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गीता मेरे गीतों में , गीत 64 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ईश्वर भासता ब्रह्मांड में एक सूर्य ही कर रहा, प्रकाश सभी लोक में। सब मस्त रह जीवन चलाते प्राणी इस लोक में, प्राणी सब स्वस्थ रहते , इसके ही आलोक में, सब प्राणियों का ध्यान रखता खुशी और शोक में।। उपकार इसके हैं घने , कोई बतला सकता नहीं, सब जगह सब काल में हमसे […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 63 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

निसंग रहता है सदा जो तेरे – मेरे से उठे और मिटा देत दुर्भाव। मुझको पाता है वही, जो रखता हो सद्भाव।। परमपिता – परमात्मा स्वयं रमा मेरी देह। निसंग रहता है सदा , पर रखता सबसे नेह।। आकाश सर्वत्र व्याप्त है, पर नहीं किसी में लिप्त। हर वस्तु से दूर है , होकर भी […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 62 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

सब हो जाओ निसंग करता जो मेरे लिए अपने सारे काम । आनन्द जग में वह करे पाता है कल्याण।। निष्काम कर्मी बन सदा , भजत प्रभु का नाम। भक्त बने भगवान का , मिले मोक्ष का धाम।। जिसने त्यागा बैर को , चले बाँटता प्रीत। उसको ही भगवान की मिलती हरदम प्रीत।। ना किसी […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 61 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ज्ञान, दर्शन और प्रवेश श्री कृष्ण बोले – मैं अर्जुन, लोकों को कर सकता हूँ क्षय। मैं वही काल हूँ – जिस पर ना पा सकता कोई विजय ।। जितने योद्धागण यहाँ खड़े हुए ये कभी नहीं बच सकते। ये सारे मिलकर कभी नहीं सामना मेरा कर सकते ।। जिसको शक्ति है सुख देने की, […]

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परमपिता परमात्मा की अनंत कृपा के संदर्भ-

बिखरे मोती तू सौवे वह जागता, चला रहा तेरे सांस । हृदय की धड़कन चला, करता तेरा विकास॥1959॥ संत संनिधि के संदर्भ में- आत्मवेत्ता संत मिले, तो सद् गुण बढ़ जाय। जैसे पारस लोहे को, सोना दे बनाय॥1960॥ मूरख के स्वभाव के संदर्भ में – मूरख निज मन की करे, समझाना बेकार । ज्ञान की […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 60 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) तेरी शक्ति अपरिमित कितनी ?

तेरी शक्ति अपरिमित कितनी ? अर्जुन बोला – हे मधुसूदन ! मैं कैसा देख रहा हूँ रूप ? सारे देव एक साथ में बैठे और नतमस्तक बैठे हैं भूप।। अनेक मुख, उदर और बाहु आदि चारों ओर दिखाई देते। हे विश्वेश्वर ! विश्वरूप !! मुझे तेरे दिव्य रूप दिखाई देते।। ना आदि कहीं ना मध्य […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 59 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) सृजन जहां – है विध्वंस वहीं

सृजन जहां – है विध्वंस वहीं भगवान अनेकों मुख वाला और आंखों वाला होता है। धारण करता अनेकों दिव्य भूषण वस्त्रों वाला होता है।। अनेकों शस्त्रों से रहे सुसज्जित, शत्रु संहारक होता है। वेद की यह उक्ति सही है वह ब्रह्मांड का धारक होता है।। सब ओर उसके मुख होते, सब ओर ही आंखें रखता […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 58 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

विश्व रूप का दर्शन करना अनेकों रूप ईश्वर के जिन्हें मैं योग से जाना। तू भी देख ले अर्जुन! कितने रूप हैं नाना।। जो तूने देखा नहीं अब तक , उसे तू देख ले अर्जुन। मेरे में सिमटा हुआ सारा यह संसार है अर्जुन।। विश्व के दर्शन करा दिए , एक ब्रह्म तत्व में कृष्ण […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 57 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

समझ बिना अस्थि वाले को ब्रह्मामृत का सेवन करते, हम उसको ही ध्याते भजते रहें। मिलेगा निश्चय वह हमें ऐसा जान निरंतर आगे बढ़ते रहें।। स्थित समस्त धामों में , हमारे विचार भाव में रमा हुआ। जानता भाव-भुवन को भी,ना कोई उससे बचा हुआ।। प्रभु के ऊंचे खेलों को ना हर कोई समझ पाता जग […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 56 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

इस बंधन को अटूट करें तू देख नहीं सकता मुझको अपने भौतिक संसाधन से। आंखें कुछ दूरी तक काम करें अपने सीमित साधन से।। मैं दिव्य चक्षु तुझको देता, पार्थ !देख सके तो देख जरा। क्या है मेरा योग -ऐश्वर्य ? तू ध्यान लगा कर देख जरा।। मेरी दिव्य दृष्टि पाकर अर्जुन ! अपने सारे […]

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