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गीता मेरे गीतों में , गीत 39 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

परमेश्वर की विलक्षण शक्ति आर्त्त लोग भजते ईश्वर को , जिज्ञासु भी उसका यजन करें, अर्थी अर्थात कामना वाला भी उसका नियम से भजन करे। ज्ञानी भी उसको भजता है , पर उसका भजन सबसे उत्तम, परमात्मा है सब कुछ जग में- वह ऐसा मानकर भजन करे।। ब्रह्म प्रकृति में रहकर भी प्रकृति से रहता […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 38 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

बौद्धिक उत्कृष्टता जहां-जहां ‘विभूति’ है जग में और दिखा करती ‘श्री’ कहीं, वह बनकर ‘अंश’ मेरे ‘तेज’ का , मानो जग में चमक रही। मैं अपने तेज के कारण अर्जुन! जगत को धारण किए रहूं, यह सृष्टि -नियम-अनुकूल बात है मानस में मेरे दमक रही।। जो भी सृष्टि में दिख रहा उसे भगवान की विभूति […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 36 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

सार तत्त्व तर्ज :- कह रहा है आसमां कि यह समा ……. धुआं दिखाई दे कहीं तो मान लो वहां आग है। जन मस्ती में गाते दिखें तो मान लो वहां फाग है।। जल को जीवन मानते सब , उसमें रस भगवान हैं। जल के बिन जीवन नहीं ,जीवन का जल आधार है।। नाम वासुदेव […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 35 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ईश्वर की सर्वव्यापकता जीवन झोपड़ी जल रही उजड़ रहे हैं सांस। खांडव वन में पक्षीगण करते शोक विलाप ।। चला चली यहां लग रही गए रंक और भूप। समय पड़े तुझे जावणा मिट जावें रंग रूप ।। वह भीतर बैठा कह रहा , क्यों होता बेचैन ? धन – वैभव को भूलकर मुझे भजो दिन […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 33 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

सर्व व्यापक में दृष्टि से उत्थान मैत्री का सम्मान करो , कुछ करुणा का भी ध्यान करो । मुदिता भी अपनाइए समय पर उपेक्षा का बर्ताव करो।। सुखीजनों को देख कीजिए – प्रेमपूर्ण मित्रता का अनुबंध। दु:खीजनों को देख कीजिए, करुणा का दया पूर्ण संबंध।। करते हों जो पुण्य जगत में , उनसे हर्षित हो […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) 32

समदर्शी योगी जिसको न इस संसार की कोई चाह शेष ही रही, जो कहता रहा हर हाल में जो भी मिला वो ही सही। चाह मिटी – चिंता मिटी , और शांत किया हो चित्त को, जो मग्न है प्रभु ध्यान में , योगी तो बस होता वही ।। जो आसक्त हो संसार में, वह […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 31 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ध्यान – विधि प्रणव जप से ध्यान कर ईश्वर का स्वरूप। जो योगी ऐसा करें , वही हैं सच्चे भूप।। विषमता और उद्वेग से , बढ़े समता की ओर। योगी सच्चा है वही , पाये नभ का छोर ।। आत्मा का यह धर्म है , शांति – समता ध्यान। प्रसाद भी मिलता हमें, जब होवे […]

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गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) 30

योगी का प्रयत्न योगी भोगी हो नहीं सकता, रोगी का तो प्रश्न कहाँ ? मोक्ष कमाना है उसका धंधा , भोग का तो प्रश्न कहाँ ? मान मिले सम्मान मिले, अक्षय आनन्द का वरदान मिले। पग – पग पर मिले उसे सफलता, युगों तक पहचान मिले।। धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष का ज्ञान निरन्तर करता […]

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देश का झण्डा दिव्य तिरंगा

देश का झण्डा दिव्य तिरंगा,आन-बान और शान है । हर भारतवासी का तन मन धन और उसकी जान है ।। ऊपर ‘भगवा’ रंग भारत की संस्कृति को दर्शाता है, ‘श्वेत’ मध्य में सत्य,अहिंसा,शान्ति,प्रेम सिखलाता है । ‘हरित’ वर्ण यह सस्य-श्यामला धरती की पहचान है ।। तीन रंग का अपना झण्डा विश्वविजय का परिचायक, भारत का […]

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गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) 29

आत्म व्यवहार के अनुरूप परिणाम जब पतन वैचारिक होता है तो गिरता जाता मानव दल । जब उत्थान वैचारिक होता है तो बढ़ता जाता मानव दल।। ऐश्वर्याभिलाषी जीव सदा यहाँ , ऐश्वर्य हेतु ही आता। बलवीर्ययुक्त समर्थ जीवन को कोई बड़भागी ही पाता।। समझो ! हीनवीर्य हो जाना अपनी मृत्यु को है आमंत्रण । देना […]

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