Categories
स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 13 क श्रीराम का औदार्य

श्रीराम का औदार्य किसी भी शासक की महानता और उसके शासन की उत्तमता की कसौटी केवल यह मानी गई है कि उसके राज्य में प्रजा  सुखी रहे। यदि प्रजा किसी शासक के शासन में दु:खी है तो उसके शासन को उत्तम नहीं माना जा सकता। प्रजा शांतिपूर्वक सुखानुभूति करते हुए अपना जीवन यापन करे और […]

Categories
स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 12 (ग) संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर

श्रीराम की शरणागत वत्सल भावना    श्रीराम की शरणागत वत्सल भावना भी प्रशंसनीय है। उनकी शरण में जो भी आया उसी को उन्होंने गले लगाया । यद्यपि कई लोगों ने विभीषण के उनकी शरण में आने पर आपत्ति उठाई थी और यह शंका भी व्यक्त की थी कि यह व्यक्ति क्योंकि शत्रु पक्ष से आया […]

Categories
स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 12( ख) संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर

         आज हम जब श्री राम जन्मभूमि पर अयोध्या में मंदिर बना रहे हैं तो वह मंदिर श्रीराम के अथक और गंभीर प्रयासों का प्रतीक है। जिनके चलते हमने संपूर्ण भूमंडल को ही मंदिर में परिवर्तित कर दिया था। आज उनका यह प्रतीकात्मक मंदिर अपनी भव्यता और विशालता को तभी प्राप्त कर पाएगा जब यह […]

Categories
इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 12 (क) संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर

संपूर्ण भारत ही बन जाए श्रीराम मंदिर मंदिर भारतीय संस्कृति में एक विशेष पवित्र स्थल का नाम है। जहां भीतरी बाहरी पवित्रता को स्थान दिया जाता है। यह वह स्थल है जहां जाकर बाहरी दुनिया की चहल-पहल और कोलाहल सब शांत हो जाता है । व्यक्ति के भीतर का संसार मुखरित होकर उसका मार्गदर्शन करने […]

Categories
इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 11( ख) राम हमारी श्रद्धा के केन्द्र क्यों ?

      संसार के इतिहास में ऐसे अवसर ढूंढने बड़े कठिन हैं – जब राज्य गेंद बनकर उछल रहा हो। कोई सा भाई भी राज्य पर अपना अधिकार बनाना उचित नहीं मान रहा था। दोनों धर्म और मर्यादा की डोर से बंधे गए थे और एक दूसरे से कहे जा रहे थे कि राज सिंहासन पर […]

Categories
इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 11( क) राम हमारी श्रद्धा के केन्द्र क्यों ?

रामचंद्र जी को भारत के लोगों ने अपनी श्रद्धा और आस्था का केंद्र बनाकर पूजा है।  पिछले अध्यायों में हमने इस बात पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है कि वह हमारी श्रद्धा और आस्था के केंद्र क्यों बन गए ? निश्चित रूप से उनका महान व्यक्तित्व ही इसके लिए उत्तरदायीहै । अब इस अध्याय […]

Categories
स्वर्णिम इतिहास

भारत का वास्तविक राष्ट्रपिता कौन ? श्रीराम या ……. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 10 ग

श्रीराम के विशेषण और विशेषता   हमें ध्यान रखना चाहिए कि देश भक्ति के गीत गाते – गाते जो वीर क्रांतिकारी फांसी पर झूल गए वे श्री राम के शत्रुहन्ता स्वरूप के उपासक थे । राम प्रसाद बिस्मिल जैसे अनेकों क्रांतिकारियों ने श्रीराम की इस आदर्श परंपरा का निर्वाह किया। राम प्रसाद बिस्मिल जी की […]

Categories
स्वर्णिम इतिहास

गंगू तेलियों का हमारा युग और राजा भोज

राजीव रंजन प्रसाद हमें तो वास्कोडिगामा ने खोजा है, भारतीय उससे पहले थे ही कहाँ? पढाई जाने वाली पाठ्यपुस्तकों का सरलीकरण करें तो महान खोजी-यात्री वास्कोडिगामा ने आबरा-कडाबरा कह कर जादू की छडी घुमाई और जिस देश का आविष्कार हुआ उसे हम आज भारत के नाम से जानते हैं? माना कि देश इसी तरह खोजे […]

Categories
स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

भारत का वास्तविक राष्ट्रपिता कौन ? श्रीराम या ……. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 10 ख – श्रीराम के विशेषण और विशेषता

रामचंद्र जी को शत्रुओं का नाश करने वाला , प्रतापी , पराक्रमी अर्थात जिसका नाम सुनने से ही शत्रु के ह्रदय फट जाते हैं, ऐसा विशेष पराक्रमी, शत्रुओं का पराभव करने वाला, जिसका धनुष बहुत बड़ा है, जिसके पास उत्तम से उत्तम अस्त्र शस्त्र हैं , जिसके क्रुद्ध होने पर देव भी घबरा जाते हैं, […]

Categories
इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

भारत का वास्तविक राष्ट्रपिता कौन ? श्रीराम या ……. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 10 क श्रीराम के विशेषण और विशेषता

रामचंद्र जी के विषय में जानबूझकर यह भ्रांति फैलाने का प्रयास किया गया  कि वह एक काल्पनिक ग्रन्थ के काल्पनिक पात्र हैं । ऐसी मान्यता रखने वाले लोगों का कहना है कि रामायण भी अपने आप में एक काल्पनिक महाकाव्य है। जिसे किसी उपन्यास से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता। ऐसा भ्रान्तिपूर्ण प्रचार इसलिए […]

Exit mobile version