76 आंधी चढ़ी आकाश में, बोले ऊंचे बोल। पंख मेरे मजबूत हैं, कौन सकेगा तोल ? कौन सकेगा तोल ? करूं मैं मटियामेट। मेरे सामने जो भी आता ,चढ़ता मेरी भेंट।। न जाने कितने नष्ट किए, मैंने गढ़ और गढ़ी। हो गए सारे खाक , जब मेरी आंधी चढ़ी ।। 77 दो दिन की आंधी […]
Category: कविता
73 जन्मदिवस कहे कान में जगत के धंधे छोड़। कहां कीच में फंस रहा , दुनिया से मुंह मोड़।। दुनिया से मुंह मोड़, यहां नहीं कुछ भी तेरा। उड़ने पर इस डाल से, फिर होगा कहां बसेरा ? हावी तुझ पर हो रही, स्याह रात की मावस।। रजनी को दूर हटाना, बतलाता जन्मदिवस।। 74 निरोग […]
कुंडलियां … 24 …..उसको हीरा मान
70 ज्ञान ध्यान में जो रमे, सच्चा मानुष जान। लाख बरस की साधना, उसको हीरा मान।। उसको हीरा मान, जगत में बने कीमती। साधना का मोल बताता कितनी ऊंची भक्ति? ना भरमता जग के अंदर, ना करता अभिमान। सही राह पे चलता, तपा तपाया उसका ज्ञान।। 71 भट्टी में तपता वही, जिसे कुंदन की चाह। […]
कुंडलियां … 23 मद में व्यर्थ है सेठ
67 अहंकार सबसे बुरा, करे मनुज का नाश। बड़े बड़े रावण गए, बुरा कहे इतिहास।। बुरा कहे इतिहास, जगत की खाते गाली। मानवता से रिश्ता होता ज्यों कीड़ा व नाली।। इतने वर्ष बाद भी रावण, मार रहा फुंकार । राम नाम के फूल हैं, रावण को अहंकार ।। 68 राट- विराट – सम्राट सब, चढ़ […]
कुंडलियां … 20 जिसने मारा काम को…….
64 काम कामना हैं बुरे, कह गए संत फकीर। कामना मारे है हमें, काम के मारें तीर।। काम के मारें तीर, करें घायल गहरा। आंखों से कर देते अंधा, कानों से बहरा।। जैसे ही दिखे मेनका, जागृत होता काम। बड़े बड़ों को आसन से पटका करता काम ।। 65 त्रिया की संगत करे, वही काम […]
कुंडलियां … 19 बुद्धि जिसकी भंग है, …..
60 वैरी भारी क्रोध है,करता सारा नाश। मति को करता भंग है, करता सत्यानाश।। करता सत्यानाश, जगत में होती ख्वारी। घटता है व्यक्तित्व ,पतन की हो तैयारी।। क्रोध के कारण नहीं रहे, कहलाते सम्राट। खोजे से नहीं दिखते, जिनके हमको ठाट।। 61 बुद्धि जिसकी भंग है, वही क्रोध का दास। रावण जैसे ना रहे, मिट […]
कुंडलियां … 18 तपसी साधे राष्ट्र को..,…
57 तप जीवन की साधना, तपे सो पंडित होय। तप बढ़ाता राष्ट्र को तप से सब कुछ होय।। तप से सब कुछ होय व्यवस्था अच्छी बनती। मानव की मानव से, तनिक नहीं ठनकती।। ध्यान बढ़े तपसी संगत में जीवन उन्नत बनता। सोना भट्टी में पड़कर ही सचमुच कुंदन बनता।। 58 तपसी साधे राष्ट्र को , […]
कुंडलियां … 17 शशि चांदनी देता है……
54 धन बढ़े है दान से, यश का बने आधार। महकता जीवन रहे , छा जाती है बहार।। छा जाती है बहार, मन भी चंगा रहता। हृदय मुदित रहने से प्रसन्न आत्मा रहता।। जग के व्यापार का संतुलन सही बना रहे। दान से जीवन का मर्यादा पथ सजा रहे।। 55 दान जगदाधार है, यही यज्ञ […]
कुंडलियां … 16 सबको अच्छे लगते बच्चे…..
51 बचपन शाही जिंदगी, घर को राखे मस्त। चुप्पी तोड़ कहकहे भरे, रखती सबको व्यस्त।। रखती सबको व्यस्त, सभी चाहते हैं बचपन। तुतला करके बोल, सब लौटते अपने बचपन।। एक ही बच्चा भर देता है आंगन में किलकारी। सुन सुन कर खुशी मनाते पिता और महतारी।। 52 बचपन की अठखेलियां, सबको लेत रिझाय। दादाजी गर्वित […]
कुंडलियां … 15, शिक्षक ‘मृत्यु’ मानिये….
48 शिक्षक ‘मृत्यु’ मानिये , मारे शिष्य के दोष। कुसंस्कार देता मिटा, भरे सत्व का जोश।। भरे सत्व का जोश, होश में करे संतुलन। शिष्य को सुधार, बनाता सुंदर चाल चलन।। गुरु शिष्य की परंपरा भारत को भव्य बनाती। नित्य नियम से, पूज्य गुरु को शीश झुकाती।। 49 गुरु के कारण शिष्य को मिला करे […]