शरीर की अनित्यता माधव बोले- पार्थ ! बिना लड़े शत्रु को क्यों गर्वित करता है ? तू धर्म धुरीण धनुर्धर होकर क्यों धर्म – ध्वजा झुकने देता है ? मां का पावन पयपान किया है -उसे ना अपयश का पात्र बना, हे अर्जुन ! कायर बनकर शत्रु को तू क्यों उत्साहित करता है ? जितने […]
Category: कविता
गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या – 6
तत्वदर्शी की पदार्थदृष्टि श्री कृष्ण बोले – अर्जुन ! पदार्थदृष्टि का उपदेश तुझे मैं देता हूं, ‘असत् से भाव नहीं हो सकता’ – ऐसा संदेश तुझे मैं देता हूं। ‘कर्त्ता व सत् का अभाव नहीं हो सकता’- मेरी बात यह भी सुन, समझें तत्वदर्शी इनके अंतर को – यह बात तुझे बता मैं देता हूं […]
देहावस्था और ज्ञानीजन बचपन, जवानी और बुढ़ापा यह इस देह में देखे जाते हैं, ये होकर नहीं रहने वाले , एक दिन साथ देह ले जाते हैं। ‘देहवाला’ भी छोड़ निकल भागे ना हाथ किसी के आता, धीरपुरुष सचमुच में अर्जुन ! स्वयं को भव से दूर हटाते हैं।। अर्जुन ! बचपन और लड़कपन दोनों […]
अर्जुन की तुलना
गीत — 4 मरों का चिंतन मतकर बन्धु ! वेद विरुद्ध चिंतन को त्याग, मृत्यु की बातें सोच – सोचकर जीवन से तू रहा भाग । तू जीवन – ज्योति जगा हृदय में अंधकार को दूर हटा, आनंद इसी में जीवन का – ले जगा ह्रदय में पवित्र भाव।। मृत्यु – मृत्यु को रटना अर्जुन […]
श्री कृष्ण जी की पहली चोट
गीता मेरे गीतों में ….गीत संख्या — 3 श्री कृष्ण जी की पहली चोट अर्जुन की बचकानी बातें सुनकर माधव मंद – मंद मुस्काए, किया घोर आश्चर्य व्यक्त तब वे अर्जुन के और निकट आए। एक वीर क्षत्रिय के वचनों को सुन, कृष्ण बड़े ही दु:खी हुए, तब युद्ध से विमुख हुए अर्जुन को कुछ […]
अर्जुन हुआ भावुक
2 अर्जुन हुआ भावुक भावुक अर्जुन बोला, – केशव ! मेरे मन की व्यथा सुनो, मैं बाण नहीं मारूं अपनों को चाहे मुझको जो दण्ड चुनो। अपने – अपने ही सदा होते – उनसे उचित नहीं वैर कभी, जो अपनों से वैर निभाता है उसको पापी जन ही जानो ।। अपनों के लिए हथियार उठाना […]
मोहग्रस्त अर्जुन
गीता मेरे गीतों में ( 1 ) मोहग्रस्त अर्जुन कुरुक्षेत्र के धर्मक्षेत्र में थी सेनाएं सजकर खड़ी हुईं, अपने पक्ष को प्रबल बता विजय हेतु थी अड़ी हुईं । महासागर सेना का उमड़ा- थी सर्वत्र चमकती तलवारें, हर योद्धा उनको भांज रहा ,थी अपने आपसे भिड़ी हुई ।। अर्जुन ने अब से पहले भी न […]
शिथिल करो बंधन तर्ज : – बचपन की मोहब्बत को …. माया में रमा मानव ना भगवान से मिल पाता। सत , रज, तम तीनों के महा-भ्रम में पड़ जाता।। टेक।। सत , रज , तम – तीनों से माया ने रचा जीवन। इन से ही जगत बना भोगों का पड़ा बंधन ।। जो इन […]
ओ३म् ========== ऋग्वेद और अन्य तीन यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद संसार का आदि ज्ञान एवं विश्व की प्राचीनतम पुस्तकें हैं। चारों वेद ईश्वर से प्रादुर्भूत हुए हैं। वेदों की भाषा संस्कृत है जिसके शब्द रूढ़ न होकर नित्य एवं यौगिक हैं। वेद के पदों का अर्थ अष्टाध्यायी महाभाष्य तथा निरुक्त पद्धति से किया जाता है। […]
तर्ज :- तुम अगर साथ देने का वादा करो .. अज्ञान – अविद्या में भटके हुए जो गफलत में जीवन बिताते रहे। जानकर भी ना भज सके ईश को निंदा चुगली की बातें बनाते रहे।। टेक।। वेद आदि ग्रंथों की मानी नहीं मनमानी ही बातें बनाते रहे। राक्षस की वृत्ति को धारण किया दिव्य – […]