कविता — 11 ‘राष्ट्रनीति’ का उद्देश्य यही है …… स्वाधीन हुए भारत को अब सात दशक हैं बीत गए। भय, भूख ,भ्रष्टाचार मिटे ना कितने ही नेता चले गए।। राजनीति अपना धर्म देश में निश्चित करने से चूक गई। संप्रदायवाद और उग्रवाद ने अस्मत जनता की लूट लई।। बढ़े कटुता- कलह देश में और क्लेश […]
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गढ़ चित्तौड़ सिखाता है …….
कविता – 10 गढ़ चित्तौड़ सिखाता है ……. गढ़ चित्तौड़ सिखाता है पौरुष की भाषा हम सबको। भारत के वैभव और शौर्य की भी गाथा हम सबको।। यह बतलाता है कैसे मैंने तूफानों को झेला है ? कैसे नीच पिशाचरों को अपने से दूर धकेला है ? उत्थान पतन के कैसे अवसर आए मेरे जीवन […]
रूप अनेकों धरती प्रकृति …..
कविता — 9 प्रकृति बन रूपसी आई लेकर अपना सुंदर संदेश। सूर्य की लाली ने उसका ग्रहण किया सारा उपदेश।। प्रकृति की सुंदर साड़ी पर जब फैली सूरज की लाली। कल-कल करती नदिया बोली मुझको दे दो मस्ती मतवाली।। पुष्पों के ऊपर उड़ते भृमर लगे सुनाने अपना राग। कोयल कू – कू करके कहती अब […]
वह पत्नी पत्नी नहीं होती
कविता — 8 उस पथ को पथ कभी मत कहना जिस पथ में शूल नहीं चुभते । वह नाविक कुशल नहीं हो सकता जो मझधार में नाव को छोड़ भगे।। वह देश कभी नहीं बच सकता जो शस्त्रों का पूजन बंद करें। वह समाज कभी नहीं बढ़ सकता जो पापपूर्ण पाखण्ड करे ।। जब अपनी […]
संस्कार सोलह दिए विश्व को …
कविता – 7 संस्कार सोलह दिए विश्व को … संस्कार सोलह दिए विश्व को वह पुण्य भारत देश है। उत्कृष्ट भाषा संस्कृति और उत्कृष्ट जिसका वेश है ।। गर्भाधान क्रिया है वह जिसमें बीज का आधान हो। माता-पिता हों स्वस्थ , विद्यावान और बलवान हों।। 1।। गर्भस्थिति के ज्ञान पर संस्कार होता पुंसवन। पुरुषत्व के […]
हमारे पूर्वज बड़े महान थे
कविता — 6 हमारे पूर्वज बड़े महान थे हृदय देश में जिसकी देवगण उतारते हैं आरती। गीत जिसके शूरपुत्रों के गाती रही है मां भारती।। देवत्वाभिलाषी जहां सेवन करें सदा इष्ट कर्म का। काममय यह जीव भी सेवन करे निज धर्म का।। 1 ।। यथाकारी तथाकारी तथा भवति – यह सिद्धांत है। जिसने लिया है […]
यह देश ही ऐसा है पगले
कविता – 5 बनकर जो भी ज्योतिपुंज सदा जीवन में मेरे साथ चले। आभारी हृदय से उसका जिसने भी सिर पर हाथ धरे।। जन्म जन्म के संस्कारों का होता जब तक मेल नहीं । दुनिया के इस रंगमंच पर जीवन मामूली खेल नहीं।। न जाने कहां-कहां के पंछी आकर हर पल साथ रहे, आभारी हृदय […]
बताओ ! तब कौन हरेगा तम को ?
जब हृदय में उठती लहरों को एक नाम मिला पहचान मिली जब सागर में उठती लहरों को मधुर मधुर सी सुरताल मिली जब भौरों के भृमर गीतों से विश्व भर को मीठी तान मिली तब शान्ति की बहती धारा से भारत को ख्याति महान मिली। जब अज्ञान की चादर ओढ़े हुए सारा संसार कहीं पर […]
वह देश कभी ना जीवित रहता ……
कविता – 2 मैं नियति से अनुबंध कर नित्य एक गीत गाता हूं, बींध ह्रदय के तारों से कभी लिखता और मिटाता हूं। दाता ने ये जीवन देकर संसार समर में भेज दिया, उस दाता के उपकारों को मैं मीठे स्वर से गाता हूं।। मेरी बगिया में आकर एक कोयल मुझसे कहती है, मधुमय वाणी […]
मत हार को उच्चारो कभी …
कविता – 1 बढ़ते चलो – बढ़ते चलो, नित सीढ़ियां चढ़ते चलो, गीता को हृदयंगम करो मत दीनता धारो कभी। मत हार को उच्चारो कभी …. जीवन मिला है जीतने को, नैराश्य भाव मेटने को, मत फटकने दो उदासियों को और ना हारो कभी।। मत हार को उच्चारो कभी …. संपूर्ण पृथ्वी लोक में, कोई […]