सिद्धपुर के मेले में, अपनी भूल से पिता की कैद में कोट कांगड़े में मैंने सुना कि सिद्धपुर में कार्तिक का मेला होता है वहां कोई तो योगी अपने को मिलेगा और अमर होने का मार्ग बता देगा इस आशा से मैंने सिद्धपुर की बाट पकड़ी। मार्ग में मुझे थोड़ी दूर पर पास के एक […]
श्रेणी: समाज
कुछ दिन पीछे मैंने कहा कि आप ने काशी जाने से रोका, इसमें मेरा कुछ आग्रह नहीं परन्तु यहां से तीन कोस पर अमुक ग्राम में जो बड़े वृद्ध और अपनी जाति के भारी विद्वान् रहते हैं और वहां हमारे घर की जमींदारी भी है, उनके पास जाकर पढ़ा करूं, इतना तो मान लीजिये । […]
भाई-बहिन- मुझ से छोटी एक बहन फिर उससे छोटा भाई फिर एक और भाई हुए अर्थात् दो भाई फिर एक बहन’ और हुए थे । तब तक मेरी १६ वर्ष की अवस्था हुई थी (इससे प्रकट है कि स्वामी जी सब से बड़े थे और उनके ज्ञानानुसार कुल तीन भाई और दो बहनें थीं।) पहली […]
१४ वें वर्ष में यजुर्वेद कंठस्थ, शिवरात्रि का ऐतिहासिक व्रत (१८९४ वि० ) – १४ वर्ष की अवस्था तक मैंने यजुर्वेद की संहिता कण्ठस्थ कर ली और कुछ वेदों का पाठ भी पूरा हो गया था और शब्दरूपावली आदिक छोटे-छोटे व्याकरण के ग्रन्थ भी पढ़ लिये थे। जहां-जहां शिवपुराणादिक की कथा होती थी वहां पिता […]
(सन् १८२४ ई० से १८७५; तदनुसार सं० १८८१ से १९३१ वि० तक) बचपन : वैराग्य: गृहत्याग व संन्यास मेरा वास्तविक उद्देश्य:देश-सुधार व धर्म-प्रचार- हमसे बहुत लोग पूछते हैं कि हम कैसे जानें कि आप ब्राह्मण हैं। आप अपने इष्टमित्र भाई बन्धुओं के पत्र मंगा दें अथवा किसी की पहचान बता दें ऐसा कहते हैं, इसलिए […]
हम अपनी इस लेखमाला के प्रारंभ में ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि प्राचीन काल में मंदिर संपूर्ण देश में धर्मचिंतन और राष्ट्रचिंतन के केंद्र हुआ करते थे । उस समय भारतवर्ष का कोई भी आर्य राजा मंदिरों से किसी प्रकार का कर नहीं लिया करता था। इसके विपरीत वह अपनी ओर से ऐसी […]
तलाक हमारा शब्द नहीं ये विषमताएं भारत के समाज में विवाह, तलाक, विरासत या बच्चा गोद लेने जैसे कानूनों के संदर्भ में देखी गई। हम सभी जानते हैं कि भारत की वैदिक हिंदू समाज में प्राचीन काल से ही तलाक जैसा शब्द कहीं सुनने देखने को नहीं मिलता। इसका समानार्थक शब्द भी आर्ष साहित्य में […]
भारत में प्राचीन काल से जिस वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था और 16 संस्कारों जैसी परंपराओं को मान्यता प्रदान की गई उससे यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भारत में सृष्टि प्रारंभ से ही सब राष्ट्रवासियों के लिए एक जैसी विधिक व्यवस्था की गई। प्राचीन काल में भारत देश में आपराधिक कानूनों में […]
भारत में प्राचीन काल से जिस वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था और 16 संस्कारों जैसी परंपराओं को मान्यता प्रदान की गई उससे यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भारत में सृष्टि प्रारंभ से ही सब राष्ट्रवासियों के लिए एक जैसी विधिक व्यवस्था की गई। प्राचीन काल में भारत देश में आपराधिक कानूनों में […]
नेहरू गुरुकुलों को दकियानूसी की पिछड़ी विचारधारा या मानसिकता का प्रतीक मानते थे। पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा जहां ‘हिंदुस्तानी’ को प्रोत्साहित करने और साथ – साथ हिंदी का भी ध्यान रखते हुए संस्कृत को महत्व देने की बात कही गई, वहीं उनकी नीतियों के चलते व्यवहार में इसका उल्टा परिणाम देखने को मिला। हुआ […]