एक ऐसी खुशी जो हमें कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक एक होने की गौरवपूर्ण अनुभूति कराने की क्षमता रखने में समर्थ हो तो उस खुशी में ही झलकता है हमारे भीतर का छिपा हुआ राष्ट्र्रवाद और छिपी हुई राष्ट्रीयता। मंगलयान की सफलता पर 24 सितंबर को जब देश के प्रधानमंत्री मोदी ने […]
Category: विशेष संपादकीय
गतांक से आगे….. ज्योतिष द्वारा स्थिर किया हुआ वेदों का समय अब तक दो आक्षेपों का उत्तर देते हुए दिखलाया गया है कि मिश्र की सभ्यता वेदों से पुरानी नही है और न वेदों में कोई ऐतिहासिक वर्णन ही है। उक्त दोनों आक्षेपों का जिनसे वेदों की आयु कायम की जाती है, संशोधन हो गया। […]
हमारे लिए पहचान का संकट
हम भारतीय यदि अपने आपसे पूछें कि हम कौन हैं? तो भारी वितण्डा खड़ा हो जाएगा। एक कहेगा कि हम हिंदू हैं, तो दूसरा कहेगा-नही, यह नही हो सकता, हम तो मुसलमान हैं, फिर तीसरा कुछ और बताएगा तो चौथा इन सबसे अलग होगा। जब इस पर विवाद होगा तो बिहारी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी आदि […]
गतांक से आगे….. अति प्राचीन भाष्यकार भी वेदों में इतिहास मानते हैं। इस समय वेदों को छोडक़र शेष समस्त साहित्य में ब्राह्मण ग्रंथ और निरूक्त ही प्राचीन हंै। इन दोनों के देखने से विदित होता है कि अति प्राचीन काल में भी वेदों में इतिहास के मानने और न मानने वाले थे। गोपथ ब्राह्मण 2 […]
मोदी की जापान यात्रा के सुखद झोंके
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा के कई निहित अर्थ हैं। इस यात्रा से जहां इन दोनों देशों के व्यापारिक और सामरिक संबंधों में निकटता आएगी वहीं अपने युगों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक संबंधों को समझने और उन्हें समीक्षित करने का अवसर भी इनको मिलेगा। आर्थिक क्षेत्र में भारत को जहां लाभ […]
गतांक से आगे…..सृष्टि के यही लाखों पदार्थ अपने अपने गुणों और क्रियाओं से अपनी संज्ञा अर्थात अपना नाम आप ही आप चुनकर पुकारने लगते हैं और आज हम इन्हीं सब पदार्थों के व्यवहारों से उत्पन्न हुए लाखों शब्द बोलते हैं।यह मनुष्य बड़ा गंभीर है। इस वाक्य में बड़ा और गंभीर ये दोनों शब्द कहां से […]
दागी, बागी और भागी
भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपना औचित्य, महत्व, निष्पक्षता और प्रासंगिकता को अनेकों बार स्थापित कर चुका है। अभी हाल ही में उसने फिर एक बार अपने आपको सरकार का ‘मार्गदर्शक’ सिद्घ किया है। यद्यपि लोकतंत्र में विधायिका और न्यायपालिका की अपनी-अपनी सीमाएं हैं, और इन दोनों को कभी भी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नही करना […]
गतांक से आगे….. कल्पना करो कि संसार में सबसे प्रथम आज एक विवाह हुआ। किंतु सवाल यह है कि उसी वक्त विवाह शब्द कहां से आ गया, जो इस पहलेपहल आज ही आरंभ होने वाले विवाह के लिए प्रकट किया गया? बात तो असल यह है कि विवाह तब से है जब से विवाह शब्द […]
बहादुरशाह जफर का शेर है :- जिसे देखा हाकिमे वक्त ने, कहा ये तो काबिलेदार है। कहीं ये सितम भी सुने भला दिये फांसी लाखों को बेगुनाह।।दार का अर्थ फांसी होता है। सचमुच परतंत्रता के उस काल में हमारे देशवासियों के प्रति विदेशी शासकों की ऐसी ही मानसिकता बन चुकी थी। देशभक्ति उस समय एक […]
गतांक से आगे…..जिस प्रकार इन थोड़े से शब्दों का नमूना दिखलाया गया, उसी तरह सभी ऐतिहासिक शब्दों पर प्रकाश डाला जा सकता है। किंतु हम वेद भाष्य करने नही बैठे। हमें तो केवल थोड़ा सा नमूना दिखलाकर पाठकों से यह निवेदन करना है कि वे थोड़ी देर के लिए अपने मगज में जमे हुए इस […]