राजा के शोक निवारण के प्रति गंभीर हुए ब्राह्मण ने राजा को समझाते हुए आगे कहा कि “राजन! इस समय तुम्हें यह विचार करना चाहिए कि संसार में प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी प्रकार के दु:ख में फंसा रहता है। प्रत्येक प्राणी दु:खों में ग्रस्त हो रहा है। ऐसा नहीं है कि यह दु:ख केवल […]
Category: कहानी
( मृत्यु शय्या पर पड़े भीष्म से राजधर्म का उपदेश लेते हुए युधिष्ठिर ने अनेक प्रकार के प्रश्न किए। धर्म और नीति में निपुण गंगानंदन भीष्म ने भी अपनी निर्मल बुद्धि से युधिष्ठिर के प्रत्येक प्रश्न का शास्त्रसंगत उत्तर देने का सफल प्रयास किया । युधिष्ठिर प्रश्न पूछते जा रहे थे और भीष्म पितामह अपने […]
अपनी पत्नी के प्रति कबूतर की इस प्रकार की आत्मीयता भरी बातों को सुनकर सभी पक्षी जिज्ञासा भाव से बड़े भावविभोर से दिखाई दे रहे थे। कबूतर जिस निश्छल भाव से अपनी बात को व्यक्त किये जा रहा था वे सब उन पक्षियों को अच्छी लग रही थीं। कबूतर कह रहा था कि “यदि घर […]
(यह कहानी महाभारत के ‘शांति पर्व’ में आती है। जिस समय भीष्म पितामह युधिष्ठिर को राजधर्म का उपदेश कर रहे हैं, उस समय युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि “सभी शास्त्रों के मर्मज्ञ पितामह! आप मुझे यह बताइए कि शरणागत की रक्षा करने वाले प्राणी को किस प्रकार का फल प्राप्त होता है ?” भीष्म जी […]
भीष्म जी के भीतर अपार धैर्य था । उन्होंने कई प्रकार की पीड़ाओं को सहन करते हुए भी कहीं पर भी असंयत भाषा का प्रयोग नहीं किया । उनकी बात को धृतराष्ट्र ने भी स्वीकार नहीं किया, परंतु इसके उपरान्त भी से उसके प्रति सद्भाव बनाए रखने में सफल रहे। एक प्रकार से उनके भीतर […]
( महाभारत का युद्ध तो हुआ पर इससे वैदिक संस्कृति का भारी अहित हुआ । करोड़ों वर्ष से जिस संस्कृति के माध्यम से विश्व का मार्गदर्शन हो रहा था उसे इस युद्ध ने बहुत अधिक क्षतिग्रस्त कर दिया। 18 अक्षौहिणी सेना के अन्त से इतना अधिक राष्ट्र का अहित नहीं हुआ जितना वैदिक संस्कृति के […]
( हमारे देश के इतिहास में ऐसे अनेक वीर योद्धा हुए हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों के सम्मान और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया । ऐसे वीर योद्धाओं में पांडु पुत्र भीमसेन के पुत्र घटोत्कच का नाम भी उल्लेखनीय है। महाभारत के युद्ध में घटोत्कच का प्रवेश भीष्म पितामह के […]
वीरांगना माता ने संजय से कहा कि “पुत्र ! जो लोग इस संसार में केवल संतान पैदा करने के लिए आते हैं, उन्हें इतिहास में कभी सम्मान नहीं मिलता । दान , तपस्या, सत्यभाषण, विद्या और धनोपाजर्न में जिसके शौर्य का सर्वत्र बखान नहीं होता, वह मनुष्य अपनी माता का पुत्र नहीं, मलमूत्र मात्र है। […]
( बात उस समय की है जब विराट नगरी से चलकर आए श्री कृष्ण जी को दुर्योधन ने भरी सभा में अपमानित किया और जब श्री कृष्ण जी पांडवों के लिए मात्र पांच गांव मांग कर समस्या का समाधान प्रस्तुत कर रहे थे तो उसका भी दुर्योधन ने उपहास किया। उसने श्री कृष्ण जी से […]
जैसा अर्जुन ने सोचा था, वैसा ही हुआ। राजकुमार उत्तर ने जैसे ही कौरव दल के हाथियों, घोड़ों और रथों से भरी हुई विशाल सेना को देखा तो उसके रोंगटे खड़े हो गए । उसने अर्जुन से कह दिया कि मुझ में कौरवों के साथ युद्ध करने का साहस नहीं है । डर के कारण […]