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कविता

अध्याय … 80 मेरी भारत माता,…….

238 खाया जहां का अन्न है, पुण्य धरा और धाम। जब तक हम जग में जिएं, करें देश के काम।। करें देश के काम , अपना देश सुधरता। भूमंडल में खुशबू फैले, परिदृश्य बदलता।। पूर्वजों से अपने हमने, यही संदेश है पाया। ऋण होता उस माटी का,अन्न जहां का खाया।। 239 दोहराते संकल्प हम, अखंड […]

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अध्याय … 79 माता मेरी रो रही…..

235 भारत में भारत बसे, लेय विशाल स्वरूप। चक्रवर्ती सम्राट हों , वही पुराने भूप।। वही पुराने भूप , फिर तक्षशिला नालंदा हों। हमसे लेकर ज्ञान, ना कोई कभी शर्मिंदा हो।। सारे भूमंडल को लोग कहें , फिर से भारत। सब भेदों को, समूल मिटा दे अपना भारत।। 236 ‘नवभारत’ कैसा बना, जान गये सब […]

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अध्याय … 78 समझो अपने देश को ……

232 तेज ,क्षमा और धैर्य, वैरभाव का त्याग। अहंकार से दूर हो, उसका दिव्य स्वभाव।। उसका दिव्य स्वभाव, आशीष देव का। मानव वही बना करता , आदर्श देश का।। राष्ट्रवंदना सिखिलाता है, मेरा भारत देश। जिसने समझा ‘भारत’, मिला उसी को तेज।। 233 समझो अपने देश को, दुनिया का सिरमौर। रहा बांटता ज्ञान को, बना […]

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अध्याय … 77 नहीं है कोई देश दूसरा…..

229 दूर नहीं वह पास है, क्यों खोजे नादान ? तेरा मालिक घट बसे, तू नाहक है परेशान।।7 तू नाहक है परेशान , देख उसे अंतर्मन में। वह निकट से निकट , बसा हुआ है मन में।। निकट का आभास , मिले भक्ति में भरपूर। ज्ञानी पिता सर्वज्ञ को, कहते- दूर से भी दूर। 230 […]

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अध्याय … 76 स्वभाव जैसा जीव का,……..

226 नाच दिखाके शांत हो , करे नर्तकी रोज । प्रकृति पीछे हटे , हो जाता जब मोक्ष।। हो जाता जब मोक्ष, जगत रचा ईश्वर ने। जीवों का कल्याण हो, भाव रखा ईश्वर ने।। स्वभाव जैसा जीव का, वही रचाता रास । अपनी अपनी साधना,अपना अपना नाच।। 227 तीन, पांच ,सोलह जुड़ें, संख्या है चौबीस […]

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अध्याय … 75 : जो जन्मा सो जाएगा……

223 अपने धर्म को छोड़कर , जो भी जाता भाग। लोग उसे धिक्कारते, लाख टके की बात।। लाख टके की बात ,माधव ने बताई अर्जुन को। धर्म क्षेत्र के बारे में, सच बतलाया अर्जुन को।। लोक-लायक ना होते, छोड़ भागते जो रण को। लोकनायक वही बनें, जो जानें अपने धर्म को।। 224 जो जन्मा सो […]

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अध्याय … 74 काम करो और नाम लो……..

220 जो भी लत हमको लगी, कर देती बर्बाद। दारू – धुआं छोड़ दे, रहना जो आबाद।। रहना जो आबाद , सीख कुछ कछुए से भी। सिकोड़ लेत है अंग, चोट लगे ना मारे से भी।। सिकुड़ कछुए की भांति, क्यों बनता है भोगी ? लक्ष्य वही पा जाएगा , दिल से चाहता जो भी।। […]

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अध्याय … 73 योग करें मनोयोग से…..

217 यज्ञ करो संसार में, वर्षा हो भरपूर। अन्न उगेगा खेत में , रोग शोक हों दूर।। रोग शोक हों दूर,फैले खुशहाली चहुंओर। प्रेम – प्रीत सहयोग से, नाचे मन का मोर।। ऋषियों का उपदेश – यज्ञ करो, यज्ञ करो। वेद का संदेश यही – यज्ञ करो, यज्ञ करो।। 218 कामी करता कामना, रहे दुखी […]

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अध्याय … 72 : काया, मन, बुद्धि सभी….

214 झूठ कपट को छोड़कर, कर ली ऊंची सोच। अंतः सुख जो हो गया, मिला उसी को मोक्ष।। मिला उसी को मोक्ष, सब आना-जाना छूटा। पाया ब्रह्मानंद उसी ने, मधुरस जिसने लूटा।। झूठी दुनिया छोड़ी जिसने करी नाम की लूट। मिले शरण उसी को, छोड़ दिया जिसने झूठ।। 215 काया, मन, बुद्धि सभी, हों योगी […]

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अध्याय … 71 , जिससे सब उत्पन्न हों….

211 सब भूतों में एकरस , रमा हुआ भगवान। अविनाशी उसको कहें, अर्जुन से भगवान।। अर्जुन से भगवान , मिलती मुक्ति उसको। निर्गुण है परमात्मा,ना छूता विकार उसको।। नहीं बांटता भगवान, छूत और अछूतों में। विराजमान है भीतर, जग के सारे भूतों में।। 212 जिससे सब उत्पन्न हों, और धारते प्राण। उसी में सबकी लय […]

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