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कविता

कर तू, संधि कर

वेद धर्म के गीत सुनाकर, सबको राह दिखाता चल। जहां-जहां अंधकार मिले, पुरुषार्थ से उसे हटाता चल।। वेद ज्ञान का अमृत पीकर, हो जा, मन से मतवाला। खो जा शिव की मस्ती में, हृदय बना भक्ति वाला।। पारसमणि वेद को लेकर, मन के लोहे पर फेरा कर। आभास किया कर परिवर्तन का, वृत्तियों को तू […]

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वही देश के रक्षक बनते

राष्ट्र की धड़कन बन जा प्यारे, जीवन सफल बनाना है। गीत देश के गाता चल तू, भारत भव्य बनाना है।। शब्दों के वाक जाल में फंसकर, जिनकी कविता फूटा करती। कभी नहीं लेखनी उनकी, नेतृत्व राष्ट्र का कर सकती।। जिनके भावों में निर्भयता, और ठेठ निडरता वास करे। वही देश के रक्षक बनते, गुणगान सदा […]

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बहता चल तू बहता चल,

गाता चल तू गाता चल, गीत ओज के गाता चल। राष्ट्र का यौवन मचल उठे, वही गीत निराला गाता चल।। चार दिनों की चांदनी होती, फिर रात अंधेरी आएगी। चांदनी रहते पौरुष दिखला, तभी कथा तेरी मचलाएगी।। कोठी – बंगले, हाथी- घोड़े, किसके साथ गए पगले । संसार की चिकनी फिसलन पर , बड़े – […]

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यह चार अवस्था मानव की…

हंस भाव में जीता है जो, नर देह वही कहलाता है। ब्रह्मचर्य की यह अवस्था, जीवन सफल बन जाता है।। वसु – भाव में जीने वाला, वर देह का बनता अधिकारी। गृहस्थ आश्रम में रह मानव, तैयार करे जीवन क्यारी।। वानप्रस्थ का जीवन जिसका, उसने परहित में श्रृंगार किया। ‘ होता’ की कर प्राप्त अवस्था, […]

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वह कवि-कभी नहीं हो सकता

वह कवि-कभी नहीं हो सकता, जो नव पीढ़ी को भ्रष्ट करे। जो अधेड़ उम्र में जाकर भी, श्रृंगार – भोग में मस्त रहे।। हिंदी का होकर हिंदी से, जिसका मन करता द्रोह सदा। उर्दू की गजलें करता हो, वह कवि-कभी नहीं हो सकता।। उसको मैं कैसे कहूं कवि, जो अंग्रेजी पर मरता हो। परदेसी भाषा […]

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है धनियों से भी श्रेष्ठ धनी तू,

हे मानव ! बैठ अकेले में, चिंतन कर कुछ चिंतन कर, में कौन कहां से आया हूं ? मंथन कर कुछ मंथन कर।। आने से पहले जगती में, जो वचन दिया था ईश्वर को। वचन का सुमिरण कर प्यारे , क्यों मूर्ख बनाता है नर को ? यह देह अनमोल मिला तुझको, श्वासों का कोष […]

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स्वयं विधाता निराकार, तूने जग कैसे साकार रचा

परमपिता परमेश्वर तूने, किस भाँति सन्सार रचा, स्वयं विधाता निराकार, तूने जग कैसे साकार रचा परमपिता ऽऽऽऽऽऽऽ तारों से भरा नभ का आँगन, चन्दा सूरज कर रहे गमन घन घोर घटा करती गर्जन, कहीं शीतल मन्द सुगन्ध पवन यह बिन सीमा का नील गगन, जिसमें पक्षी कर रहे भ्रमण, दे रहा उन्हें निशिदिन भोजन, हे […]

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चिंतन कर कुछ चिंतन कर,

हे मानव ! बैठ अकेले में, चिंतन कर कुछ चिंतन कर, में कौन कहां से आया हूं ? मंथन कर कुछ मंथन कर।। आने से पहले जगती में, जो वचन दिया था ईश्वर को। वचन का सुमिरण कर प्यारे , क्यों मूर्ख बनाता है नर को ? यह देह अनमोल मिला तुझको, श्वासों का कोष […]

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अच्छे दिन भी आएंगे

बाणों से कोई बींध दे, फरसा से दे काट। सबसे भयंकर होत है, दुर्वचनों का घाव।।1।। धर्म अर्थ का कीजिए , चिंतन प्रातः काल। नित्यकर्म और आचमन, संध्या करो हर हाल।।2।। भैया होता भाव का , शत्रु का हो काल। भुजा के सम होत है , रहता बनाकर ढाल।। 3।। काल बुरे को देखकर , […]

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बोलो नेहरू बोलो गांधी,* *मेरा हिन्दुस्तान कहां है?*

जिसपर था सर्वस्व लुटाया, मेरा वो अरमान कहां है? बोलो नेहरू बोलो गांधी, मेरा हिन्दुस्तान कहां है? सैंतालीस में भारत बांटा, ‘उनको’ पाकिस्तान दे दिया; “दो गालों पे थप्पड़ खा लो” मुझे फालतू ज्ञान दे दिया; मुझे बताओ यही ज्ञान तुम, ‘उनको’ भी तो दे सकते थे; नहीं बंटेगी भारत माता, ये निर्णय तुम ले […]

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