रहने दे खूनी पंजों को, इस भू तक सीमित रहने दे।अन्यत्र यदि कहीं जीवन है, उसको तो सुख से रहने दे। दाग लगा तेरे दामन में, हिंसा और विनाश का।श्रेय नही, अब हेय हो रहा, तू साधन था विकास का। परमाणु युद्घ ही नही, आज स्टार वार की चर्चा है।तेरे इन खूनी पंजों पर, हो […]
श्रेणी: कविता
राज है आतंक का, और शांति है लोप क्यों? तेरे ही विकास पर है, तेरा क्रूर कोप क्यों? रूह कांपती मानवता की, उसको है संताप क्यों?सुना था वरदान तू है, बन गया अभिशाप क्यों? अणु और परमाणु बम के, बढ़ रहे हैं ढेर क्यों?घातक अस्त्रों का विक्रय कर, मानव बना कुबेर क्यों? क्या ये व्यवस्था […]
वाद और व्यवस्था बदली, भूखे, नंगे लोग क्यों?मानसिक और शारीरिक, पहले से ज्यादा रोग क्यों? शोषण भ्रष्टाचार आज, विश्व में समाया क्यों?तेरे होते हुए बता, मत्स्यराज आया क्यों? भौतिक सुख समृद्घि पाकर, मानव है अशांत क्यों?भय तनाव संशय आदि से, विश्व है दिग्भ्रांत क्यों? मानव ही मानव से, आज इतना क्रुद्घ क्यों?तेरे होते हुए बता, […]
राह बदल दी नदियों की, कर बांधों का निर्माण।चट्टानों में सुरंग बना दी, जो खड़ी थी सीना तान। की हरियाली उन क्षेत्रों में, जो कभी थे रेगिस्तान।नये बीज और यंत्रों द्वारा, आयी हरित क्रांति महान। आकाश से बातें करने वाले, ऊंचे महल बनाये।सागर सीना चीरने वाले, दु्रतगामी जलयान बनाए। जो नभ की ढूढ़ें गहराई, ऐसे […]
आणविक अस्त्रों का संग्रह कर, अंतरिक्ष भंडार बनाया।राकेटों में मौत बंदकर, सिर के ऊपर लटकाया। किंतु कराहती मानवता ने, धीरे से यह फरमाया।वरदान कहा करते थे तुझे, किसने अभिशाप बनाया? प्रकृति के गूढ़ रहस्यों का, तो तुमने पता लगाया।किंतु मानव-हृदय गह्वर को, तू भी माप नही पाया। जिसने तेरे उज्ज्वल मस्तक पर, ये काला दाग […]
अरे ओ आधुनिक विज्ञान, सुना है तुम हो बहुत महान।मेरी भी कुछ शंकाओं का, है क्या तेरे पास निदान?।।अरे ओ आधुनिक विज्ञान। ईश्वर की शक्ति सविता ने, किया था सृष्टि का संचार।आदि काल से ही करता आया, नित नूतन आविष्कार।। पढ़े सुने और देखे तेरे, कितने ही चमत्कार।सोचा तेरे द्वारा होगा, हर प्राणी का उपकार।। […]
शांति, अहिंसा, प्रेम, त्याग से, करें सहयोग में वृद्घि।समझें परिवार इस वसुधा को, मित्रभाव से करें समृद्घि। रूलाकर किसी भी प्राणी को, प्रभु हंसना अपना स्वभाव न हो।मानव मानव के मानस में, किंचित भी कोई दुर्भाव न हो। विज्ञान हमें ऐसा देना, जिसमें हृदय का अभाव न हो।नही चाहिए ऐसा स्वर्ग, जहां आपस में सदभाव […]
वर्चस्व जमाना चाहते हैं, और तुझे भी मिटाना चाहते हैं।सुना था प्रभु प्रलय करने का, तेरा विशिष्ट अधिकार।लगता तुझसे भूल हुई, तू खो बैठा अधिकार। लगती होंगी अटपटी सी तुमको, मेरी ये सारी बातें।एटम की टेढ़ी नजर हुई, बीतेंगी प्रलय की रातें। निर्जनता का वास होगा, कौन किसको जानेगा?होगा न जीवित जन कोई, तब तुझको […]
क्या झील का खामोश दर्पण, खोया है उनकी याद में?क्या ध्यानमग्न हो हिमगिरि भी, उलझे हैं इस विवाद में? विरह की सी धुन लगती है, झरनों के निनाद में।कोई तो बोलो, आज अरे, मेरे वाद के प्रतिवाद में। जीवन का ये जटिल प्रश्न, कैसे बने सरल?जीवन बीत रहा पल-पल………….. विचित्र विधाता की सृष्टि को, निरख […]
स्वरूप बिगड़ता देख कर अपना, क्या तू भी कभी बोलती है?उत्खनन हो रहा खनिजों का, सोना, चांदी, हीरे, मोती।चलते हो बम दमादम जब, क्या तू भी सिर धुनकर रोती? रोती होगी तू अवश्यमेव, यह होता आभास।आंसू छलके जब जब तेरे, यह बता रहा इतिहास। मत दे जीवन धरनी उनको, है दिल की यह अरदास।मानव रक्त […]