“भूत का, भवत् का, भविष्यत् का सब ब्रह्माण्ड, इस ब्रह्माण्ड की सब अनगिनत वस्तुएँ, काल में ही यथास्थान रखी हुई हैं। काल का अतिक्रमण कोई नहीं कर सकता।” ***** काले तपः काले ज्येष्ठं काले ब्रह्म समाहितम्। कालो ह सर्वस्येश्वरो यः पितासीत् प्रजापतेः॥ –अथर्व०१६।५३।८ ऋषिः – भृगुः। देवता – कालः। छन्दः – अनुष्टुप्। विनय – हरेक […]
Category: इतिहास के पन्नों से
छठा प्रश्न भारत के पास मर्यादा पुरुषोत्तम राम एक ऐसी जगह विख्यात शख्सियत हैं जिन्हें संसार के सभी देशों में जाना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम चंद्र जी महाराज को सारे संसार में इसलिए भी जाना जाता है कि उनका राज्य सारे संसार में फैला हुआ था। इतिहास के भीतर दर्ज साक्ष्यों से यह भी […]
*प्रस्तुति – आचार्य राहुलदेवः* अंग्रेजी सरकार ने आर्यसमाज को कुचलने तथा दबाने का पूर्ण निश्चय कर लिया था, स्थान-स्थान पर आर्यसमाजियों तथा आर्यसमाज से सम्बन्धित पुरुषों को उत्पीड़ित किया जाने लगा था, उस समय की सरकारी नौकरियों में विद्यमान आर्यसमाजियों पर तो मानो विपत्तियों का पहाड़ ही टूट पड़ा था, क्योंकि सरकारी नौकरी में होने […]
मराठा_शासक_वीर_पेशवा_बाजीराव_प्रथम का जन्म सन् 1700 में आज के दिन ही हुआ था ॥ बाजीराव प्रथम मराठा साम्राज्य का महान् सेनानायक था। वह बालाजी विश्वनाथ और राधाबाई का बड़ा पुत्र था। राजा शाहू ने बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हो जाने के बाद उसे अपना दूसरा पेशवा (1720-1740 ई.) नियुक्त किया था। बाजीराव प्रथम को ‘बाजीराव बल्लाल’ […]
रचना और प्रलय तर्ज :- कह रहा है आसमां कि यह समा ……. रचना भी करता हूँ मैं ही , पालना करता हूँ मैं। सब चराचर की जगत में प्रलय भी करता हूँ मैं।। अहंकार वश जिसने किया जीना कठिन संसार का। ऐसे हर इक दुष्ट जन का संहार भी करता हूँ मैं ।। झोपड़ी […]
ओ३म् =========== मनुष्य का जन्म आत्मा की उन्नति के लिये होता है। आत्मा की उन्नति में गौण रूप से शारीरिक उन्नति भी सम्मिलित है। यदि शरीर पुष्ट और बलवान न हो तो आत्मा की उन्नति नहीं हो सकती। आत्मा के अन्तःकरण में मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार यह चार उपकरण होते हैं। इनकी उन्नति भी […]
स्वराज्य शब्द के जन्म दाता ऋषि दयानन्द || आज लोग डींगे हांक रहे हैं स्वराज्य शब्द को लेकर, की इस स्वराज्य शब्द बाल गंगाधर तिलक जी की उपज है उन्होंने कहा था स्वराज्य प्राप्त करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है | इतना कह देने मात्र से बात नहीं बनती पंडित बाल गंगाधर तिलक जी को […]
कांग्रेस और उसके नेताओं ने देश को एक ऐसी मूर्खता पूर्ण अवधारणा प्रदान की जिसके सहारे हमारा अपना बौद्धिक संपदा संपन्न देश अपनी चाल को ही भूल गया। इस मूर्खता पूर्ण अवधारणा का नाम स्वतंत्र भारत में धर्मनिरपेक्षता माना गया। जिसका अभिप्राय है कि जिससे धर्म की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। ऐसी धारणा […]
अमृत महोत्सव लेखमाला सशस्त्र क्रांति के स्वर्णिम पृष्ठ — भाग 16 नरेन्द्र सहगल “तुम मुझे खून दो – मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के गगनभेदी उद्घोष के साथ आजाद हिंद फौज के सेनापति और सशस्त्र क्रांति के अंतिम ध्वज-वाहक सुभाष चंद्र बोस ने 90 वर्षों तक निरंतर चले ‘स्वातंत्र्य-यज्ञ’ में अपने प्राणों से पूर्ण आहुति दी […]
बुत्परस्तों के सरस्वती-सिंधू घाटी में प्रवेश करने से पहले तक इस धरती पर लगातार आर्य प्रशासकों ने ही शासन किया था। बाहर से आये चरवाहों ने मौका पाकर वैदिक आर्यों ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों को मार दिया और कुछ लोगों ने जंगलों में शरण लेकर अपने प्राणों की रक्षा की थी। जो आर्य लोग उन नृशंस […]