मैं इलाहाबाद से लौट रहा था। टे्रन में मेरे साथ एक सज्जन पड़ोस की सीट पर बैठे थे। वह रिटायर्ड सरकारी अधिकारी थे, मेरी उनसे बातें होने लगीं। बातों का सिलसिला बढ़ा और देश की ज्वलंत समस्या भ्रष्टाचार पर केन्द्रित हो गया। वो सज्जन ऊपरी तौर पर भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए देश में चल […]
Category: विशेष संपादकीय
1947 में देश विभाजन के समय पाकिस्तान में 22 प्रतिशत हिंदू थे, जो आज घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह गये हैं। पूरा देश पाकिस्तान के हिंदुओं के प्रति गलत रवैये को लेकर और उन पर हो रहे अत्याचारों को लेकर परेशानी महसूस कर रहा था। पहली बार देश की संसद में अधिकांश राजनीतिक दलों ने […]
स्वतंत्रता दिवस और बिकाऊ लोकतंत्र
देश अपनी स्वतंत्रता की 65वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर हमारी शान और आन बान का प्रतीक तिरंगा बड़ी शान से लहराया जा रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब तक के सर्वाधिक निराशाजनक परिवेश में लगातार नौवीं बार ध्वजारोहण कर राष्ट्र को संबोधित करेंगे। यह पहली बार है कि जब देश के लोगों […]
अन्ना हजारे राजनीति में आओ…
अन्ना हजारे ने जंतर मंतर पर जारी अपना अनशन समाप्त कर दिया है और अब एक राजनीतिक पार्टी बनाने के संकेत दिये हैं। अन्ना आंदोलन की इस प्रकार अप्रत्याशित रूप से हवा निकल गयी है। अन्ना अपने आप में ठीक हो सकते हैं, लेकिन उनके बारे में यह बात आरंभ से ही स्पष्ट हो गयी […]
रोको: किस ओर जा रहा है आदमी
अलीगढ़ के डॉ. नजमुद्दीन अंसारी और उनके कुछ जागरूक मुस्लिम साथियों ने देश में गोवध और दुधारू पशुओं को काटकर विदेशों में मांस भेजने और बेचने पर गहरी चिंता प्रकट की है। उन लोगों ने मानवता और प्राणीमात्र के हित में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाकर भारत सरकार को सावधान किया है। उनका कहना है कि […]
चीन: एक धोखेबाज पड़ोसी
चीन इस समय बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है। वहीं उसके एक प्रमुख प्रांत में लोकतंत्र की मांग पुन: जोर पकड़ती जा रही है। चीन की कम्युनिस्ट विचारधारा देश के हर व्यक्ति की समस्या का समाधान करने में असफल सिद्घ हो चुकी है। मुझे याद आता है कि रूस के राष्ट्रपति […]
मीडिया की गिरती साख: चिंता का विषय
पिछले कुछ वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने देश का ध्यान अपनी ओर तेजी से खींचा है। समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की संख्या में भी बेतहाशा वृद्घि हुई है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है। परंतु हमने कई बार ऐसा देखा है कि जब एक घटना को इतनी बार टी. वी. पर दिखाया […]
यह बात जंचती नही है संगमा जी!
राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी पी.ए. संगमा ने अपने प्रतियोगी और संप्रग प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी को खुली बहस की चुनौती देते हुए भारत में राष्ट्रपति के चुनाव को अमेरिकी पैटर्न पर लडऩे का नया अंदाज देने का प्रयास किया है। दूसरे उन्होंने स्वयं को आदिवासी नेता होने के नाते सांसदों एवं मतदाताओं से अपना मत देने की […]
क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीयता
हमारे यहां पर क्षेत्रीय दल कुकुरमुत्तों की भांति है। ये दल वर्ग संघर्ष और प्रांतवाद-भाषावाद के जनक हैं। कुछ पार्टियां वर्ग संघर्ष को कुछ पार्टियां प्रांतवाद और भाषावाद को बढ़ावा देने वाली पार्टियां बन गयीं हैं। इनकी तर्ज पर जो भी दल कार्य कर रहे हैं उनकी ओर एक विशेष वर्ग के लोग आकर्षित हो […]
प्रणव को प्रणाम्
रायसीना हिल्स पर बने कभी के वायसरीगल हाउस (राष्ट्रपति भवन) के मुगल गार्डन में अगले ५ वर्ष के लिए किस विभूति को टहलने का अवसर मिलेगा? कुछ समय से सारा देश इस प्रश्न का उत्तर दिल थामकर टटोल रहा था। अंतत: १५ जून को देश के जनसाधारण को अपने प्रश्न का उत्तर मिल ही गया, […]