कुछ लोग कहते हैं कि हम परमात्मा एक कल्पना है , हम उसको नही मानते क्योकि वह दिखाई नही देता ! इसका उत्तर व निराकरण – जो वस्तु अति दूर है, अति पास है,अति सूक्ष्म है, उसे हम अपनी ऑखो से नही देख पाते । फिर ईश्वर तो हमारे हृदय मे निवास करता है उसको […]
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अध्याय 5 पांच महायज्ञ गृहस्थ को पांच महायज्ञ के करने का विधान हमारे ऋषियों ने किया है। यह पंच महायज्ञ है:-ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ,अतिथियज्ञ और बलिवैश्वदेव यज्ञ । इनमे प्रथम है-ब्रह्मयज्ञ । ईश्वरोपासना और धर्म ग्रंथों के अध्ययन का नाम ब्रह्मयज्ञ है। ईश्वरीय गुणों का धारण और मोक्ष की ओर अग्रसरता आदि लाभ हैं।धर्मग्रंथों के अध्ययन […]
पूजनीय प्रभो हमारे , अध्याय 3 किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है :- ओ३म् है जीवन हमारा, ओ३म् प्राणाधार है। ओ३म् है कर्त्ता विधाता, ओ३म् पालनहार है।। ओ३म् है दु:ख का विनाशक ओ३म् सर्वानंद है। ओ३म् है बल तेजधारी, ओ३म् करूणाकंद है।। ओ३म् सबका पूज्य है,हम ओ३म् का पूजन करें। ओ३म् ही के ध्यान […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-79
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. कहा गया है कि वह परमात्मा ‘अकाम:’ अर्थात कामनाओं से मुक्त कामना रहित है, वह किसी भी प्रकार की कामना के फेर में नहीं पड़ता। जैसे हम सांसारिक लोगों की कामनाएं होती हैं-वैसे उसकी कोई कामना नही होती। वह धीर है अर्थात असीम धैर्यवान […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-78
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. अर्थात हे अर्जुन! शुभकर्म करने वालों का न तो यहां इस लोक में और न ही परलोक में कभी विनाश होता है। हे प्रिय बन्धु! कोई शुभकर्म करने वाला दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है, कारण कि ईश्वर की करूणा उसकी निरन्तर रक्षा करती […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-77
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. संसार के किसी न्यायाधीश से जब कोई व्यक्ति स्वयं को आहत मानता है तो वह दया की भीख इसीलिए मांगता है कि दण्ड अपेक्षा से अधिक कठोर हो गया है-उसे दयालुतापूर्ण कर लिया जाए। न्यायिक प्रक्रिया में फिर भी कहीं कोई दोष त्रुटि या […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-76
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. ऋग्वेद (3 / 18 / 1) के मंत्र की व्याख्या करते हुए स्वामी वेदानंद तीर्थ जी अपनी पुस्तक ‘स्वाध्याय संदोह’ में लिखते हैं कि- ‘हे ज्ञान दान निपुण! अग्रगन्त:! आदर्श ! ज्ञान विज्ञान की खान ! प्रकाशकों के प्रकाश ! परम प्रकाशमय! अज्ञानान्धकार विनाशक […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-75
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रह्वहे गतांक से आगे…. कथावाचकों की फीस लाखों में पहुंच गयी है। धर्म और प्रवचन बेचे जा रहे हैं। उनके माध्यम से अश्लीलता परोसी जा रही है। ‘इदन्नमम्’ का सार्थक व्यवहार समाप्त हो गया है, जिससे लोभवृत्ति में वृद्घि हो गयी है, झूठे अहम् को लेकर लड़ाई झगड़े […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-74
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे गतांक से आगे…. अत: एक प्रकार से नमस्ते दो विभिन्न आभामंडलों का प्रारंभिक मनोवैज्ञानिक परिचय है, जिसमें दो भिन्न-भिन्न आभामंडल कुछ निकट आते हैं, और परस्पर मित्रता का हाथ बढ़ाने का प्रयास करते से जान पड़ते हैं। इसीलिए कहा गया है :- अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्घोपसेविन:। चत्वारि […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-73
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे गुरू ने शिष्य से एक दांव छुपाकर रखा-यह उनका ‘यथायोग्य वत्र्ताव’ था। उन्होंने उसे सब कुछ सिखाने का प्रयास किया-यह उनका ‘प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार किया गया आचरण’ था। भारत का राष्ट्रीय अभिवादन ‘नमस्ते’ है। नमस्ते की सही मुद्रा है -व्यक्ति के दोनों हाथों का छाती के सामने आकर […]