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कुपोषित बच्चों से कैसे बनेगा स्वस्थ समाज?

रिंकू कुमारी मुजफ्फरपुर, बिहार लखींद्र सहनी दूसरे के खेतों में मजदूरी करते हैं. पत्नी के अलावा उनकी छह बेटियां और चार बेटे हैं. सबसे बड़ी बेटी की कम उम्र में ही शादी हो गयी और सबसे छोटी पांच साल से कम उम्र की है. सबसे बड़ा बेटा किशोरावस्था में ही दूसरे प्रदेश में कमाने चला […]

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कब पूरा होगा किशोरियों के लिए आजादी का अर्थ?

खुशबू बोरा मेगड़ी स्टेट, उत्तराखंड कभी कभी हमारे देश में देखकर लगता है कि देश तो आजाद हो गया है, जहां सभी के लिए अपनी पसंद से जीने और रहने की आज़ादी है. लेकिन महिलाओं और किशोरियों खासकर जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं, उनके लिए आजादी का कोई मतलब नहीं है. उनके लिए तो […]

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बनिया की दो बेटियों का आत्मघात, ब्रम्हाकुमारियों के चक्कर में प्लॉट इज्जत, सम्पति भी गंवायी*

* ================= आचार्य विष्णु हरि सनातन विरोधियों और अंधविश्वासी, ढोंगी-ठगी, बाबाओं, ब्राम्हणों और तथाकथित हिन्दू संगठनों द्वारा बनियों को ठगने, मूर्ख बनाने और उनके पैसों पर मौज करने के खिलाफ मैं लगातार जागरूक कर रहा हूं पर परिणाम नहीं निकल रहा है। इसका दुष्परिणाम यह देख लीजिये। एक बनिया की दो बेटियो ने आत्महत्या कर […]

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पति के संयम सदाचार के पालन करने तथा पत्नी के पति तथा परिवार के सदस्यों के साथ वेदोक्त प्रिय आचरण से पति की आयु बढ़ेगीअन्यथा बाकी सब मिथ्याचार है*।

लेखक आर्य सागर खारी 🖋️ पत्नी वह जो पति को पतन के मार्ग पर जाने से बचाए बुराइयों से रोके इसलिए उसे पत्नी कहा गया है| आयुर्वेद, जीवन दर्शन के ग्रंथों में आयु को घटाने -बढ़ाने वाले कर्म का विस्तार से वर्णन किया गया है | पति के सदाचार के पालन करने संयमित जीवन जीने […]

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पुत्र बनाना आसान नहीं लोग संतति ही बन पाते हैं

डॉ. राधे श्याम द्विवेदी पितृ पक्ष समापन की ओर अग्रसर है। व्यक्ति अपने अपने पितरों को तर्पण जल और श्रद्धा दे रहे हैं।इस दौरान पुत्र और संतति का अर्थ और दोनों में विभेद का जानना समीचीन है। पुत्र’ शब्द की व्युत्पत्ति के लिये यह कल्पना की गई है कि जो पुन्नाम [‘पुत्’ नाम] नरक से […]

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क्यों लड़कियों को पढ़ाने के लिए समाज गंभीर नहीं हैं?

भारती देवी पुंछ, जम्मू वर्षों बीत जाते हैं यह सुनते सुनते की किशोरियों और महिलाओं पर आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं. दुनिया में इतनी तरक्की हो रही है जिसमें महिलाओं एवं किशोरियों का विशेष योगदान रहा है. फिर भी आज 21वीं सदी में भी महिलाएं एवं किशोरियों सुरक्षित नहीं दिखाई देती हैं. लड़कियों के साथ […]

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संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते

आज हम में से बहुतों के लिए खून के रिश्तों का कोई महत्त्व नहीं। ऐसे लोग संबंधों को महत्त्व देने लगे हैं। और आश्चर्य की बात ये कि ऐसा उन लोगों के बीच भी होने लगा है जिनका रिश्ता पावनता के साथ आपस में जोड़ा गया है। वैसे तो हमारे सामाजिक संबंधों और सगे रिश्तों […]

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लड़कियां बोझ नहीं, ताकत हैं

हेमा रावल गनीगांव, उत्तराखंड हाल ही में संसद के विशेष सत्र में पास किये गए महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण विधेयक को राष्ट्रपति ने भी मंज़ूरी प्रदान कर दी है. इसके साथ ही यह ऐतिहासिक विधेयक अब कानून का रूप ले चुका है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने […]

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कब होगा दहेज मुक्त समाज?

तनुजा भंडारी गरुड़, उत्तराखंड आज़ादी के 75 साल में देश में बहुत कुछ बदलाव आ चुका है. कृषि से लेकर तकनीक तक के मामले में हम न केवल आत्मनिर्भर बन चुके हैं बल्कि दुनिया का मार्गदर्शन भी करने लगे हैं. इतने वर्षों में यदि कुछ नहीं बदला है तो वह है महिलाओं के खिलाफ हिंसा. […]

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कितना सफल हुआ है खुले में शौच से मुक्ति का अभियान? खुशी यादव

बीकानेर, राजस्थान कितनी विडंबना है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश की एक बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर है. 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 53.1 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं था. जिसकी वजह से महिलाओं और लड़कियों को सबसे ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. खुले में […]

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