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कविता

लोकतंत्र का चौथा खंभा

चौथा खम्भा लोकतन्त्र का चौथा खम्भा, कैसे हो? बिकते हो तुम शेष तीन के जैसे ही। उन तीनों ने अपने मोल लगाये हैं, लगा रहे तुम मोल उन्हीं के जैसे ही।। गिरते जाते हो प्रतिपल बाजारों में, जनता की आवाज, न सुनते- लिखते हो। राजभवन के आसपास जड़वत बैठे, गाँधी जी के बंदर जैसे रहते […]

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मैं हिंदी पुत्री हिंद की हूँ

हिन्दी   मैं हिन्दी पुत्री हिन्द की हूंँ । चूनर कश्मीरी सिन्ध की हूंँ ।। संस्कृत पालि प्राकृत अपभ्रंश । हैं पितृ मेरे जिनकी मैं अंश ।। आंँचलिक बोली मेरी बहने । आत्मीयता के उनके क्या कहने ।। बहनों संग इतराती हूंँ । हृदय के भाव बताती हूँ ।। कुछ छलिए देखो आते हैं । […]

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कविता

…..हो जाते सब मौन

.   … हो जाते सब मौन   मरण जीवन का अंत है क्यों करता है शोक। संयोग सदा रहता नहीं, वियोग बनावै योग ।। 1।। जो फल पकता डार पर पतन से है भयभीत । मानव डरता मौत से भूल प्रभु की प्रीत ।। 2 ।। मजबूत खम्भे गाड़कर महल किया तैयार। धराधूसरित हो […]

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नशा

  क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा। लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।। वंश परिवार की सारी इज्ज़त गई। बीवी विधवा की जैसी बेइज्ज़त भई। पूर्वजों को मिलीं गालियाँ- फब्तियाँ- माटी में मान अब ना मिलाओ ज़रा।। क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा। लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।। बाप- माई की मुश्किल दवाई हुई। बाल-बच्चों की […]

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आज का चिंतन कविता

अंधेरा सदा नहीं रह पाता ….

      अंधेरा सदा नहीं रह पाता…. रखना ईश्वर पर विश्वास, अंधेरा सदा नहीं रह पाता जीवन है आशा की डोर , आनंद है इसका छोर, हो जा उसी में भावविभोर, मनवा कभी नहीं कह पाता ….. जगत में बांटो खुशियां खूब, तुमसे पाए न कोई ऊब, जीवन का हो ये दस्तूर, हर कोई […]

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क्रंदन दूर होगा एक दिन …..

क्रंदन दूर होगा एक दिन …… निशा निराशा की आये उत्साह बनाए रखना तुम।          लोग नकारा कहें भले उत्कर्ष पे नजरें रखना तुम।। भवसिंधु से तरने हेतु निज पूर्वजों से अनुभव लो।        उल्टे प्रकृति के चलो नहीं मन में ये ही नियम धरो।। कुछ भी दुष्कर है नहीं […]

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कविता : मन घबराया

मन घबराया आज मन बड़ा उदास हुआ अर्धांगिनी ने आकर कहा मेरे भाई की तबीयत बहुत खराब हुआ सो ले चलो उनके पास मन सोच के घबराया उसे तो कोरोना हुआ उसका रो – रो के हाल बुरा सब ने काफी समझाया उसे बात समझ में आया शाम होते तक उसके भाई की खबर काफी […]

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ये आखरी मौका …

#* *ये आखरी मौका**# बंद है आंखें निरंतर अश्रु की धारा बहती चली जा रही हो —- खोल आंखें देख अपने ही हाथों से इस धरा को कितनी क्षति कर रहे हो —– विकास के नाम______? पहाड़ों को ———; नदियों को——-; जंगलों को ———; नुकसान पर नुकसान करते चले जा रहे हो —— रोक लो […]

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भारतवर्ष के  वीर प्रतापी ‘योद्धा’

रामगोपाल मन की हल्दीघाटी में, राणा के भाले डोले हैं, यूँ लगता है चीख चीख कर, वीर शिवाजी बोले हैं, पुरखों का बलिदान, घास की, रोटी भी शर्मिंदा है, कटी जंग में सांगा की, बोटी बोटी शर्मिंदा है, खुद अपनी पहचान मिटा दी, कायर भूखे पेटों ने, टोपी जालीदार पहन ली, हिंदुओं के बेटों ने, […]

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भाव से अति सूक्ष्म है ब्रह्मांड का ईशान

बिखरे मोती भाव से अति सूक्ष्म है , ब्रह्माण्ड का ईशान। चित्त का चिन्तन जानता, परम पिता भगवान॥1465॥ व्याख्या:- पाठकों की जानकारी के लिए यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि आत्मा चित्त में रहती है जबकि परमात्मा आत्मा में निवास करता है।हमारे चित्त में अति सूक्ष्म सद्भाव और दुर्भावना ते हैं किंतु परमपिता परमात्मा […]

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