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समाज

क्यों है सांप्रदायिक सद्भाव आज भी एक मृग मरीचिका

विनोद कुमार सर्वोदय राष्ट्रवाद को झुठलाने की एक और घटना जब सितम्बर 2008 में बटला हाउस (दिल्ली) में आजमगढ़ के आतंकियों को मारा गया तो उसमे दिल्ली पुलिस के शूरवीर इंस्पेक्टर के बलिदान को ही संदेहात्मक बना दिया और (छदम्) धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम आतंकियो के घर आजमगढ़ जाने की नेताओं में होड़ ही […]

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कोरोना के खिलाफ भयमुक्त वातावरण बनाना जरूरी : बाबा नंद किशोर मिश्र

नई दिल्ली ( विशेष संवाददाता ) अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबा नंद किशोर मिश्र ने कहा है कि कोरोना के खिलाफ भयमुक्त वातावरण बनाना समय की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि दुनिया के अनेक कोरोना प्रभावित देशों में भारतीय फंसे हैं, सरकार ने फिर एक बार ईरान और अन्य देशों में […]

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सांप्रदायिक सद्भाव और मुस्लिम कट्टरता

पिछले सप्ताह संघ व जमायते-उलेमा-हिन्द के प्रमुखों की एक बैठक दिल्ली में संघ के मुख्य कार्यालय में हुई। देश में साम्प्रदायिक सद्भाव व सौहार्द का वातावरण बनाने के लिए साथ-साथ कार्य करने की कुछ योजनाएं बनाई जाएगी समाचार पत्रों से ऐसे कुछ संकेत मिलें है। इस अभियान की सफलता के लिए यह जानना भी आवश्यक […]

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सेवा संस्कार से शून्य होते हमारे बच्चे और स्कूल

यह बहुत ही कष्ट का विषय है कि आज के बच्चे अपने माता-पिता के प्रति सेवाभावी नहीं हो पा रहे हैं । जब माता-पिता के प्रति सेवाभावी या कहना मानने वाले नहीं है तो वह समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं , सेवा भाव का तो प्रश्न ही समाप्त हो जाता है। […]

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दिलाना होगा तलाक को ही तलाक

मोदी सरकार की अब तक की उपलब्धियों में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में तीन तलाक पर लाया गया कानून देखा जा रहा है । वास्तव में मुस्लिम समाज में नारियों के साथ पिछली कई शताब्दियों के काल में जो कुछ होता रहा उसे किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता । यह […]

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बाल मजदूरी की फैलती जा रही हैं जड़ें

देवेंद्र जोशी भारत में बालश्रम एक समस्या तो है लेकिन विडंबना यह है कि यहां पहले से ही यह मान कर चला जाता है कि बच्चे इसलिए मजदूरी करते हैं कि इससे उनके परिवार का खर्च चलता है। यह तर्क अपने आप में इसलिए छलावा है कि इसको सच मान लेने का मतलब तो यह […]

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मुद्दा शिक्षा/रोजगार समाज

शिक्षा के मन्दिरों में बच्चे हिंसक क्यों बन रहे हैं?

नये भारत के निर्माण की नींव में बैठा इंसान सिर्फ हिंसा की भाषा में सोचता है, उसी भाषा मेें बोलता है और उससे कैसे मानव जाति को नष्ट किया जा सके, इसका अन्वेषण करता है। बदलते परिवेश, बदलते मनुज-मन की वृत्तियों ने उसका यह विश्वास और अधिक मजबूत कर दिया कि हिंसा हमारी नियति है, […]

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चलती फिरती जेल या अँधा-इंसाफ़ ?

 चार चार बेगमों का, हक मर्दों को. और चलती-फिरती जेल,*बेगम को . मूँद कर आँख इक रोज़ बेगम बन जा. पहन कर बुरका ज़रा संसद* हो आ. अण्डे* से बाहर निकल कर देख. आँखों से, हरा चष्मा उतार कर देख. (अण्डा= दकियानूसी रुढियाँ) बुरका नहीं, है ये, चलती फिरती जेल है; हिम्मत है, चंद रोज़ […]

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अपनों से ही शर्मसार होती मानवता

राजेंद्र प्रसाद शर्मा आंकड़े भले ही दिल्ली के हों, पर कमोबेश यह तस्वीर सारी दुनिया की देखने को मिलेगी। राजधानी दिल्ली में 2017 की आपराधिक गतिविधियों की बाबत दिल्ली पुलिस द्वारा इसी माह जारी आंकड़ों में कहा गया है कि बलात्कार के सत्तानवे फीसद मामलों में महिलाएं अपनों की ही शिकार होती हैं। अपनों से […]

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नकली दवा का दर्द

बाल मुकुंद ओझा घटिया और नकली चिकित्सीय उत्पादों का बाजार, प्रभावी नियंत्रण के अभाव में, लगातार बढ़ रहा है। मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे इसके खतरनाक प्रभाव को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में एक बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है। भारत सहित अ_ासी देशों में किए गए अध्ययन पर आारित इस […]

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