( धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्म और नीति के मर्मज्ञ भीष्म पितामह से उनके अंतिम क्षणों में राजधर्म की शिक्षा के साथ-साथ लोक धर्म की शिक्षा भी ग्रहण की। धर्मराज युधिष्ठिर एक न्यायप्रिय प्रजावत्सल सम्राट थे। महाभारत के युद्ध से पूर्व भी वह इंद्रप्रस्थ के राजा रह चुके थे। उन्हें राजनीति और राजधर्म का स्वयं भी […]
Category: कहानी
हे धर्मराज ! मनुष्य दूसरों द्वारा किए हुए जिस व्यवहार को अपने लिए उचित नहीं समझता , दूसरों के प्रति भी वह वैसा व्यवहार ना करे। प्रत्येक मनुष्य को यह समझना चाहिए कि जो बर्ताव अपने लिए अच्छा नहीं है, वह दूसरों के लिए भी अच्छा नहीं हो सकता। जिस मनुष्य की अभी स्वयं जीने […]
( धर्म जैसे जिस पवित्र शब्द के बारे में आजकल अधिकतर लोग शंकित रहते हैं और उल्टी सीधी परिभाषाएं स्थापित करते हैं। धर्म को ‘अफीम’ कहकर अपमानित करते हैं। उनकी दृष्टि में धर्म एक ऐसा नशा है जो मनुष्य से पाप कार्य करवाता है। जबकि वैदिक वांग्मय में धर्म पाप से मुक्त कर पुण्य कार्यों […]
यह कितने बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम्हें ईश्वर ने गीदड़ ,चूहा ,सांप, मेंढक जैसी योनियों में पैदा नहीं किया। आप जानते ही हैं कि इन सब योनियों में किसी भी प्राणी को हाथ नहीं होते। मुझे कीड़े मकोड़े खाते रहते हैं जिन्हें निकाल फेकने की शक्ति मेरे में नहीं है। हाथ न होने […]
( हम अपने गायत्री मंत्र में शुद्ध बुद्धि की उपासना करते हैं । यदि व्यक्ति की बुद्धि शुद्ध है तो वह प्रत्येक विषम परिस्थिति से तो निकल ही जाएगा बल्कि जीवन को भी उत्तमता से जीने का अभ्यासी बन जाएगा। एक प्रेरणास्पद व्यक्तित्व तभी बनता है जब व्यक्ति की बुद्धि शुद्ध, पवित्र और निर्मल होती […]
मुनि कहते जा रहे थे कि “सुख के चाहने वाले मनुष्य को धन कमाने की ओर वैराग्य के भाव से ही आगे बढ़ना चाहिए। धन कमाने की चेष्टा में डूबना नहीं चाहिए। संसार में रहकर असंग भाव पैदा करना चाहिए और उसी का अभ्यास करना चाहिए। जितना जितना संगभाव अपनाया जाएगा , उतना – उतना […]
( भीष्म ने युधिष्ठिर के लिए प्राचीन काल के अनेक ऐतिहासिक प्रसंगों और संवादों को बड़ी सहज और सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य केवल एक ही था कि उनका प्रिय धर्मराज युधिष्ठिर प्रजा पर शासन करते हुए धर्म, न्याय और नीति के अनुसार आचरण करे। यद्यपि […]
बालक ने कहा कि नदियों का प्रभाव सदा आगे की ओर ही बढ़ता है। वह कभी पीछे की ओर नहीं लौटता । उसकी निरंतर साधना का राज आगे बढ़ने में छिपा है। इसी प्रकार रात और दिन भी मनुष्य की आयु का अपहरण करके मानो उसे खाते जा रहे हैं। यह बार-बार आ रहे हैं […]
( भीष्म ने युधिष्ठिर के लिए प्राचीन काल के अनेक ऐतिहासिक प्रसंगों और संवादों को बड़ी सहज और सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य केवल एक ही था कि उनका प्रिय धर्मराज युधिष्ठिर प्रजा पर शासन करते हुए धर्म, न्याय और नीति के अनुसार आचरण करे। यद्यपि […]
( धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के दीर्घकालिक अनुभवों के मोतियों को बातों – बातों में ज्ञानोपदेश के माध्यम से लूट रहे थे। यह एक अद्भुत और दुर्लभ वार्तालाप है। ज्ञान मोतियों को लूटने की बड़ी भयंकर डकैती थी यह। सचमुच , एक ऐसी डकैती जिस पर प्रत्येक राष्ट्रवासी को गर्व की अनुभूति होती है। संसार […]