महावीर प्रसाद द्विवेदी कूपमण्डूकता बड़ी ही अनिष्टकारिणी क्या एक प्रकार से, विनाशकारिणी होती है। मनुष्य यदि अपने ही घर, ग्राम या नगर में आमरण पड़ा रहे तो उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता, उसके ज्ञान की वृद्धि नही होती, उसकी दृष्टि को दूरगामिनी गति नहीं प्राप्त होती। देश—विदेश जाने, भिन्न भिन्न जातियों और धम्मों के […]
Category: स्वर्णिम इतिहास
मनीषा सिंह भारत माता की कोख से एक से बढ़कर एक महान वीर ही नहीं बल्कि कई वीरांगनाओं ने भी जन्म लिया है जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपने सर्वस्व सुखों का त्याग कर अपनी मातृभूमि कि पूरे मनोयोग के साथ रक्षा की। ऐसी महान वीरांगनाओं की श्रेणी में नाम आता है। […]
डॉ. कृपा शंकर सिंह भारत और राष्ट्र, ये दोनों शब्द सदियों पहले से इस देश के भूभाग के लिये प्रयुक्त होते रहे है। विश्व का प्राचीनतम लिखित प्रमाण और भारतीय अस्मिता की आत्मा ऋग्वेद में राष्ट्र शब्द अनेक बार प्रयुक्त हुआ है। दसवें मंडल में राष्ट्र, राजा और प्रजा (समाज) को लेकर ऋचायें कही […]
प्राचीन काल से ही भारतभूमि का इतिहास काफी रोचक रहा है। हमारे देश में सत्ता प्राप्त करने एवं मिली हुई सत्ता सुरक्षित रखने के लिए कई युद्ध हुए हैं, जिनसे जुड़ी जानकारी हमें इतिहास की किताबों के माध्यम से मिलती है। लेकिन इतिहासकारों ने बहुत सी बातों को या तो अधूरा ही रखा […]
भारतीय इतिहास के साथ की गई भारी छेड़छाड़ का सिलसिला परत दर परत उघड़ने लगा है । श्री राम जन्मभूमि के विवाद में जहां यह स्पष्ट हुआ कि वहां पर मूल रूप में कभी श्री राम जी का मंदिर था, वहीं उससे यह भी स्पष्ट हो गया कि भारत के इतिहास के तथ्यों के […]
*✍️ आज की कहानी है एक ऐसे वीर की जिन्होंने अपनी वीरता और अदम्य साहस की बदौलत तांत्या टोपे को प्रभावित किया।* जिसके बाद तांत्या टोपे ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध में पारंगत बनाया। ततपश्चात वो वीर अंग्रेजों के शोषण तथा विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ उठ खड़े हुए, देखते ही देखते वे गरीब आदिवासियों के […]
भारत का इतिहास अनेकों वीरांगनाओं के देशभक्ति पूर्ण कार्यों से भरा हुआ है। हमारी कई महान वीरांगनाओं ने अनेकों अवसरों पर युद्ध के मैदान में जाकर भी शत्रु के दांत खट्टे करने का ऐतिहासिक और वीरतापूर्ण कार्य कर इतिहास में अमर ख्याति प्राप्त की है। क्षत्राणी वीरांगनाओं ने अपने दूध की लाज रखने के […]
ज्ञानेंद्र बरतरिया छत्रपति शिवाजी महाराज आज अपने वक्त से ज्यादा प्रासंगिक हैं। छत्रपति शिवाजी ने युद्ध, राजनीति-कूटनीति और सौहार्द की जो नीतियां गढ़ीं, जो परंपराएं स्थापित कीं- उन्हें सोलहवीं सत्रहवीं सदी के भारत में भले जितना समझा गया हो लेकिन उनके विचारों, नीतियों को बीसवीं-इक्कीसवीं सदी तक दुनिया में सबसे ज्यादा अहमियत दी जा […]
विवेक भटनागर कम्युनिस्टों से लेकर राष्ट्रवादियों तक सभी एक स्वर से भारत की हजार वर्ष की गुलामी की बात सरलता से कह जाते हैं। बारहवीं शताब्दी में मोहम्मद गोरी के दिल्ली पर कब्जा करने से लेकर वर्ष 1947 में अंग्रेजों के जाने तक के काल को सभी सहज भाव से भारत की गुलामी का […]
कृपाशंकर सिंह ऋग्वेद मे कुएँ का उल्लेख अनेक ऋचाओं में हुआ है। इससे पता चलता है कि ऋग्वेदिक काल में सिंचाई के साधनों में कुआँ का उपयोग भी होता रहा होगा। इसकी प्रप्ति कई़ ऋचायों मे चरस का नाम आने से भी होती है। सम्भवतः पीने के लिये भी कुएँ के पानी का उपयोग […]