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कविता

श्रम करो – पुरुषार्थ करो

संघर्ष करो – संघर्ष करो, जीवन ज्योति प्रदीप्त करो। संग्राम क्षेत्र यह जीवन है, यहां अपने को उद्दीप्त करो ।। रुक जाना नहीं जीवन होता, जीवन चलते जाना है। काम पथिक का चलते रहना, रुकना ही मिट जाना है ।। श्रम करो – पुरुषार्थ करो , यही सनातन कहता है। विश्राम नहीं, थकने से पहले […]

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नाम अनेक – वह ‘ एक’ है

तारक है, निस्तारक है, वाहक है , संवाहक है । वह जगत नियंता परमेश्वर, नायक और नियामक है।। वही पालन कर्ता ,सुखकर्ता , दु:ख हर्ता भी कहा जाता, सृष्टि कर्ता परमेश्वर ही , न्यायाधीश कहा जाता।। ब्रह्मा विष्णु महेश वही है, गायत्री हमें बताती है। भू: भुव: स्व:- कहकर, सही अर्थ हमें समझाती है।। वरणीय […]

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संस्कार सोलह दिए विश्व को …

डॉ राकेश कुमार आर्य संस्कार सोलह दिए विश्व को वह पुण्य भारत देश है। उत्कृष्ट भाषा संस्कृति और उत्कृष्ट जिसका वेश है ।। गर्भाधान क्रिया है वह जिसमें बीज का आधान हो। माता-पिता हों स्वस्थ, विद्यावान और बलवान हों।। 1 ।। गर्भस्थिति के ज्ञान पर संस्कार होता पुंसवन। पुरुषत्व के लाभ हेतु तीसरे माह में […]

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अमृत महोत्सव

देवभूमि भारत से हो रही स‌द्भाव की वृष्टि कायम सर्वत्र अमन, है वतन की दृष्टि आस्था के बाड़ा में खिल रहा संस्कार सुमन नव सुरभि से प्रफुल्लित तन-मन कण-कण से निकल रहा अमर संदेश रव सचमुच यही भारत का अमृत महोत्सव। निरंतर बह रही प्यार की हवा समस्त रोग की एक मात्र दवा सुलगना बन्द […]

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विश्व को अनुपम हमारी देन है

डॉ राकेश कुमार आर्य चर्चा हमारे उत्थान की संसार में सब ओर थी, हमारे ज्ञान और विज्ञान की धाक चहुंओर थी। हमारे सद्‌गुणों की कीर्ति पर संसार सारा मुग्ध था, विधाता के हाथ में हमारी नियति की डोर थी।। ऋषिगण हमारे उपनिषद में करते थे चर्चा ब्रह्म की, जीवन जगत के गंभीर प्रश्न और मानव […]

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शमशानों के सन्नाटे ही

डॉ राकेश कुमार आर्य ना रूप बचे , ना भूप बचे, काल के ग्रास बने सब ही। ना योगी बचे,ना तपसी बचे, नामशेष रह गए सब ही।। जिनसे कभी धरती हिलती थी, वह भी मिट्टी की भेंट चढ़े। जिनसे कभी अंबर डरता था, वह भी मिट्टी में दबे पड़े।। अप्रतिम जिनका बाहुबल था, विराट बने […]

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श्रम करो – पुरुषार्थ करो

– डॉ॰ राकेश कुमार आर्य संघर्ष करो – संघर्ष करो, जीवन ज्योति प्रदीप्त करो। संग्राम क्षेत्र यह जीवन है, यहां अपने को उद्दीप्त करो ।। रुक जाना नहीं जीवन होता, जीवन चलते जाना है। काम पथिक का चलते रहना, रुकना ही मिट जाना है ।। श्रम करो – पुरुषार्थ करो , यही सनातन कहता है। […]

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नाम अनेक – वह ‘एक’ है

तारक है, निस्तारक है, वाहक है , संवाहक है । वह जगत नियंता परमेश्वर, नायक और नियामक है।। वही पालन कर्ता ,सुखकर्ता , दु:ख हर्ता भी कहा जाता, सृष्टि कर्ता परमेश्वर ही , न्यायाधीश कहा जाता।। ब्रह्मा विष्णु महेश वही है, गायत्री हमें बताती है। भू: भुव: स्व:- कहकर, सही अर्थ हमें समझाती है।। वरणीय […]

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‘होता’ भाव जीवन में धारो

बनकर हंस रहो जग में, मत भीगो जग के पानी में। हीरे के सम रहो चमकते, कुछ कर लो काम जवानी में।। वसु – भाव से जीना सीखो, वृद्धि करो, मुझे भी करने दो। ऐश्वर्यसंपन्न बन जीवन जिओ, सुखी रहो, मुझे भी रहने दो।। ‘होता’ भाव जीवन में धारो, सर्वस्व समर्पित कर डालो। सद्भाव – […]

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शमशानों के सन्नाटे ही

ना रूप बचे , ना भूप बचे, काल के ग्रास बने सब ही। ना योगी बचे,ना तपसी बचे, नामशेष रह गए सब ही।। जिनसे कभी धरती हिलती थी, वह भी मिट्टी की भेंट चढ़े। जिनसे कभी अंबर डरता था, वह भी मिट्टी में दबे पड़े।। अप्रतिम जिनका बाहुबल था, विराट बने – सम्राट बने। शमशानों […]

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