163 कामवासना रोग है, दुखदाई हो जाय। मोह भयंकर है रिपु, बंधन लोभ बताय ।। बंधन लोभ बताय , क्रोध भयंकर अग्नि। जो इनमें फंस गया, राह मौत की पकड़ी।। कामी फंसे काम में, लज्जा उड़ाए वासना। ऋषियों ने ऐसा कहा, रोग है कामवासना।। 164 धन चाहिए तो नींद का, करना है परित्याग। तंद्रा , […]
Category: कविता
अध्याय … 54 जाति बंधन छोड़ दो ……
160 भोगों का उपभोग भी, ना कर पाते लोग। भरथरी कह कर गए , भोग रहे हैं भोग।। भोग रहे हैं भोग, पल-पल हम मरते जाते। जितना चाहें निकलना,उतना फंसते जाते।। बीत जाए यूं ही जीवन, नहीं समझते लोग। जीवन में नहीं कर पाते, भोगों का उपभोग।। 161 जाति बंधन छोड़ दो, यही मनुज का […]
अध्याय … 53 वेद पढ़े और शास्त्र भी……
157 धन पैरों की धूल है, जोबन नदी समान । आयु को ऋषि ने कहा, बहत हुआ जल मान।। बहत हुआ जल मान, मूरख पीछे पछतावे।। देख बुढापा रोवत है, समय से धोखा खावे। पड़त शोक की अग्नि में , करता रोज रुदन । निकल जा हाथ से , तब काम ना आवे धन।। 158 […]
अध्याय … 52 भाई ऐसा होत……
154 पांच कोश का पींजड़ा , जा में पंछी बंद। पांच प्राण और इंद्रियां, भवन चाक-चौबंद।। भवन चाक- चौबंद, इंद्रिय संख्या ग्यारह। संचालक बन आत्मा, इनको बैठ निहारै।। सतोगुणी बुद्धि रहै , तब इंद्रियां हों निर्दोष। समझ खेल का खेल है, देह के पांचों कोश।। 155 भ्राता की दशा देखकै , मन में उठे उमंग। […]
कुंडलियां … 51 वही कफन ऊपर पड़ा……
151 शब्द, रूप, स्पर्श हैं , रस, गंध भी साथ। पांच विषय विष के घड़े ,कर देते हैं नाश।। कर देते हैं नाश , जीव घड़ा लटकाए घूमे। जब भी लगती प्यास, विष घड़े को चूमे।। विष पी पीकर मरते जाते, रंक रहे या भूप। समझदार समझ गए, क्या होते शब्द-रूप ? 152 मैंने खोजा […]
कुंडलियां … 50 बीज में बरगद छुपा…..
148 खोजो अपने रूप को, जपो नाम दिन रैन। पा लोगे निज रूप को, पड़ेगा मन को चैन।। पड़ेगा मन को चैन, वर्षा अमृत की होगी। करता उल्टे काम जगत में, बनकर भोगी।। अविद्या, अस्मिता, राग के, मत लेना सपने। छोड़ द्वेष-निवेश को, मूल को खोजो अपने।। 149 बीज में बरगद छुपा, यही दर्शन का […]
कुंडलियां … 49 ……शुद्ध सही आहार
145 विरासत पर हमें गर्व है , गौरवपूर्ण अतीत। बखान नहीं कोई कर सके,ऐसा वर्णनातीत।। ऐसा वर्णनातीत, सुखद बड़ी अनुभूति होती। ऋषि महात्मा माला के, मूल्यवान हैं मोती।। ऋषियों के उद्यम को खा गई आज सियासत। सियासत की मूर्खता से, खोई आज विरासत।। 146 आहार हमारा ठीक है, होंगे ठीक विचार। विचार का आधार है […]
कुंडलियां … 48 ब्रह्मवर्त कहते किसे …….
142 विजय मिले संग्राम में, शत्रु का हो अंत । ऋषियों का आशीष है, सहमत सारे संत।। सहमत सारे संत , आशीष उसी को देते। मानवता की रक्षा का , प्रण सदा जो लेते।। संतों से ले आशीष, राम बढ़ चले थे निश्चय। उनके ही हथियारों से,पाई लंका पे विजय।। 143 ब्रह्मवर्त कहते किसे, कहां […]
कुंडलियां … 47 , अपराधी हर लेखनी……
139 मूर्ख बन इतरा रहा , माने ना मेरी बात। कुछ भी तेरा है नहीं, ना जाएगा साथ।। ना जाएगा साथ , छूटें पत्नी और बेटा। कुटुंब कबीले छूटें, जिनके ऊपर ऐंठा।। अकड़ छूटेगी तेरी, होगी उनसे अनबन। जिनमें झूठा फंसा हुआ है, तू मूर्ख बन।। 140 चिंतन जिसका ऊंच है, होता वही महान। आदर्श […]
कुंडलियां … 46 ऐश्वर्यवान धर्मात्मा …..
136 प्राण, अपान और व्यान हैं, संग में समान, उदान। पांच प्राण बतलाए दिए, तू जान सके तो जान।। तू जान सके तो जान , नाग, कूर्म और कृकल । पांच ही उप प्राण हैं , साथ में देवदत्त धनंजय।। प्राण होवें जिसके वश में, हुआ उसका कल्याण। प्राण जाने से पहले, तू भी कर […]