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आधुनिक विज्ञान से-भाग-तीन

राह बदल दी नदियों की, कर बांधों का निर्माण।चट्टानों में सुरंग बना दी, जो खड़ी थी सीना तान। की हरियाली उन क्षेत्रों में, जो कभी थे रेगिस्तान।नये बीज और यंत्रों द्वारा, आयी हरित क्रांति महान। आकाश से बातें करने वाले, ऊंचे महल बनाये।सागर सीना चीरने वाले, दु्रतगामी जलयान बनाए। जो नभ की ढूढ़ें गहराई, ऐसे […]

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आधुनिक विज्ञान से-भाग-दो

आणविक अस्त्रों का संग्रह कर, अंतरिक्ष भंडार बनाया।राकेटों में मौत बंदकर, सिर के ऊपर लटकाया। किंतु कराहती मानवता ने, धीरे से यह फरमाया।वरदान कहा करते थे तुझे, किसने अभिशाप बनाया? प्रकृति के गूढ़ रहस्यों का, तो तुमने पता लगाया।किंतु मानव-हृदय गह्वर को, तू भी माप नही पाया। जिसने तेरे उज्ज्वल मस्तक पर, ये काला दाग […]

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आधुनिक विज्ञान से

अरे ओ आधुनिक विज्ञान, सुना है तुम हो बहुत महान।मेरी भी कुछ शंकाओं का, है क्या तेरे पास निदान?।।अरे ओ आधुनिक विज्ञान। ईश्वर की शक्ति सविता ने, किया था सृष्टि का संचार।आदि काल से ही करता आया, नित नूतन आविष्कार।। पढ़े सुने और देखे तेरे, कितने ही चमत्कार।सोचा तेरे द्वारा होगा, हर प्राणी का उपकार।। […]

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विश्व विनाश के कगार पर, भाग-2

शांति, अहिंसा, प्रेम, त्याग से, करें सहयोग में वृद्घि।समझें परिवार इस वसुधा को, मित्रभाव से करें समृद्घि। रूलाकर किसी भी प्राणी को, प्रभु हंसना अपना स्वभाव न हो।मानव मानव के मानस में, किंचित भी कोई दुर्भाव न हो। विज्ञान हमें ऐसा देना, जिसमें हृदय का अभाव न हो।नही चाहिए ऐसा स्वर्ग, जहां आपस में सदभाव […]

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विश्व विनाश के कगार पर

वर्चस्व जमाना चाहते हैं, और तुझे भी मिटाना चाहते हैं।सुना था प्रभु प्रलय करने का, तेरा विशिष्ट अधिकार।लगता तुझसे भूल हुई, तू खो बैठा अधिकार। लगती होंगी अटपटी सी तुमको, मेरी ये सारी बातें।एटम की टेढ़ी नजर हुई, बीतेंगी प्रलय की रातें। निर्जनता का वास होगा, कौन किसको जानेगा?होगा न जीवित जन कोई, तब तुझको […]

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कोई तो बोलो आज अरे

क्या झील का खामोश दर्पण, खोया है उनकी याद में?क्या ध्यानमग्न हो हिमगिरि भी, उलझे हैं इस विवाद में? विरह की सी धुन लगती है, झरनों के निनाद में।कोई तो बोलो, आज अरे, मेरे वाद के प्रतिवाद में। जीवन का ये जटिल प्रश्न, कैसे बने सरल?जीवन बीत रहा पल-पल………….. विचित्र विधाता की सृष्टि को, निरख […]

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कहां गये वो लोग?

स्वरूप बिगड़ता देख कर अपना, क्या तू भी कभी बोलती है?उत्खनन हो रहा खनिजों का, सोना, चांदी, हीरे, मोती।चलते हो बम दमादम जब, क्या तू भी सिर धुनकर रोती? रोती होगी तू अवश्यमेव, यह होता आभास।आंसू छलके जब जब तेरे, यह बता रहा इतिहास। मत दे जीवन धरनी उनको, है दिल की यह अरदास।मानव रक्त […]

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परिवर्तन, भाग-2

बोल सको तो विटप भी बोलो, कहां गये तुम्हारे पात?आता पतझड़ धरती पर क्यों, उसे कौन बुलाने जाता है? सजी संवारी धरती के, सारे गहने ले जाता है।दुल्हन धरती को विधवा कर, तू जरा तरस नही खाता है।लगता बसंत रोता गम में, जब मेघ बरसता आता है। मेघ गर्जना बसंत का गुस्सा, है चपला भी […]

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परिवर्तन

कण-कण में है व्याप्त तू, फिर भी निर्विकार कैसे?प्रवासी तू मानव मन का, फिर भी मन में छह विकार कैसे? सत्यं शिवं सुंदरम तू, करता दुर्गुणों का बहिष्कार कैसे?ओ सृष्टि के स्रष्टा बता, हुआ तेरा आविष्कार कैसे? मानव संसार का प्राणी है, प्रभु तू भी तो संसारी है।फिर भी तू अलौकिक शक्ति है, विस्मित बुद्घि […]

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स्रष्टा मैं पूछूं तू बता?

अनंत, व्योम, आकाश गंगा, इनका है आधार क्या?अपने पथ में सब ग्रह घूमते, टकराते नही चमत्कार क्या? यदि भू से भिन्न सभ्यता है, उनका है व्यवहार क्या?सूक्ष्म में स्थूल समाया, जिज्ञासा है आकार क्या? कार्य और कारण से पहले, था ऐसा संसार क्या?मोक्ष अवस्था में था जीव, तब करता था व्यापार क्या? तू ईश एक […]

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