भारत देश में ईसाई मत का आगमन कब हुआ। यह कुछ निश्चित नहीं हैं। एक मान्यता के अनुसार 52 AD में संत थॉमस का आगमन दक्षिण भारत में हुआ। उनके प्रभाव से ईसाई बने भारतीय अपने आपको सीरियन ईसाई कहते हैं। ईसाई इतिहासकारों की इस मान्यता में अनेक कल्पनायें समाहित हैं।[i] वास्को दे गामा […]
श्रेणी: भयानक राजनीतिक षडयंत्र
देश का विभाजन और आजादी के बाद की राजनीति अलिखित रूप से अंग्रेजों और मुसलमानों के बीच बनी उपरोक्त सहमति पर काम करते हुए वर्ष 1909 का मार्ले-मिंटो सुधार अंग्रेज अपनी इसी नीति के आधार पर लाए थे । उन्होंने आगे चलकर ‘भारत सरकार अधिनियम’ लागू किया और उसमें भी मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहित करने […]
मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना , अध्याय – 10 ( 2 ) अंग्रेजों ने मुस्लिमों को समझा दिया था…… भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता शासन द्वारा प्रायोजित होती रही थी । अंग्रेजों ने इस तथ्य को समझकर मुस्लिमों को अपना समर्थन प्रदान कर उन्हें यह बात धीरे से समझा दी कि वह […]
भारत में साम्प्रदायिकता ,अंग्रेज और कॉंग्रेस भारत में प्राचीन काल में शासन की नीति का आधार पंथनिरपेक्ष विचारधारा होती थी । जिसमें शासन का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता की स्वतन्त्र अनुभूति कराना होता था। किसी पर भी किसी प्रकार का बन्धन न हो, प्रतिबन्ध न हो और अपने जीवन को सब सुरक्षित […]
यदि इतिहास के संदर्भ से देखा जाए तो हिंदू अपने अस्तित्व के लिए आज से नहीं अपितु सदियों से संघर्ष कर रहा है। यद्यपि आज का धर्मनिरपेक्ष हिंदू अपने अस्तित्व के प्रति पूर्णतया असावधान है। जब इस्लाम ने भारत में प्रवेश किया तो वह हिंदू विनाश के लिए ही भारत आया था । यह […]
-श्याम सुन्दर पोद्दार ——————————————— औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात इस्लामिक राजसत्ता मराठों व सिखों के हमले से जर्जर होकर नही के बराबर रह गयी व १८५७ में अंग्रेजों की सफलता के चलते पूर्णतः समाप्त हो गयी। १९२० में मुसलमानो ने मुस्लिम लीग के नेतृत्व में कांग्रेस के नेता गांधी को राज़ी कर लिया कि कांग्रेस […]
बालकों का धर्मयुद्ध जब से विश्व इतिहास में मजहब का हस्तक्षेप बढ़ा तबसे एक नई प्रवृत्ति देखने को मिली। जिसके अन्तर्गत क्रूर शासकों ने बच्चों और महिलाओं के साथ भी अमानवीय अत्याचार किए। उससे पूर्व के मानव इतिहास में ऐसी घटनाएं नहीं हुईं। विशेष रुप से भारत के आर्यावर्तकालीन इतिहास पर यदि दृष्टिपात किया […]
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिवस पर अनेक बार कार्यक्रम आयोजित होता रहा है । आयोजकों का कहना है कि बंग देश के राजा महिषासुर दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के नायक थे, लेकिन इतिहास लिखने वालो ने उन्हें खलनायक के रूप में पेश किया है । महिषासुर दस्यु थे और उनका दमन करने वाली […]
हिंदू लोग, विशेषकर हिंदू बुद्धिजीवी वर्ग, अपने पर हो रहे चहुंमुखी बौद्धिक हमलों के विरुद्ध किसी ठोस वैचारिक अभियान चलाने या बौद्धिक हमलों का बौद्धिक प्रत्युत्तर देने में प्रायः निष्क्रिय रहा है. स्वयं के विरुद्ध किए गए किसी के मनगढंत दावे, विवरण या सफेद जूठ को देखकर भी उसे हल्के में लेकर इग्नोर कर […]
रोमिला थापर vs. सीताराम गोयल: भारत के मार्क्सवादी इतिहासकार दो हथियारों (तकनिकों) से हंमेशा लैस रहते है: उनका पहला हथियार होता है अपने इतिहास लेखन पर प्रश्न उठाने वालों या असहमत होने वालों पर तुरंत “साम्प्रदायिक – communal” होने का लांछन लगा देना, ताकि सामने वाला शुरु से ही बचाव मुद्रा में आ जाए, […]