निजी सुरक्षा के नाम पर अर्थशक्ति का अपव्यय, भाग-4 सेना में मुस्लिमों को आरक्षण देश की सुरक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ करते हुए अब देश की सशस्त्र सेनाओं में मुस्लिमों को आरक्षण दिया जा रहा है। इसका परिणाम क्या होगा? भविष्य में पाकिस्तान से यदि भारत का युद्घ हुआ तो वही आशंका रहेगी कि जो राजा […]
Category: राजनीति
हम यह मानते हैं कि शासक वर्ग के लिए सुरक्षा की आवश्यकता होती है। उसके उत्तरदायित्वों के अनुसार समाज में उसके शत्रु भी होते हैं। राजकीय कार्यों में विघ्न डालने वाले भी होते हैं, इसलिए शासन को उसकी सुरक्षा का पूर्ण दायित्व लेना अपेक्षित है। किंतु ऐसा कहना अद्र्घसत्य ही है-पूर्णसत्य नहीं। इस अद्र्घसत्य को […]
आज से लगभग सवा पांच हजार वर्ष पूर्व भारत में महाभारत हुआ था और यहीं से भारत ‘गारत’ होने लगा था। यही वह बिन्दु है जिसके पश्चात विश्व के अन्य देशों की उल्टी-सीधी सभ्यताओं ने सांस लेना आरंभ किया। यही कारण है कि विश्व के अधिकांश तथाकथित विद्वान इस विश्व की कहानी को मात्र पांच […]
जब चीन को हराया था भारत ने
भारत के प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद से चीन के हृदय की धडक़नें कुछ अधिक ही बढ़ी हुई हैं। अब भारत ने अपनी सीमाओं की रक्षा करना सीख लिया है, बस यही कारण है जो कि चीन को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है। अब चीन हमें 1962 के युद्ध जैसे परिणामों की […]
भारत के विश्व स्तर पर बढ़ते सम्मान को देखकर भारत के दो प्रकार के शत्रुओं के पेट में दर्द हो रहा है। इनमें से एक बाहरी शत्रु हैं तो दूसरे भीतरी शत्रु हैं। बाहरी शत्रुओं में सर्वप्रमुख पाकिस्तान और चीन हैं, जबकि भीतरी शत्रुओं में भारत के भीतर बैठे पाक-चीन समर्थक तो हैं ही साथ […]
पश्चिमी देशों ने भोग के रोग से मुक्ति पाने हेतु भारत के योग को अपनाना आरंभ कर दिया है-इस संकेत से हमें उत्साहित होना चाहिए। हमें मानना चाहिए कि हमारी ग्राहयता यदि कहीं बढ़ रही है, तो निश्चित रूप से कुछ ऐसा हमारे पास है जो उनकी दृष्टि में अनमोल है। हमारी दृष्टि में यह […]
पांच प्रतिशत बनाम पिचानवें प्रतिशत का अनुपात हुआ करता है। किंतु इसके उपरांत भी पिचानवें प्रतिशत लोगों को रास्ता दिखाने और बताने का कार्य ये पांच प्रतिशत लोग ही किया करते हैं। कहने का अभिप्राय है कि जमाना पिचानवें प्रतिशत लोगों से बनता है, किंतु जमाने को सही दिशा या रास्ता सिर्फ पांच प्रतिशत लोग […]
हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी एक बार अपनी सोवियत संघ की यात्रा पर थीं, जहां उन्होंने अपना भाषण अंग्रेजी में देना आरंभ कर दिया था। तब उन्हें वहां के राष्ट्रपति की उपस्थिति में इस बात के लिए टोक दिया गया था कि-‘आप अपना भाषण या तो हिंदी में दें या फिर रूसी […]
आज हमें देश के सामने खड़ी चुनौतियों के नये -नये स्वरूपों पर चिंतन करना है। प्रमादी, आलसी, निष्क्रिय होकर किसी ‘अवतार’ की प्रतीक्षा में नहीं बैठना है, अपितु क्रियात्मक रूप में कार्य करना है। क्रियात्मक रूप में जिसका वर्तमान सो जाता है, उसका भविष्य उजड़ जाया करता है। इसलिए हमें सोना नहीं है। हमें कर्मठता […]
भारत देश का संवैधानिक नाम भारत संघ (इंडियन यूनियन) है। इसका कारण यह बताया जाता है कि भारत विभिन्न राज्यों का एक संघ है। यद्यपि इन राज्यों की संवैधानिक स्थिति कभी के सोवियत संघ के राज्यों की स्थिति के सर्वथा भिन्न है। इसके अतिरिक्त ये राज्य किसी भी स्थिति परिस्थिति में ‘राष्ट्र राज्य’ नही हो […]