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ओ३म् “महाभारत के बाद विश्व में वेदों के प्रचार का श्रेय ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को है”

============ पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद वेदों का सत्यस्वरूप विस्मृत हो गया था। वेदों के विलुप्त होने के कारण ही संसार में मिथ्या अन्धविश्वास, पक्षपात व दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्थायें फैली हैं। इससे विद्या व ज्ञान में न्यूनता तथा अविद्या व अज्ञानयुक्त मान्यताओं में वृद्धि हुई है। आश्चर्य होता है कि सत्य […]

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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग – 405 (हिंदवी स्वराज के संस्थापक शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी पुस्तक से ..) *छत्रपति शिवाजी महाराज की नेतृत्व क्षमता, अध्याय – 3*

डॉ राकेश कुमार आर्य *कि* सी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके अपने निजी गुणों से ही नापा जाता है। जैसे गुणावगुण उसके भीतर होते हैं और उनमें से जिसका अधिक अनुपात होता है, वैसा ही उस व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है। यदि कोई व्यक्ति अवगुणों से भरा हुआ है तो उसका व्यक्तित्व भी अवगुण से […]

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इतिहास की पड़ताल पुस्तक से …. जयद्रथ और अभिमन्यु -अध्याय 3

अ पने ज्येष्ठ पिताश्री धर्मराज युधिष्ठिर और अन्य पांडवों के आग्रह और आदेश को स्वीकार कर अभिमन्यु ने भयंकर युद्ध करना आरंभ किया। वह जिधर भी निकलता उधर ही कौरव दल में हड़कंप मच जाता। उसका साहस और उसकी वीरता आज देखने लायक थी। आज दैवीय शक्तियाँ भी अभिमन्यु की वीरता और युद्ध कौशल को […]

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छपिया के स्वामीनारायण की बाललीलायें

आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी एतिहासिक पृष्ठभूमि अनादि काल से ही भारत अवतारों, ऋषियों और साधुओं से सुशोभित होता रहा है। जब-जब दुष्ट तत्व धर्म का दमन करते हैं, तब-तब भगवान धर्म की पुनः स्थापना के लिए धरती पर अवतार लेते हैं। त्रेता के युग में भगवान रामचंद्र और द्वापर के अंत में भगवान कृष्ण दो […]

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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग- 404 [ हिंदी स्वराज के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज पुस्तक से …] हिंदू राष्ट्रनीति व हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज – भाग 2

शिवाजी का चरित्र शिवाजी के भीतर भारतीय संस्कृति के महान संस्कार कूट-कूट कर भरे थे । वह सदैव अपने माता – पिता और गुरु के प्रति श्रद्धालु और सेवाभावी बने रहे । उन्होंने कभी भी अपनी माता की किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया और पिता के विरुद्ध पर्याप्त विपरीत परिस्थितियों के होने के उपरांत […]

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क्या ‘द्रविड़’ भारतवर्ष के आदिवासी हैं?

लेखक- डॉ० शिवपूजनसिंहजी कुशवाहा “वैदिक गवेषक” प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ जब भारतवर्ष पराधीन था और अंग्रेजों का प्रभुत्व था तब उन्होंने हमारी भाषा, वेष, इतिहास, संस्कृति सब का विनाश करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने इतिहास में लिखवाया कि आर्य लोग भारत वर्ष के मूल निवासी नहीं वरन् बाहर से आए थे। यहां के आदि वासी […]

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इतिहास की पड़ताल पुस्तक से …(अध्याय-2) “चक्रव्यूह और अभिमन्यु”

डॉ राकेश कुमार आर्य **म** हाभारत के संबंध में ऐसी अनेकों भ्रांतियाँ हैं जो मूल महाभारत में किसी और प्रकार से वर्णित की गई हैं और समाज में किसी और प्रकार से उनके बारे में भ्रांतियाँ पैदा कर ली गई हैं। अभिमन्यु के बारे में भी कई प्रकार की भ्रांतियाँ हैं – जैसे चक्रव्यूह तोड़ने […]

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“पाँच हजार साल से सोने वालों जागो”

बिजनौर जनपद में साधारण से दिखने वाले निहाल सिंह सरकारी चौकीदार थे। आपकी अनेक स्थानों पर बदली होती रहती थी। एक बार एक बड़े कस्बे में आपका तबादला हुआ। रात को पहरा देते हुए आप कहते थे “पाँच हजार साल से सोने वालों जागो”। आपकी आवाज सुनकर लोग आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि उन्हें जागते […]

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क्या ताजमहल सचमुच एक मंदिर भवन है?

डॉ राकेश कुमार आर्य उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने ताजमहल को एक मंदिर भवन कहकर एक बहस को जन्म दिया है। इस पर कई विद्वानों ने इतिहास और ऐतिहासिक तथ्यों की पुनर्समीक्षा करनी आरंभ कर दी है। इस विषय पर पूर्व में कई विद्वानों ने बहुत अच्छा प्रकाश डाला है और […]

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भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग – 403 (इतिहास की पड़ताल पुस्तक से… अध्याय -1 ) *दुर्योधन क्यों हारा?*

*’दुर्योधन’ और ‘युधिष्ठिर’ दोनों ही नामों में ‘युद्ध’ शब्द आता है। ‘दुर्योधन’ वह है जो बुरी तरह से युद्ध करता है अर्थात् जीवन के समर क्षेत्र में युद्ध जीतने के लिए नैतिक- अनैतिक किसी भी प्रकार के आचरण को करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। जबकि ‘युधिष्ठिर’ वह है जो युद्ध जैसी भयंकर परिस्थितियों […]

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