हम सनातन, हम सनातन, युगों-युगों से इस धरा पर, बस बचे हैं हम यहाँ पर, हम अधुनातन हम पुरातन। सृष्टि का आगाज हम हैं, कल भी थे और आज हम हैं, सहस्त्रों वर्षों की कहानी, दुनिया भर में है निशानी। विश्व भर से ये कहेंगे, हम रहे हैं, हम रहेंगे अपनी जिद […]
श्रेणी: कविता
राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं। राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं, आए हैं, राम आए हैं। तम घोर था निराशा का दीप बुझा था आशा का अब देखो चहुँ ओर सब […]
आशीर्वाद दीजिए 🙏😊🙏 हूँ घिरा कब से हुआ, अज्ञान के अँधियार में कोई तो दिखलाए राह, बस हूँ इसी विचार में सारी उम्र वन में उस, मृग की भांति ही फिरा ढूँढता बाहर मगर जो, खुद की महक से था घिरा तूने सब, पाने की हमेशा, बाहर से ही आस की मन में कभी सोचा […]
मन के काले से भला, तन का काला नेक। मन के काले में भरे, छल कपट अनेक॥ है छल-कपट अनेक, कभी ना धोखा खाना। इनका आदर मान, सांप को दूध पिलाना॥ चुपके-चुपके करते रहते, काम निराले। मौका पा डंस जायें, नाग ये मन के काले॥ (1) मन के काले बाहर से देते उपदेश। रग-रग में […]
सूखी रोटी भात लिए हम कहां साथ में खा पायेंगे, पंच सितारों वाले हो जी; अब मुझको इग्नोर करो तुम, मैं झोपड़ियों की पीड़ा हूं कृंदन हों भूखे पेटों का, मुझे कहां सम्मान मिलेगा, साथ नहीं धनपति सेठों का, स्तुतियों के छंद लिखो तुम; खुद को आत्मविभोर करो तुम, पंच सितारों वाले हो जी; अब […]
मुझे पता है तुम्हें शहर की भागदौड़ से मेल नहीं, इसीलिए ऋतुराज हमेशा तुम गांवों में आते हो, गीत फागुनी कौन सुनाए, यहां समय की लाचारी है, नौकरियों में बंधक हैं सब, हँसना गाना तक भारी है, यहां आम की बौर कहां तुम जिन छावोँ में आते हो, इसीलिए ऋतुराज हमेशा तुम गांवों में आते […]
खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे…!! “और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी” नन्हें के आने की “खबर” “माँ” की तबियत का दर्द और पैसे भेजने का “अनुनय” “फसलों” के खराब होने की वजह…!! कितना […]
आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी राम पधार चुके पुर में मन, फूल खिले उर हर्षित जाना। साध सधी प्रण पूर्ण हुआ जब, मंदिर राम बना पहचाना। दीप जले हर ओर सखी जग, में बढ़ता अब भारत माना। रामलला अति सुन्दर शोभित, जन करते उनका जयगाना।। रूप अनूप सजा अनुरूप अलौकिक दिव्य न जाय बखाना। रामललासरकार […]
रिश्तों से यदि प्यार है, सीं लो अपने होंठ। कानों से बहरे बनो , झेलो भीतर चोट ।। 11।। रिश्ते रिसते घाव हैं, करो नित्य उपचार। थोड़े से प्रमाद से , उजड़ जाय संसार।। 12।। मौन धार चलते रहो , देख दिनों का फेर। पछवा चले – कचरी फले, आनन्दित करे बेल ।।13।। मत खोजो […]
दोहे अपने अपने ना रहे, क्यों करता है मलाल ? तंज कसें दिल तोड़ते, हर घर का यही हाल ।।1।। तीर खाकर देखना, तू पीछे की ओर। अपने ही आते नजर , तेरे चारों ओर।। 2।। करो लक्ष्य की साधना, मत देखो संसार। जिसने साधा लक्ष्य को, हो गया भव से पार ।।3।। दिल में […]