( बात उस समय की है जिस समय पांडव राजा विराट के यहां अज्ञातवास भोग रहे थे। उस समय तक कीचक का अंत हो चुका था। उसने अपने जीते जी कई पड़ोसी राजाओं को आक्रमण कर करके बड़ा दु:खी किया था। उन्हीं में से एक त्रिगर्त देश के राजा सुशर्मा थे । उन्होंने हस्तिनापुर की […]
Category: कहानी
सैरंध्री कीचक द्वारा किए गए अपने अपमान को भुला नहीं पा रही थी। अब वह उस पापी के अंत की योजना पर विचार करने लगी। तब एक दिन उसने निर्णय लिया कि आज रात्रि में जाकर भीम को बताया जाए और उसके द्वारा इस नीच पापी का अंत कराया जाए। सैरंध्री ने यही किया और […]
( महाभारत के एक प्रमुख पात्र के रूप में विख्यात रहे भीमसेन को सामान्यतः मोटी बुद्धि का माना जाता है। यद्यपि महाभारत के अध्ययन से पता चलता है कि वह बहुत अधिक बुद्धिमान व्यक्ति था। चरित्र में वह उतना ही ऊंचा था जितने अन्य पांडव थे। वह परनारी के प्रति अत्यंत आदर और सम्मान का […]
(अर्जुन धर्मराज युधिष्ठिर के अनुज थे। वह अपने आदर्श चरित्र के लिए भी जाने जाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि अर्जुन आजीवन ब्रह्मचारी रहे भीष्म पितामह के सबसे प्रिय पौत्र थे। उन्हें दादा भीष्म के साथ रहकर उनके चरित्र के आदर्श गुणों को अपनाने का अवसर मिला। अर्जुन के बारे में सामान्यतया […]
चोट खाया हुआ सांप भी अपने शत्रु को छोड़ता नहीं है। यहां तक कि वह गाय भी ( जिसे बहुत ही सीधी कहा जाता है ) उस समय शेरनी बन जाती है जब उसके नवजात शिशु पर कोई प्राणी आक्रमण कर देता है। अर्जुन की जहां तक बात है तो आज वह सांप भी था […]
( प्राचीन काल में हमारे ऋषि – मुनियों के पास ही अस्त्र-शस्त्र बनाने की विद्या होती थी। इस पर उनका एकाधिकार होता था। इसका कारण केवल यह होता था कि ऋषि – मुनियों का चिंतन पूर्णतया सात्विक और मानवतावादी होता था। उनकी इच्छा होती थी कि संपूर्ण मानव समाज का और प्राणिमात्र का कल्याण हो […]
धर्मराज युधिष्ठिर वास्तव में राष्ट्र धर्म की एक जीती जागती मिशाल थे। उनके भीतर धर्म चिंतन चलता रहता था। उनका धर्म चिंतन ही उनका राष्ट्रचिंतन था। क्योंकि धर्म चिंतन और राष्ट्र चिंतन दोनों अनन्य भाव से जुड़े हुए हैं। धर्म राष्ट्र के लिए है और राष्ट्र धर्म के लिए है। धर्म का अंतिम उद्देश्य राष्ट्र […]
( महाभारत हमारे अतीत का भव्य स्मारक है । इसमें हमें अपने पूर्वजों के उच्चादर्शों के साथ-साथ उनकी सभ्यता और संस्कृति का बोध होता है। महाभारत के सभा पर्व में बताया गया है कि खांडव दाह के पश्चात मयासुर ने श्री कृष्ण जी के साथ परामर्श करके धर्मराज युधिष्ठिर के लिए एक सभा भवन बनाने […]
दुर्योधन ने अपने पिता की मानसिकता को पहचान लिया कि पिताजी आज पहले से ढीले हो गए हैं। अब उनके सामने केवल एक ही समस्या है कि युधिष्ठिर को यहां से बाहर भेजने के लिए भीष्म, द्रोण और विदुर जैसे विद्वानों को कैसे सहमत किया जाए ? दुर्योधन ने इस बात को भी ताड़ लिया […]
( महाभारत हमारे लिए एक ऐसा ग्रंथ है जिसे पांचवां वेद कहा जाता है । इसमें मनुष्य जीवन की उन्नति को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक प्रकार की शिक्षा दी गई है । धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पर बहुत ही गहन चिंतन प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ हमें कुरु वंश के आंतरिक कलह […]