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स्वर्णिम इतिहास

प्राचीन अरब का समाज और भारत के वेद

प्राचीन अरबी काव्य-संग्रह ‘शायर-उल्-ओकुल’ में एक महत्त्वपूर्ण कविता है। इस कविता का रचयिता ‘लबी-बिन-ए-अख़्तर-बिन-ए-तुर्फा’ है। यह मुहम्मद साहब से लगभग 2300 वर्ष पूर्व (18वीं शती ई.पू.) हुआ था । इतने लम्बे समय पूर्व भी लबी ने वेदों की अनूठी काव्यमय प्रशंसा की है तथा प्रत्येक वेद का अलग-अलग नामोच्चार किया है— ‘अया मुबारेक़ल अरज़ युशैये […]

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स्वर्णिम इतिहास

भारत और नेपाल का कालांतर में एक साझा इतिहास रहा है

प्रह्लाद सबनानी नेपाल एक बहुत खूबसूरत दक्षिण एशियाई राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर मे तिब्बत है तो इसके दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत की सीमाएं लगती हैं। नेपाल के 81.3 प्रतिशत नागरिक सनातन हिन्दू धर्म को मानते है। नेपाल पूरे विश्व में प्रतिशत के आधार पर सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र है। नेपाल की […]

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इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास

प्राचीन काल में भारत शिक्षा का वैश्विक केंद्र था, इस गौरव को पुनः प्राप्त करना अब जरूरी

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी एवं महान संस्कृति मानी जाती है एवं भारत में शिक्षा को अत्यधिक महत्व देकर इसे प्रकाश का स्त्रोत मानकर मानव जीवन के विभिन क्षेत्रों को आलोकित किया जाता रहा है एवं यहां आध्यात्मिक उत्थान तथा भौतिक एवं विभिन्न उत्तरदायित्वों के विधिवत निर्वहन के लिये शिक्षा की महती आवश्यकता को […]

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स्वर्णिम इतिहास

प्राचीन भारतीय गणतांत्रिक अवधारणा

-अशोक “प्रवृद्ध”     विभाजित भारतवर्ष में 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस मनाया जाता है। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाये जाने और उस दिन से ही […]

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स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 14 ( ग ) सिंहावलोकन

सिंहावलोकन       भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की महानता इसी में निहित है कि भारत भूमि को पुण्य भूमि व पितृ भूमि बनाने में श्रीराम का महत्वपूर्ण योगदान है। उस योगदान को भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपनी मौलिक चेतना का एक महत्वपूर्ण और अजस्र स्रोत मानता है। श्री रामचंद्र जी के योगदान को भारत की पुण्य […]

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स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 14 ( ख ) सिंहावलोकन

सिंहावलोकन     राजनैतिक विचारक एंथोनी डी. स्मिथ ने राष्ट्र को कुछ इस तरह परिभाषित किया है, ‘मानव समुदाय जिनकी अपनी मातृभूमि हो, जिनकी समान गाथाएं और इतिहास एक जैसा हो, समान संस्कृति हो, अर्थव्यवस्था एक हो और सभी सदस्यों के अधिकार व कर्तव्य समान हों।’          यदि एंथोनी के इस कथन पर विचार किया जाए […]

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स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 14 ( क ) सिंहावलोकन

सिंहावलोकन श्रीराम को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चेतना का एक महत्वपूर्ण स्रोत कहा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि श्रीराम ही इस चेतना के एकमात्र स्रोत हैं। क्योंकि भारतीय चेतना का यह स्रोत तो सृष्टि के आदि से प्रवाहित होता चला आ रहा है। इसके महत्वपूर्ण संरक्षक के रूप में श्रीराम हमारे लिए बहुत […]

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स्वर्णिम इतिहास

पूर्वोत्तर भारत और महाभारत का सम्बन्ध

डॉ. सुधा कुमारी भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा जो सात राज्यों का समूह है, मुख्य भाग से काफी दूर माना जाता है। आज की तारीख में इस हिस्से में भेजा जानेवाला व्यक्ति थोड़ा असहज महसूस करेगा और इतनी दूर जाने से हिचकेगा। किन्तु यहाँ प्रवास करनेवाले को धीरे धीरे मालूम होता है कि यह भाग प्राचीन […]

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स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 13 ग श्रीराम का औदार्य

श्रीराम का औदार्य धर्म भारतीय जन गण में आज भी बहुत सम्मान प्राप्त करता है। जब कोई व्यक्ति किसी गलत कार्य में फँसता या फँसाया जाता है तो लोग उसको धर्म की सौगंध उठाकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहते हैं । यदि ऐसा व्यक्ति धर्म की सौगंध उठाकर अपनी बात कह देता है […]

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स्वर्णिम इतिहास हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा श्रीराम, अध्याय – 13 ख श्रीराम का औदार्य

श्रीराम का औदार्य    जिस समय भरत और शत्रुघ्न अपनी ननिहाल से अयोध्या पहुंचकर वहां अपनी अनुपस्थिति में घटी सारी घटनाओं से परिचित होते हैं तो रामचंद्र जी की उदारता का उल्लेख करते हुए भरत अपने भाई शत्रुघ्न से कहते हैं कि -” स्त्रियां अवध्य होती हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं पापी दुष्टाचारिणी […]

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