अभिषेक रंजनना-ना करते प्यार, तुम्हीं से कर बैठे, करना था इंकार, लेकिन इकरार, तुम्ही से कर बैठेकुछ ऐसा ही हाल आजकल अन्ना के लोकपाल मुहीम से जन्मे आआपा का है। पहले राजनीती को ना, फिर कांग्रेस-भाजपा से समर्थन लेने से ना, अब अन्ना केलोकपाल को ना। लेकिन बदलते हालात में सबको गले लगाने को आतुर […]
Category: राजनीति
जनता ने लिखी परिवर्तन की इबारत
नरेश भारतीदेश की दिशा में परिवर्तन के संकेत स्पष्ट हैं। राजनीतिक दंगल में उतरने वालों को अब देश की दशा में निर्णायक परिवर्तन लाने के लिए सशक्त जन आह्वान सुनने को मिल रहा है। विधानसभा चुनावों का वर्तमान दौर पूरा हो चुका है और प्राप्त परिणामों का विश्लेषण करते हुए पार्टी नेतृत्व अब अपनी अपनी […]
बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से
प्रवीण दुबेजैसी संभावना थी वही सामने आया, चार राज्यों के चुनाव परिणामों में कांग्रेस को जनता ने नकार दिया है। किसी ने ठीक ही कहा है ”बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से होय” कांग्रेस को जब-जब देशवासियों ने मौका दिया, वो जहां-जहां भी सत्ता में रही उसने जनता के साथ झूठ, छल, कपट […]
स्वयंभू मठाधीशों के मठ तोड़ने का समय
राजीव रंजन प्रसादतहलका प्रकरण किसी एक व्यक्ति या एक संस्था पर प्रश्नचिन्ह नहीं है। यह गढ़ों और मठों के टूटने की कड़ी में एक और महत्वपूर्ण घटना है। वैचारिक असहिष्णुता और विचारधारात्मक अस्पृश्यता के वातावरण में जब यह घटना घटी तो अनायास ही इसके सम्बन्ध समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र से जुड़ने लगे। एक आम अपराधी […]
डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्रीअरविन्द केजरीवाल का किस्सा अब धीरे धीरे खुलता जा रहा है । वे पिछले कुछ अरसे से दिल्ली में भ्रष्टाचार से लड़ने की अपनी इच्छा ज़ाहिर करते रहे । यह इच्छा और इसका प्रदर्शन उन्होंने अन्ना हज़ारे के कुनबा में रह कर ज़ाहिर किया था । अन्ना के कारण कुनबे की इज़्ज़त […]
राहुल पर भारी पड़ रहे हैं मोदी?
इक़बाल हिंदुस्तानीकांग्रेस के ना चाहते हुए भी 2014 में होने जा रहे आम चुनाव में पीएम पद का मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो चुका है। इसके साथ ही सेकुलर कहे जाने वाले अनेक दलों और लोगों की चाहत के खिलाफ मोदी का ग्राफ दिन ब दिन ना केवल राहुल और उनकी कांग्रेस से […]
विनोद बंसल पंद्रहवीं शताब्दी में मुगलों के अत्याचारों के चलते पूरे भारत में फ़ैली अराजकता व लूट-खसोट के कारण जन जीवन पूरी तरह असुरक्षित था।हिन्दू धर्म कर्म काण्ड व कुप्रथाओं की जटिलताओं में उलझ गया था। भयाक्रान्त हिन्दू अपना धर्म त्याग मुस्लिम बनने को मजबूर थे और धर्म और मानवता से लोगों की आस्था पूरी […]
देश का पी.एम. चाय बेचने वाला नही हो सकता
राकेश कुमार आर्यहमारे देश का संविधान हमारे जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए केवल इतनी व्यवस्था करता है कि ऐसा व्यक्ति (1) भारत का नागरिक हो (2) सजायाफ्ता मुजरिम ना हो (3) पागल या दिवालिया न हो इत्यादि।जिस देश के जनप्रतिनिधियों के भीतर जनप्रतिनिधि बनने के लिए केवल इतनी ही योग्यता रखी गयी हो, उस देश […]
भारत में पुलिस और नागरिक सम्बन्ध-कल और आज
मनीराम शर्मापुलिस सुधार के लिए भारत में समय समय पर स्वर उठते रहे हैं और जनता के उबाल पर ठन्डे छींटे मारने के लिए विभिन्न कमेटियों/आयोगों/बोर्डों का गठन किया जाता रहा है किन्तु पुलिस के कर्कश स्वर में अभी तक कोई कमी नहीं आई है। प्राय: आरोप लगते रहते हैं कि पुलिस अपराधियों के साथ […]
खाके वतन का मुझको हर जर्रा देवता है
जावेद उस्मानीभारत का सौहाद्र दुनिया के लिए मिसाल है लेकिन गाहे बगाहे कुछ सरफिरे अपने निहित स्वार्थ के कारण व्यर्थ के विवादो को हवा देते रहते है इनमें दिशाविहीन और विचारहीन ,सियासतदां भी शामिल हैं। धर्म ,जाति और भाषा पर ऐसे तत्वो का हस्यापद आचरण व विषवमन समरसता और मानवता के विरुद्ध अपराध से कम […]