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अध्याय … 70 आत्मा रथी शरीर में …..

208 खोज अपने आप की, सबसे बड़ी है खोज। जिन खोजो है आपुनो ,बन गई ऊंची सोच।। बन गई ऊंची सोच ,किया विषयों से किनारा। भीतर हुआ प्रकाश ,छोड़ दिया जगत पसारा।। खोजी खोजें खोज में, और ऊंची रखते सोच। सोच मिलती शोध से,और पूरी होती खोज।। 209 मन कपट की धार है, वाणी भरी […]

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अध्याय … 69 , हाथ का मनका छोड़…..

205 शिव का कर ले ध्यान तू ,करे वही कल्याण। भवसागर से पार हो, जीवन का हो त्राण।। जीवन का हो त्राण , मिलेगी मुक्ति तुझको। मुनि मनीषी जप रहे, ध्यान लगाकर उसको।। हाथ का मनका छोड़, पकड़ मन का मनका। बेड़ा पार तेरा होगा , ध्यान करेगा शिव का।। 206 पढ़ लिखकर नौकर हुए, […]

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अध्याय … 63 जोबन चढ़ती वासना…..

187 सत्व ,रज और तम से बना, चित्त उसी का नाम। जब तामस इसमें बढ़े, करता उल्टे काम।। करता उल्टे काम, अधर्म और अनीति लावै । उल्टी देता सीख मनुज को, अज्ञान बढ़ावै।। विषयों में जा फंसता मानव, छा जाता है तम। बताए प्रकृति के तीन गुण, सत्व ,रज और तम।। 188 वासना के भूत […]

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अध्याय … 62 संसार नदिया बह रही …..

184 संसार नदिया बह रही, आशा जिसका नाम। जल मनोरथ से भरी, कलकल कहे प्रभु नाम।। कलकल कहे प्रभु नाम, उठती तरंग तिरसना। राग द्वेष के मगर घूमते, मार रही है रसना।। तर्क वितर्क के पक्षी जल में, करते खुले विहार। अज्ञान रूपी भंवर देखकर, व्याकुल है संसार।। 185 जग नदिया के घाट पर, भई […]

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अध्याय … 61 मदिरा पीकर सो रहा…..

181 फटी पुरानी गूदड़ी , और चिंता जिससे दूर। भिक्षा ले भोजन करे, आनंद करे भरपूर।। आनंद करे भरपूर , नाम ईश्वर का भजता। नींद लेय बड़ी मस्ती से, मस्त सदा ही रहता। राग द्वेष से मुक्त , कटे जिसकी जिंदगानी।। वह गूदड़ी बड़ी कीमती, बेशक फटी पुरानी।। 182 उदय – अस्त हो सूर्य, उमर […]

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अध्याय … 60 जिसके मन में लोभ है….

178 अनुकूल पति के जो चले, वही है उत्तम नार । आज्ञा उसकी मानकर, करत सभी ब्यौहार।। करत सभी ब्यौहार , कभी ना उल्टी चलती। करे सहज स्वीकार , यदि हो जाए गलती।। रखती मीठी वाणी, आचरण करे ना प्रतिकूल।। मति और गति सब ,रखती स्वामी के अनुकूल।। 179 जिसके मन में लोभ है, दुर्गुण […]

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अध्याय … 59 समय करे बर्बाद जो ……

175 श्रेष्ठ पुरुष की संगति , सबसे ऊंचा लाभ। मूरख के संग जो रहे, जाय दुखों के धाम।। जाय दुखों के धाम , कभी ना चैन से सोता। मूर्ख संगत से बड़ा , कोई नहीं दुख होता।। श्रेष्ठ पुरुष के संग से, सुधरे जीवन की गति। प्रारब्ध के योग से , हो श्रेष्ठ पुरुष की […]

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अध्याय … 58 हिल जाए भूगोल ….

172 छाल के कपड़े पहन के, मुनि बहुत संतुष्ट। हीरे सोने लाद कर , राजा हुआ संतुष्ट।। राजा हुआ संतुष्ट, दोनों का संतोष बराबर। दरिद्र वही होता मानव, तृष्णा करे उजागर।। तृष्णा के वशीभूत हो, दरिद्र का बिगड़े हाल। वह संतोषी धनवान है, पहने वृक्ष की छाल।। 173 मीत ! यह संभव नहीं, सज्जन बदले […]

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कुंडलियां ,अध्याय 57 : वाणी मीठी बोलिए

अध्याय … 57 169 परहित के लिए त्याग दें, अपना सब धन माल। सत्पुरुष होते वही, गीत गाय संसार।। गीत गाय संसार , करें सब वंदन उनका। आत्मकल्याण, जग उत्थान, धर्म हो जिनका।। जगहित करे सो उत्तम, मध्यम करे अपना हित। नीच करे दूजों को हानि, सबसे उत्तम परहित।। 170 वाणी मीठी बोलिए, गहना सबसे […]

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अध्याय … 56 गीता ने समझा दिया……

166 जो करना उत्तम कर्म, कर डालो तुम आज। मौत शिकंजा कस रही,पूरण कर लो काज।। पूरण कर लो काज , ना फिर समय मिलेगा। जो कुछ भी पैदा किया ,सब कुछ यहीं रहेगा।। उत्तम कर्म ही संसार में , कहलाता है धर्म। याद धर्म को राखिए, जो करना उत्तम कर्म।। 167 गीता ने समझा […]

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