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कविता

किवाड़” !* *हमारी प्राचीन संस्कृति व संस्कार की पहचान*

*क्या आपको पता है ?* *कि “किवाड़” की जो जोड़ी होती है !* *उसका एक पल्ला “पुरुष” और,* *दूसरा पल्ला “स्त्री” होती है।* *ये घर की चौखट से जुड़े-जड़े रहते हैं।* *हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं।।* *खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।* *भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं।।* *एक […]

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गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) गीत – 21

धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि संसार धर्म से चल रहा धर्म ही सबका मूल। धर्म युक्त जीवन यदि चुभे न कोई शूल।। जब धर्म की हो कमी अधर्म बहुत बढ़ जाय । त्राहिमाम जन कर उठें , पाप – ताप बढ़ जाय।। जीव – जीव अशांत हो और जीवन हो बेचैन। दिन काटना […]

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गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या ….20 पूर्व जन्मों का ज्ञान

पूर्व जन्मों का ज्ञान ज्ञान योग की संपदा, की अर्जुन की भेंट। कर्म योग भी साथ में माधव ने किया भेंट।। ‘कर्म – संन्यास के योग पर की चर्चा विस्तार । अब पुरातन – योग का करता मैं उच्चार ।। “मैं” रहा हर काल में, और रहूं हर काल। वर्तमान हर काल में, बात ना […]

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गीता मेरे गीतों में… गीत संख्या- 19 , स्वधर्म की श्रेष्ठता

गीता मेरे गीतों में गीत संख्या ,….19 स्वधर्म की श्रेष्ठता हर श्रेष्ठतम कर्म को ही यज्ञ माना वेद ने । यज्ञ करो भी , कराओ भी – संदेश दिया वेद ने।। देवयज्ञ नियम से करो – यही उपदेश दिया वेद ने। संगतिकरण और दान का भी आदेश दिया वेद ने।। सबसे चले मिलकर सदा – […]

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गीता मेरे गीतों में गीत संख्या – 18 …यज्ञशेष के लाभ

18 यज्ञशेष के लाभ सभी देवगण प्रसन्न होते यज्ञ के प्रसाद से। यज्ञ की महिमा निराली, पूर्ण करो ध्यान से।। बैठिए वेदी पर जाकर तुम पूर्ण श्रद्धाभाव से। अनुभव करो आनंद का हृदय को भरो चाव से।। यज्ञ के द्वारा ही भगवन सृष्टि का उन्नयन करें। यज्ञ ही आधार जग का , ईश्वर परिपालन करें।। […]

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कंद-मूल खाने वालों से* मांसाहारी डरते थे।।

*कंद-मूल खाने वालों से* मांसाहारी डरते थे।। *पोरस जैसे शूर-वीर को* नमन ‘सिकंदर’ करते थे॥ *चौदह वर्षों तक खूंखारी* वन में जिसका धाम था।। *मन-मन्दिर में बसने वाला* शाकाहारी *राम* था।। *चाहते तो खा सकते थे वो* मांस पशु के ढेरो में।। लेकिन उनको प्यार मिला ‘ *शबरी’ के जूठे बेरो में*॥ *चक्र सुदर्शन धारी […]

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कविता गीता का कर्मयोग और आज का विश्व

गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या ….17 , देव पूजा से कल्याण

देव पूजा से कल्याण सोते हुए बालक को जैसे माता पिलाती दूध को। प्रतीति नहीं है स्वाद की पर पीता है बच्चा दूध को।। रहते हैं संसार में वैसे ही योगी जान विषय गूढ़ को। हम निर्लिप्त भाव से रहें – समझें विचार विशुद्ध को।। आंखों से देखता है योगी पर देखता नहीं संसार को। […]

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गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या …16 संयमी मुनि

संयमी मुनि मन – वचन- कर्म से मत किसी को पीड़ा पहुंचाना। तपोव्रती और संयमी जीवन से सबके कष्ट मिटाना।। वेद ने दी मर्यादा हमको पहली – अहिंसावादी बन। दूजी है -यथार्थ ज्ञान को पाकर तू भी सत्यवादी बन।। अस्तेय, ब्रह्मचर्य, शौच, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। ये ही सात मर्यादा हमको देतीं अपनी सही पहचान।। […]

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गीता मेरे गीतों में,.. गीत संख्या….. 15

परमात्मा के दर्शन का लाभ शत्रु हैं जो जग में आपके उन्हें जीतना होगा। मित्रता के हर एक पौधे को हमको सींचना होगा।। नहीं कोई साथ आया है , नहीं कोई साथ जाएगा। जो भी लिया जग से – यहीं पर छूट -जाएगा।। धर्म ही सच्चा साथी है – उसी को धारना होगा ….. अहंकार […]

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गीता मेरे गीतों में… कविता 14

स्थित बुद्धि हो नहीं सकता संसार उसका जो कामनाओं से युक्त है। वही जीत सकता संसार को जो कामनाओं से मुक्त है।। दिन आपाधापी में बिताना और रात में षड़यंत्र रचना। लक्षण नहीं ये वीर के – यूँ ही किसी पर व्यंग्य कसना ।। सदा सम्मान दूसरों का करे – वही वीर बुद्धियुक्त है … […]

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