कविता — 4 जो मौन रहकर कर्म साधना में रखता विश्वास, पसीने से लथपथ काया में जीवन की है गहरी आस। कर्मशील जीवन है जिसका निश्छलता से भरे विचार, अन्नदाता वह हम सबका सदजीवन का देता आभास।। तपती है वसुधा गर्मी से , आग बरसाता है आकाश , लू के थपेड़े खाकर भी , खेत […]
Category: कविता
बलिदान जिसने हैं दिए ….
जिन आर्यों के धर्म पर हम भारतीयों को नाज है , जिनकी मर्यादा विश्व में कल बेजोड़ थी और आज है । उनको विदेशी मानना इस राष्ट्र का भी अपमान है , जो लोग ऐसा कह रहे समझो वह कोढ़ में खाज हैं।।’ संस्कृति रक्षार्थ बलिदान जिसने हैं दिए , भारत भूमि के लिए […]
हर सैनिक भारत का बलिदानी
जब तक भी तन में प्राण रहे देश का मन में अभिमान रहे हर सैनिक भारत का बलिदानी वह खून से लिखता नई कहानी निष्काम भाव से सेवा करता राष्ट्र जागरण जीवन भर करता कभी मोल नहीं लेता गर्दन का सब कुछ देश को अर्पित करता भारत मां के लिए समर्पित साध्य बनाता केवल परहित […]
ना मोल लिया निज गर्दन का
कविता – 40 कितने बलिदानी मौन रहकर महाप्रयाण कर यहां से पार गए। ना मोल लिया बलिदानों का महाप्राण राष्ट्र पर वार गए ।। वह सब मौन आहुति व्रती थे और ‘ राष्ट्र प्रथम’ के उद्घोषक थे। ना लिखी कभी कोई आत्मकथा वे सच्चे राष्ट्रवाद के पोषक थे।। बंधनों में जकड़ी भारत मां को यहां […]
असत्य से मुझको दूर कर …..
कविता – 39 मानव उसको मानिए , करे परहित के काम। स्वार्थ की नहीं सोचता रखे सभी का ध्यान ।। सत्य असत्य के बीच में विवेक करत है न्याय। जो जन स्वार्थ में फंसा सदा करे अन्याय ।। मानुष गिरता है वही, जिसके गिरे विचार। मानव का उत्थान हो यदि ऊंचे रहें विचार।। आत्मा के […]
हल्दीघाटी की मिट्टी से ….
कविता – 38 हल्दीघाटी की मिट्टी से मैंने जाकर ये पूछा, किस पर तू इतराती है और किसका तुझको नाज चढा ? मिट्टी बोली – “मुझे है गौरव ! मैंने राणा को देखा”, सारे संगी साथी देखे, सबका शौर्य और साहस देखा।। आगे बात बढ़ाती बोली – “मेरा इतिहास अनूठा है,” चौकड़ी भरते चेतक को […]
मेरे तन में जब तक प्राण हैं…..
कविता — 37 वंदना कर भारती की सबसे बड़ा यह धर्म है, जग में न कोई इससे बड़ा और पवित्र कर्म है।। मानवता और धर्म को जो साथ-साथ तोलती, सुन वेदना मां की तनिक और जान ले क्या मर्म है? यज्ञीय भाव से जियो यज्ञ सृष्टि का सुंदर कर्म है, इसी भाव को लेकर खड़े […]
नव वर्ष मंगलमय तुमको कहता ….
कविता — 36 सत्य सनातन सर्वहितकारी आएगा जब चैत्र माह। नूतनता सर्वत्र दिखेगी हर्ष का होगा प्रवाह।। तब आप करेंगे अभिनंदन और मैं बोलूंगा नमन नमन। पसरेगी नूतनता कण-कण में मुस्काएंगे नयन नयन।। प्रतीक्षा करो उसकी बंधु ! अभी शरद यहां पर डोल रहा। अभी नूतनता का बोध नहीं अभी यहाँ पुरातन बोल रहा।। अभी […]
अमृतपुत्र हो तुम सोच लो ….
कविता — 35 औदास्यमय उत्ताप की छाया से बचते वीरवर, नहीं देखते शूल कितने बिखरे पड़े हैं मार्ग पर। गाड़ते हैं निज दृष्टि को वे तो सदा ही लक्ष्य पर, वे चैन लेते हैं तभी जब पहुंच जाते गंतव्य पर।। आत्मावलम्बी बोध से जो ऊर्जा लेते सदा, निष्काम कर्म योग से जीवन महकता सर्वदा। जो […]
‘क्रांति देश’ है भारत ….
कविता – 34 मशाल क्रांति की हाथों में ले सत्तावन आया था, जिसने शत्रु को दहलाया हमको महान बनाया था, स्वाधीनता का सपना सारे भारत को भाया था। सन सत्तावन अंग्रेजों को दूर भगाने आया था, झकझोर दिया सारे भारत को फिर से यही बताया था, क्रांति से आजादी जन्मे – गीत सभी ने गाया […]