में उस पर दयाभाव प्रकट करते हुए उसे छोड़ दिया गया तो वह चोटिल सांप की भांति आप पर फिर हमला करेगा और बहुत संभव […]
तुम्हें देखते ही देशद्रोही भाग खड़े हों नींव रखी विनाश की नहीं रहा कुछ ज्ञान। कालचक्र को देखकर हंसते खुद भगवान।। बाल्मीकि जी द्वारा किए गए इस प्रकार के वर्णन से स्पष्ट होता है कि शूर्पणखा इस समय बहुत अधिक भयभीत थी। उसे यह अपेक्षा नहीं थी कि उसके भाई के द्वारा भेजे गए […]
तुम्हें देखते ही देशद्रोही भाग खड़े हों शूर्पणखा का कार्य अनैतिक और अनुचित था। जिसके अनुचित और अनैतिक कार्य का सही फल लक्ष्मण जी ने उसे दे दिया था। इसके पश्चात अब वे परिस्थितियां बननी आरंभ हुईं जो उस कालखंड की ऐतिहासिक क्रांति का सूत्रपात करने वाली थीं। यह घटना राक्षस वंश के लिए ऐसी […]
राक्षसों के संहारक बनो शूर्पणखा का कार्य अनैतिक और अनुचित था। जिसके अनुचित और अनैतिक कार्य का सही फल लक्ष्मण जी ने उसे दे दिया था। इसके पश्चात अब वे परिस्थितियां बननी आरंभ हुईं जो उस कालखंड की ऐतिहासिक क्रांति का सूत्रपात करने वाली थीं। यह घटना राक्षस वंश के लिए ऐसी घटना सिद्ध हुई […]
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा भगवान श्रीराम, अध्याय – 5 अब रामचंद्र जी पंचवटी की ओर चल पड़ते हैं, जहां जटायु से उनकी मुलाकात होती है। जटायु कोई पक्षी नहीं था, बल्कि यह एक मनुष्य था , जो कि राजा दशरथ का मित्र था। वह श्रीराम और लक्ष्मण जी और सीता जी से वैसा ही स्नेह […]
वनवास में भी पुरुषार्थ करते रहो भारत के विषय में मुसलमान लेखक वस्साफ ने अपने ग्रंथ “तारीख-ए-वस्साफ” में बहुत सुंदर कहा है – “सभी इतिहासवेत्ता यह मानते हैं कि भारतवर्ष भूमंडल का एक अति रमणीय और चित्ताकर्षक देश है। इसकी पावन पुनीत मिट्टी के रजकण वायु से भी अधिक हल्के और पवित्र हैं। इसकी वायु […]
किसी शायर ने क्या खूब कहा है :- कमजोर लोग ही शिकवा और शिकायत करते है। महान लोग तो हमेशा कर्म की वकालत करते है।। हमारे राष्ट्रनायक रामचंद्र जी महाराज के यहां शिकवा- शिकायत की कोई गुंजाइश नहीं थी। क्योंकि वह इतिहास निर्माण करने की किसी भी चुनौती से बचकर निकलने वाले नहीं थे। वह […]
सन 711ई. की बात है। अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के […]
स्थितप्रज्ञ और दूसरे के मनोविज्ञान को समझने वाली भारत की राजकुमारियों के ऐसे शब्दों को सुनकर खलीफा क्रोध में पागल हो गया। उसे यह बहुत ही बुरा लगा कि वह जिस ‘भोजन’ को स्वयं ग्रहण करने की तैयारी कर रहा था उसे पहले ही उसका एक व्यक्ति जूठा कर चुका था। उसे लगा कि यदि […]