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कविता

एक अकेला पार्थ खडा है…*

2024 की सबसे शानदार कविता एक अकेला पार्थ खडा है… भारत वर्ष बचाने को । सभी विपक्षी साथ खड़े हैं केवल उसे हराने को।। भ्रष्ट दुशासन सूर्पनखा ने माया जाल बिछाया है। भ्रष्टाचारी जितने कुनबे सबने हाथ मिलाया है।। समर भयंकर होने वाला आज दिखाईं देता है। राष्ट्र धर्म का क्रंदन चारों ओर सुनाई देता […]

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कविता

क्या हो गया इस संविधान को?

—विनय कुमार विनायक क्या हो गया इस संविधान को? जो हर कोई संविधान बचाने की बातें कर रहा छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास से हर वर्ष संविधान में अनेक बदलाव किया जा रहा फिर भी संविधान बचा रहा मरा नहीं हरा-भरा रहा आज संविधान में बदलाव नहीं हो रहा बल्कि हर कार्य संविधान के अनुसार […]

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कविता

*’ कभी सोचा है ‘*

(साहित्य वही उत्तम होता है जो समाज और राष्ट्र का मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता हो। नये ओज और नए तेज से भरने की क्षमता रखता हो। माना कि श्रृंगार रस भी जीवन के लिए आवश्यक है, परंतु युवा पीढ़ी को केवल उसी के मृगजाल में लपेटकर मारने के लिए तैयार किया गया साहित्य साहित्य […]

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कविता

*रखना इतना ध्यान अब देश न जाए हार*

रखना इतना ध्यान अब देश न जाए हार जाति-पांति मत पंथ धन देना सभी बिसार। रखना इतना ध्यान सब देश न जाए हार। उठा तर्जनी ध्यान से मान सुदर्शन चक्र। बढ़े मान-सम्मान सुख भाग्य न होगा वक्र। बटन दबा सम्मान से रखकर साथ विवेक। राष्ट्रदेव आराध ले तज कर स्वार्थ अनेक। शक्ति बड़ी है वोट […]

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कविता

*अबकी बार अगर चूके तो…*

लोकतंत्र के पावन ध्वज को, अम्बर पर फहराना है। अबकी बार अगर चूके तो जीवन भर पछताना है ।। षड़यन्त्रों की काली आंधी, सर्वनाश पर अड़ी खड़ी । और सनातन संस्कृति अपनी, नागों से है घिरी पड़ी ।। एक कालिया हो तो नाथें, जिधर देखिये फन ही फन । इतना उगला जहर कि नीला, जिससे […]

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इतिहास के पन्नों से कविता

होली खेल गये हुलियारे लेखक = स्वामी भीष्म जी महाराज

होली खेल गए हुलियारे। ऐसी होली खेली जगत में बजा वेद का ढोल गए।। सोतों को दिया जगा एक दम खोल पोप की पोल गए। भारत नैया डूब रही थी इसको गए लगा किनारे-॥1॥ लाहौर में कई देहली में ऐसी खेल गए होली। किसी ने खाया छुरा पेट में किसी ने सीने में गोली।। लाखों […]

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कविता

आतंकवादी

आतंकवादी राहू और केतु ने ग्रस लिया सौरमंडल के नियन्ता को सूर्य और चन्द्र को जिनसे होते दिन और रात जिनसे निकलती तारों की बारात जिनके बूते उगता जीवन का अंकुर पशु पक्षी मानव कीट पतंग वनस्पति जीवाणु गरमी जाड़ा व बरसातl निवेदन किये, जोड़ा हाथ पड़े पांव, रोये – गिड़गिडा़ये उनको उनके भी पतन […]

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कविता

महाठगबंधन

    कभी गरियाते हैं,  तो कभी गले लगाते हैं निज लाभ लोभ में  एक-दूजे को सहलाते हैं एक पूरब एक पश्चिम,  एक उत्तर एक दक्षिण  देखो सब मिलकर अब क्या-क्या गुल खिलाते हैं।  जनता को सदा छलते रहे  हक उनका ये निगलते रहे  विचारधारा मिले या न मिले   ये तेल में पानी मिलाते हैं।    करके […]

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कविता

‘मैं’ ने मैं से कह दिया, ….

  “पीतये” से हो सके , तेरा निज कल्याण। मन काया और आत्मा का होता उत्थान।। 1।। धनुष बना ले ओ३म को आत्मा को तीर । ब्रह्म लक्ष्य है तेरा,  बात बड़ी गंभीर।।2।। दो घड़ी दे ईश को, मिलता है आनंद। गुण अपने हमें सौंपता जो है परमानंद।।3।। जो ध्याये परमेश को जीवन उसका धन्य। […]

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कविता

हम मालिक अपनी मर्जी के

    न मैडम के, न सर जी के  हम मालिक अपनी मर्जी के।    ज्यादा की कोई चाह नहीं इसलिए कोई परवाह नहीं जो बोया वो ही पाया है  जो है वो खुद कमाया है  सत्ता के किसी  दरबार में  नहीं प्रार्थी हम किसी अर्जी के         हम मालिक अपनी मर्जी के… […]

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