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कविता

कौन है ऐसा जगत में,

गीत कौन है ऐसा जगत में, जो न करता काम अपने! सूर्य अपना अक्ष पकड़े, सर्वदा गतिमान रहता। और ऊर्जा की उदधि को, सर्व हित में दान करता। ग्रीन हाउस हम बनाकर, फिर लगे दिन-रात तपने। कौन है………………..।। चाँद, तारे, व्योम, धरती, सब जुटे निज काम में हैं। साधु, विज्ञानी, गृही जन, कर्मरत अठ याम […]

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अपनी कलम सम्हालो

हे सत्ता के गलियारों में, दुम हिलाने वालों। हे दरबारी सुविधाओं की, जूठन खाने वालों।। तेरे ही पूर्वज दुश्मन को, कलम बेचकर खाए। तेरे ही पूर्वज सदियों से, वतन बेचते आए।। कलम बिकी तब गोरी के साथी, जयचंद कहाए। कलम बिकी तब राणा साँगा, बाबर को बुलवाए।। बिकती कलमों ने पद्मिनियों को, कामातुर देखा। बिकती […]

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ऋषि का सर्वोच्च बलिदान

लेखक – स्वामी भीष्म जी महाराज घरोंडा वाले जो जगाने आए थे वो तो जगा कर चल दिए, लुप्त वेदों का खजाना था बता कर चल दिये । जब चले गुजरात से कितना भंयकर वक्त था । जैनी, बोद्ध, ईसाई, मुस्लिम का सामना सख्त था । था परतन्त्र देश भारत ताज था ना तख्त था। […]

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जीवन ज्योति जल रही, पिता बना है तेल ।

अनुपम छाया है पिता, रहे हमारे साथ । रक्षा करता है सदा सिर पर रखकर हाथ ।।1।। आसमान से उच्च है जो भी मिले आशीष । हम सबका इसमें भला, नित्य झुकावें शीश।।2।। जब तक तन में प्राण है, जिव्हा मुख के बीच। करो पिता का कीर्तन, समझो निज जगदीश ।।3।। बाती में ज्यों तेल […]

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अध्याय … 80 मेरी भारत माता,…….

238 खाया जहां का अन्न है, पुण्य धरा और धाम। जब तक हम जग में जिएं, करें देश के काम।। करें देश के काम , अपना देश सुधरता। भूमंडल में खुशबू फैले, परिदृश्य बदलता।। पूर्वजों से अपने हमने, यही संदेश है पाया। ऋण होता उस माटी का,अन्न जहां का खाया।। 239 दोहराते संकल्प हम, अखंड […]

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अध्याय … 79 माता मेरी रो रही…..

235 भारत में भारत बसे, लेय विशाल स्वरूप। चक्रवर्ती सम्राट हों , वही पुराने भूप।। वही पुराने भूप , फिर तक्षशिला नालंदा हों। हमसे लेकर ज्ञान, ना कोई कभी शर्मिंदा हो।। सारे भूमंडल को लोग कहें , फिर से भारत। सब भेदों को, समूल मिटा दे अपना भारत।। 236 ‘नवभारत’ कैसा बना, जान गये सब […]

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अध्याय … 78 समझो अपने देश को ……

232 तेज ,क्षमा और धैर्य, वैरभाव का त्याग। अहंकार से दूर हो, उसका दिव्य स्वभाव।। उसका दिव्य स्वभाव, आशीष देव का। मानव वही बना करता , आदर्श देश का।। राष्ट्रवंदना सिखिलाता है, मेरा भारत देश। जिसने समझा ‘भारत’, मिला उसी को तेज।। 233 समझो अपने देश को, दुनिया का सिरमौर। रहा बांटता ज्ञान को, बना […]

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अध्याय … 77 नहीं है कोई देश दूसरा…..

229 दूर नहीं वह पास है, क्यों खोजे नादान ? तेरा मालिक घट बसे, तू नाहक है परेशान।।7 तू नाहक है परेशान , देख उसे अंतर्मन में। वह निकट से निकट , बसा हुआ है मन में।। निकट का आभास , मिले भक्ति में भरपूर। ज्ञानी पिता सर्वज्ञ को, कहते- दूर से भी दूर। 230 […]

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अध्याय … 76 स्वभाव जैसा जीव का,……..

226 नाच दिखाके शांत हो , करे नर्तकी रोज । प्रकृति पीछे हटे , हो जाता जब मोक्ष।। हो जाता जब मोक्ष, जगत रचा ईश्वर ने। जीवों का कल्याण हो, भाव रखा ईश्वर ने।। स्वभाव जैसा जीव का, वही रचाता रास । अपनी अपनी साधना,अपना अपना नाच।। 227 तीन, पांच ,सोलह जुड़ें, संख्या है चौबीस […]

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अध्याय … 75 : जो जन्मा सो जाएगा……

223 अपने धर्म को छोड़कर , जो भी जाता भाग। लोग उसे धिक्कारते, लाख टके की बात।। लाख टके की बात ,माधव ने बताई अर्जुन को। धर्म क्षेत्र के बारे में, सच बतलाया अर्जुन को।। लोक-लायक ना होते, छोड़ भागते जो रण को। लोकनायक वही बनें, जो जानें अपने धर्म को।। 224 जो जन्मा सो […]

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