गांधीजी और भगत सिंह की फांसी देश में कुछ लोग हैं जिनको गांधी की आलोचना पचाये नहीं पचती । ऐसे सज्जनों की जानकारी के लिए :बीबीसी’ की ओर से जारी की गई एक समीक्षा को हम यहां प्रेषित कर रहे हैं । जिसमें ‘बीबीसी’ ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि गांधीजी ने […]
Category: स्वर्णिम इतिहास
इस पुस्तक का उपसंहार इस प्रकार है :- स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारत जब अपने वर्तमान दौर में प्रविष्ट हुआ तो भारत की सत्ता की कमान गांधीजी के राजनीतिक शिष्य नेहरू जी के हाथों में आई। दुर्भाग्यवश नेहरु जी ने भारत की छद्म अहिंसा को इस देश का मौलिक संस्कार बनाने का प्रयास किया । […]
अंग्रेज चाहते थे देश को कई टुकड़ों में बांटना भारत के इतिहास का यह एक विडम्बना पूर्ण तथ्य है कि जिस स्वतन्त्रता की लड़ाई को यह देश 1235 वर्ष तक ‘वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति’ – के आधार पर लड़ता रहा , उसी स्वतन्त्रता के मिलने का जब समय आया तो स्वतन्त्रता के आन्दोलन पर […]
गुंजन अग्रवाल सनातन धर्म में ध्वज का स्थान बहुत ऊंचा है। भारतवर्ष में ध्वज का उपयोग सनातन काल से ही हो रहा है। वेदों की प्रसिद्ध उक्ति है – अस्माकमिन्द्र: समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु। अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु।। ऋग्वेद, 10-103-11, अथर्ववेद, 19-13-11 अर्थात्, हमारे ध्वज फहराते रहें, हमारे बाण विजय […]
श्रद्धानन्द जी की हत्या और गांधीजी 23 दिसम्बर 1926 को स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज को एक धर्मांध मुसलमान ने गोली मार दी थी । तब गांधी जी ने स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे के प्रति भी भाई जैसे सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया था। गांधीजी ने अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण की मानसिकता का परिचय देते हुए […]
अन्त में हमारा बलिदानी इतिहास ही जीता गांधी जी और उनकी कांग्रेस जहाँ ब्रिटिश राजभक्ति के लिए जानी जाती है वहीं मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए भी जानी जाती है। गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की आलोचना करते हुए स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने 1937 में 30 दिसम्बर को अहमदाबाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा के […]
गांधीजी और खिलाफत गांधीजीने ‘खिलाफत आन्दोलन’ का समर्थन कर अपनी मुस्लिम भक्ति को भी प्रकट किया था । जबकि यह सच है कि ‘खिलाफत आन्दोलन’ का भारत की स्वाधीनता से कोई लेना-देना नहीं था , परन्तु गांधी जी ने इन सब बातों को एक ओर रखकर ‘खिलाफत आन्दोलन’ में रुचि दिखाई । कुछ लोगों ने […]
विवेक भटनागर शौर्य और शक्ति के प्रतीक मेवाड़ और चित्तौडग़ढ़ का अपना अस्तित्व सिर्फ किसी जौहर और युद्ध से नहीं है। हम कह सकते हैं कि यह किसी न किसी प्रकार से उत्तर भारत की स्थापत्य कला का शानदार संग्रह भी है। वैसे चित्तौड़ के निर्माता कौन थे, इसके ठोस प्रमाण कहीं से भी प्राप्त […]
इन क्रान्तिकारियों में चापेकर बन्धु , खुदीराम बोस , रासबिहारी बोस , महर्षि अरविन्द , मदनलाल धींगरा, चन्द्रशेखर आजाद , सुभाष चन्द्र बोस, लाला हरदयाल, वीर सावरकर, राम प्रसाद बिस्मिल, देवता स्वरूप भाई परमानन्द जी, श्यामजी कृष्ण वर्मा , महादेव गोविन्द रानाडे , विजय सिंह पथिक , देशबन्धु चितरंजन दास आदि हजारों नहीं लाखों क्रान्तिकारी […]
इन्द्र विद्यावाचस्पति लिखते हैं :–” जब लम्बी दासता से बंजर हुई भारत की भूमि को सशस्त्र क्रान्ति के विशाल हल ने खोदकर तैयार कर दिया और जब सुधारकों के दल ने उसमें मानसिक स्वाधीनता के बीज बो दिए , तब यह सम्भव हो गया कि उसमें से राजनीतिक स्वाधीनता के बिना सामाजिक स्वाधीनता और सामाजिक […]