सूर्य जगाय रहे जग को उठ रैन गई अब सोवत क्यों? जाग गये सब फूल कली तुम सोकर स्वप्न पिरोवत क्यों? शक्ति अपार भुजा में भरी प्रण आप करो अपने हिय से। काज धरा पर हैं जितने सब आन बने निज निश्चय से।। प्रात हुआ यहि कारण की निशि के सपने सब पूर्ण करो। […]
Category: कविता
सोच सको तो सोचो
गिलगित बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ। वरना जबरन ले लेंगे मत रोओ मत चिल्लाओ।। खून सने कातिल कुत्तों से जनता नहीं डरेगी। दे दो वरना तेरी छाती पर ये पाँव धरेगी।। तेरी मेरी जनता कहने की ना कर नादानी। याद करो आका जिन्ना की बातें पुन: पुरानी।। देश बाँटकर जाते जाते उसने यही कहा था- […]
सत्यार्थ प्रकाश नवम समुल्लास, 21 वीं कड़ी
महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ को बनाने में कितनी मेहनत की होगी सोचो, उन्होंने प्रश्नोत्तर के माध्यम से सत्य ज्ञान को हम तक पहुंचाने में एक बार अपनी सामान्य बुद्धि की होगी प्रश्न पूछने, तो दूसरी बार सैद्धांतिक बुद्धि से उत्तर दे समझाने का भरपूर प्रयास, अनेकानेक आर्ष ग्रन्थों के प्रमाण व तर्कों […]
मेरा वतन है भारत
मेरा वतन है भारत आबोहवा में जिसके जीवन हमारा गुजरा । बाजुओं को जिसकी हमने बनाया झूला ।। गोदी में लोट जिसकी हमने पिया है अमृत । वह देश हमको प्यारा बतलाया नाम भारत ।। मेरा वतन है भारत मेरा वतन है भारत — – – बलिदान देना जिसको हमने है समझा गौरव । जिसके […]
कोरोना बनाम मधुशाला
कोरोना बनाम मधुशाला जिनके घर में खाने के भी लाले पड़े हुए हैं। भूखे बच्चे बीवी बाबा साले पड़े हुए हैं। साकी की यादों पर पहरा झेले थे जो कल तक- मधुशाला में आज वही मतवाले पड़े हुए है।। जिनके घर के चुल्हे भी बेबस आँसू रोते हैं। औरों की रहतम पर खाते या भूखे […]
कविता : श्रम
कब तक पूर्वज के श्रम सीकर पर यूँ मौज मनाओगे। आज बीज श्रम का रोपोगे तब कल फल को पाओगे। पूर्वज की थाती पर माना पार लगा लोगे खुद को- लेकिन अगली पीढ़ी को बद से बदतर कर जाओगे।। इसीलिए उठ नींद त्यागकर सूरज का दीदार करो। श्रम सीकर की कीमत समझो और कर्म स्वीकार […]
कविता : समर्थ भारत ही करेगा — – – – –
भारतवर्ष कभी संपूर्ण भूमंडल पर राज्य करता था। जब मैं संसार के मानचित्र को देखता हूं और भारत के स्वर्णिम अतीत को देखता हूं तो अक्सर यह भाव मेरे हृदय में आते हैं कि संपूर्ण भूमंडल के यह सारे के सारे देश , इन देशों का इतिहास , इन देशों की संस्कृति – ये […]
कोरोना ( कविता)
कोरोना डॉ अवधेश कुमार अवध • प्राज्ञ काव्य
……………………………………………….. राकेश छोकर / नई दिल्ली ………………………………………………. यह चरितार्थ है कि जब जब भी धरती पर आपदाओं का साया आया है, तब तब साहित्यकार एवं रचनाकारों ने अपने कलम की जिजीविषा से जीवन में जोश, उमंग और आशाएं पैदा की है । आज भयावह कोरोना वायरस से उपजी मानव प्रतिकूल परिस्थितियों में सृष्टाओ ने अपने […]
कोरोना ( गजल )
हादशों का शहर है, न जाओ सजन, अब तो घर में समय को बिताओ सजन। वायरस मौत बनकर रही घूमती, हाथ उससे नहीं तुम मिलाओ सजन। थूकते कुछ अमानुष, इधर से उधर, उनसे खुद भी बचो फिर बचाओ सजन। हाथ डंडा लिये, घूमती है पुलिस, इस उमर में न इज्जत […]